वाराणसी में साल दर साल ब्लैक कार्बन के स्तर में आ रही 0.47 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की कमी

बीएचयू की स्टडी के मुताबिक मानसून से पहले ब्लैक कार्बन के स्तर में सालाना गिरावट का जो आंकड़ा 0.31 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर देखा गया, वो मानसून के बाद 1.86 माइक्रोग्राम/घन मीटर तक पहुंच गया
धुंध की चादर ओढ़े वाराणसी का खूबसूरत घाट; फोटो: आईस्टॉक
धुंध की चादर ओढ़े वाराणसी का खूबसूरत घाट; फोटो: आईस्टॉक
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भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा ब्लैक कार्बन को लेकर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि वाराणसी में ब्लैक कार्बन के स्तर में कमी आ रही है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से जुड़े मौसम विज्ञानी मनोज कुमार श्रीवास्तव के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के मुताबिक वाराणसी सहित मध्य गंगा के मैदानी इलाकों में ब्लैक कार्बन के स्तर में साल दर साल औसतन 0.47 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की कमी दर्ज की गई।

गौरतलब है कि जहां मानसून के बाद इन क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन के स्तर में अधिकतम कमी देखी गई, वहीं मानसून से पहले यह कमी अपने न्यूनतम स्तर पर रहती है। अध्ययन से पता चला है कि मानसून से पहले ब्लैक कार्बन के स्तर में सालाना गिरावट का जो आंकड़ा 0.31 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, वो मानसून के बाद औसत तौर पर 1.86 माइक्रोग्राम/घन मीटर प्रति वर्ष तक पहुंच गया।

बता दें कि ब्लैक कार्बन वायु गुणवत्ता और जलवायु के लिहाज से बेहद खतरनाक होता है। यह वायुमंडल में कम समय तक रहने वाला एक प्रदूषक है, जो बायोमास, जीवाश्म ईंधन और कचरे को जलाने से बनने वाली कालिख के रूप में उत्सर्जित होता है।

इसे कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के बाद जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार दूसरा सबसे महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। यह प्रदूषण के बेहद महीन कण पीएम2.5 का भी एक अहम हिस्सा है। देखा जाए तो यह कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत कम समय के लिए वातावरण में रहता है। लेकिन इसमें वायुमंडल को गर्म करने की कहीं ज्यादा क्षमता होती है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से जुड़े शोधकर्ताओं के दल द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च-एटमॉस्फियर में प्रकाशित हुए हैं। यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य गंगा के मैदान क्षेत्रों और वाराणसी में ब्लैक कार्बन के स्तर का अध्ययन किया है।

अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ब्लैक कार्बन के भौतिक, प्रकाशीय और विकिरण सम्बन्धी प्रभावों को समझने के लिए 2009 से 2021 के बीच 13 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इस अध्ययन का मकसद वाराणसी सहित मध्य गंगा के मैदानों इलाकों में हानिकारक ब्लैक कार्बन की वजह से वातावरण में होने वाले बदलावों को मापना है।

जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक अध्ययन के दौरान वाराणसी में ब्लैक कार्बन का दैनिक स्तर 0.07 से 46.23 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच रहा। इसका औसत स्तर 9.18 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 2009 के बाद से, मध्य गंगा के मैदानी क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन-एयरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग (बीसी-एआरएफ) हर साल कम हो रही है।

अध्ययन में गर्मी, सर्दी और मानसून के मौसम में ब्लैक कार्बन पर अलग-अलग प्रभाव देखे गए। वातावरण के तापमान पर भी ब्लैक कार्बन के प्रभाव में कमी आती देखी गई। मतलब कहीं न कहीं वाराणसी में ब्लैक कार्बन की वजह से वातावरण के तापमान में होती वृद्धि में कमी आ रही है, जोकि पर्यावरण और जलवायु के लिहाज से बेहद अच्छा है।

रिसर्च के अनुसार जहां सर्दियों में ब्लैक कार्बन का औसत स्तर 14.67 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो मानसून के दौरान 4.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक गिर गया। सर्दियों में लकड़ी, कोयला जैसे बायोमास को जलाने, जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने जैसे स्थानीय कारकों के चलते ब्लैक कार्बन का स्तर इतना बढ़ गया।

वाराणसी में यह ब्लैक कार्बन कहां से आ रहा है? इस बारे में वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि यह ब्लैक कार्बन भारत के अन्य हिस्सों, पाकिस्तान और मध्य पूर्व एशिया के अन्य भागों से आ रहा है।

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