क्वासरों ने खोले नए राज: ब्लैक होल की प्रकृति पर नई चुनौती

क्वासरों के पराबैंगनी और एक्स-रे प्रकाश में समय के साथ आए बदलाव ब्लैक होल की संरचना के विकास का संकेत देते हैं
शोध के परिणाम लगभग 50 सालों से मानी जा रही ब्लैक होल की सार्वभौमिक संरचना की धारणा को चुनौती देते हैं।
शोध के परिणाम लगभग 50 सालों से मानी जा रही ब्लैक होल की सार्वभौमिक संरचना की धारणा को चुनौती देते हैं।प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • वैज्ञानिकों ने पाया कि क्वासरों के पराबैंगनी और एक्स-रे प्रकाश का संबंध ब्रह्मांडीय समय के साथ बदलता रहा है।

  • यह खोज दर्शाती है कि सुपरमैसिव ब्लैक होल के आसपास की संरचना हमेशा एक जैसी नहीं रही।

  • अध्ययन में ईरोसिता और एक्सएमएम-न्यूटन टेलीस्कोप के बड़े और नए डेटा का उपयोग किया गया।

  • परिणाम लगभग 50 सालों से मानी जा रही ब्लैक होल की सार्वभौमिक संरचना की धारणा को चुनौती देते हैं।

  • यह शोध क्वासरों को ब्रह्मांड मापने के उपकरण के रूप में उपयोग करने पर दोबारा सोचने की आवश्यकता बताता है।

क्वासर ब्रह्मांड की सबसे चमकीली और रहस्यमय वस्तुओं में से एक हैं। ये इतनी अधिक ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं कि इन्हें अरबों प्रकाश-वर्ष दूर से भी देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हर क्वासर के केंद्र में एक विशाल द्रव्यमान वाला ब्लैक होल होता है, जो अपने आसपास की गैस और धूल को निगल रहा होता है।

हाल ही में खगोलविदों ने एक नई खोज की है, जिसने ब्लैक होल के बारे में हमारी पुरानी समझ को चुनौती दी है।

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दुनिया भर के खगोलविदों की एक टीम ने यह पाया है कि ब्लैक होल के आसपास मौजूद पदार्थ की संरचना समय के साथ बदलती रही है। यह अध्ययन एथेंस के नेशनल ऑब्जर्वेटरी के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया और इसे मासिक नोटिसेज ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

यदि यह खोज पूरी तरह प्रमाणित हो जाती है, तो यह ब्लैक होल पर पिछले लगभग 50 सालों से चली आ रही एक बुनियादी धारणा को बदल सकती है।

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क्वासर की असाधारण चमक का कारण उसका ब्लैक होल है। जब गैस और धूल ब्लैक होल की ओर गिरती है, तो वह एक तेजी से घूमने वाली चपटी संरचना बनाती है, जिसे “एक्रीशन डिस्क” कहा जाता है। इस डिस्क में मौजूद कण आपस में टकराते हैं और घर्षण के कारण अत्यधिक गर्म हो जाते हैं। इस प्रक्रिया से बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है, जो पराबैंगनी यानी अल्ट्रावायलेट प्रकाश के रूप में बाहर आती है।

यह पराबैंगनी प्रकाश इतना शक्तिशाली होता है कि पूरा क्वासर लगभग 100 से 1000 गुना अधिक चमकीला हो सकता है, जितना कि अरबों तारों से भरी एक पूरी आकाशगंगा। इसी कारण क्वासर ब्रह्मांड के बहुत दूरस्थ हिस्सों में भी दिखाई देते हैं।

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वैज्ञानिकों का लंबे समय से मानना रहा है कि क्वासर का पराबैंगनी प्रकाश उसके एक्स-रे प्रकाश से जुड़ा होता है। ब्लैक होल के पास मौजूद अत्यधिक ऊर्जावान कणों का एक क्षेत्र होता है, जिसे “कोरोना” कहा जाता है। जब पराबैंगनी किरणें इस कोरोना से टकराती हैं, तो उनकी ऊर्जा बढ़ जाती है और वे एक्स-रे में बदल जाती हैं। इस कारण पराबैंगनी और एक्स-रे प्रकाश के बीच एक मजबूत संबंध पाया गया है। यह संबंध लगभग 50 साल पहले खोजा गया था और तब से इसे सार्वभौमिक माना जाता रहा है।

नए शोध में इसी धारणा को चुनौती दी गई है। वैज्ञानिकों ने पाया कि जब ब्रह्मांड आज की तुलना में लगभग आधी उम्र का था, तब क्वासरों के पराबैंगनी और एक्स-रे प्रकाश के बीच का संबंध अलग था। इसका मतलब यह हो सकता है कि ब्लैक होल के आसपास मौजूद डिस्क और कोरोना की भौतिक संरचना समय के साथ बदलती रही है।

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शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह खोज चौंकाने वाली है क्योंकि इससे यह संकेत मिलता है कि सुपरमैसिव ब्लैक होल कैसे बढ़ते हैं और ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं, यह प्रक्रिया समय के साथ बदल सकती है। वैज्ञानिकों ने अलग-अलग तरीकों से इस नतीजे की जांच की और पाया कि यह बदलाव लगातार दिखाई देता है।

इस शोध में नई तकनीक और बड़े आंकड़ों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वैज्ञानिकों ने ईरोसिता एक्स-रे टेलीस्कोप से हासिल नए आंकड़े और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक्सएमएम-न्यूटन टेलीस्कोप के पुराने डेटा का उपयोग किया।

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ईरोसिता ने पूरे आकाश का व्यापक सर्वेक्षण किया, जिससे लाखों क्वासरों का अध्ययन संभव हो पाया। हालांकि कई क्वासरों से बहुत कम एक्स-रे फोटॉन मिले, लेकिन उन्नत सांख्यिकीय तरीकों की मदद से वैज्ञानिकों ने इन कमजोर संकेतों से भी महत्वपूर्ण जानकारी निकाली।

यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि क्वासरों का उपयोग कभी-कभी ब्रह्मांड की संरचना को मापने के लिए “मानक मोमबत्ती” के रूप में किया जाता है। यदि उनके प्रकाश संबंध समय के साथ बदलते हैं, तो वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से जुड़े मापों में अधिक सावधानी बरतनी होगी।

भविष्य में ईरोसिता के पूरे आंकड़े और नई पीढ़ी के टेलीस्कोपों की मदद से वैज्ञानिक और भी दूरस्थ और धुंधले क्वासरों का अध्ययन कर पाएंगे। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि यह बदलाव वास्तव में भौतिक प्रक्रियाओं का परिणाम है या फिर अवलोकन की सीमाओं के कारण दिखाई दे रहा है। यह शोध हमें ब्रह्मांड के इतिहास और ब्लैक होल की बदलती प्रकृति को समझने में एक नया रास्ता दिखाता है।

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