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ग्लेशियर
Anil Ashwani Sharma
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अध्ययन में कहा गया है कि यदि इसके लिए बताए गए समाधान को ईमानदारी से लागू किया गया तो आगामी 2030 तक ब्लैक कार्बन में 80 प्रतिशत की कमी संभव है
धुंध की चादर ओढ़े वाराणसी का खूबसूरत घाट; फोटो: आईस्टॉक
Lalit Maurya
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बीएचयू की स्टडी के मुताबिक मानसून से पहले ब्लैक कार्बन के स्तर में सालाना गिरावट का जो आंकड़ा 0.31 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर देखा गया, वो मानसून के बाद 1.86 माइक्रोग्राम/घन मीटर तक पहुंच गया
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, एस्तेर ली
Dayanidhi
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21वीं सदी के बाद से, दक्षिण एशियाई ब्लैक कार्बन एरोसोल ने दक्षिण एशियाई मॉनसून में जल वाष्प की गति को बदलकर तिब्बती पठार के ग्लेशियरों की वास्तविक आपूर्ति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है।
प्रतीकात्मक तस्वीर: जे श्नाइटमैन, जे क्रोलिक (जेएचयू) और एस. नोबल (आरआईटी)/ गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (नासा)
Lalit Maurya
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भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज दिखाती है कि ब्लैक होल कैसे बढ़ते और अपने आसपास के ब्रह्मांड को आकार देते हैं
एन्स्की से निकलने वाले एक्स-रे के विस्फोट, एक सामान्य क्यूपीई से दिखने वाले विस्फोट से 10 गुना लंबे और 10 गुना अधिक चमकदार होते हैं।
Dayanidhi
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अधिकांश आकाशगंगाओं के हृदय में एक विशालकाय ब्लैक होल होता है, जैसे किसी मकड़ी का जाला हो, ये अदृश्य राक्षस अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को निगल जाते हैं
इतिहास के पन्नों से: 1890 के दशक में ग्रांट रोड हॉस्पिटल मुंबई के एक महिला वार्ड में ब्यूबोनिक प्लेग पीड़ित की देखभाल करती नर्सें; इलस्ट्रेशन: आईस्टॉक
Lalit Maurya
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ब्लैक डेथ के नाम से बदनाम यह बीमारी ब्यूबोनिक प्लेग 14 वीं शताब्दी में यूरोप में फैली थी, जिसकी वजह से यूरोप में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी
समय से पहले हो सकती ब्लैक कार्बन की वजह से मृत्यु, शोध में आया सामने
Lalit Maurya
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शोध के अनुसार ब्लैक कार्बन का इंसान के स्वास्थ्य पर अनुमान से कहीं ज्यादा बुरा असर पड़ता है। यही नहीं इसके कारण समय से पहले मृत्यु भी हो सकती है
सूखे के कारण वनस्पति का काफी नुकसान हुआ, जिससे भूमि पारिस्थितिकी तंत्र की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता कमजोर हो गई।
Dayanidhi
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साल 2023 में वायुमंडलीय कार्बन की मात्रा पिछले साल की तुलना में 86 फीसदी बढ़ गई, जो 1958 में निगरानी शुरू होने के बाद से रिकॉर्ड काफी ऊंचा है।
अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित प्रभाव ने प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार को 24 प्रतिशत तक घटा दिया है। यह कमी लगभग 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन के बराबर है।
Dayanidhi
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प्राकृतिक कार्बन भंडारों को बचाना और बहाल करना ही जलवायु संकट से निपटने की सबसे अहम कुंजी है।
खेती में पिसा हुआ कैल्शियम कार्बोनेट (चूना पत्थर) डालने से वातावरण से टनों सीओ2 हटाई जा सकती है, साथ ही कृषि उपज में भी बढ़ोतरी होती है।
Dayanidhi
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कैल्शियम कार्बोनेट से कार्बन अवशोषण बढ़ेगा, मिट्टी की गुणवत्ता सुधरेगी और किसानों को फायदा मिलेगा
वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि जलवायु परिवर्तन के चलते भविष्य में बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।  फोटो: आईस्टॉक
Lalit Maurya
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वैज्ञानिकों के मुताबिक, बिजली गिरने की वजह से नष्ट हुए पेड़ों के सड़ने से हर साल वातावरण में करीब 109 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है
सौर ऊर्जा से बिजली की बचत पर जोर।
Vivek Mishra
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भारत ने 2030 की समय सीमा से पांच साल पहले अपनी कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50 प्रतिशत हिस्सा अब गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त कर लिया है
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