काले पदार्थ के ढांचे पर आकाशगंगाएं बनती हैं, वे यहां विकसित होती हैं और इसमें मिल जाती है। वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे हैं कि किस तरह काले पदार्थ के आकार का प्रभाव तारा संबंधी घेरों पर पड़ता है। यह किस तरह कुछ आकाशगंगाओं के केन्द्र में पाये जाने वाले तारों की गति पर प्रभाव डालता है। घेरायुक्त आकाशगंगाओं के बीच के घेरे का आकार का ढांचा तारों से बने होते हैं। इनमें घेरे के पास प्रचंड घटनाएं होती है जिसे बकलिंग के नाम से जाना जाता है।
हमारे ब्रह्मांड में खरबों आकाशगंगाओं के अलग-अलग आकार और प्रकार हैं, जो अपने तारों की गति से निर्धारित होते हैं। हमारी आकाशगंगा, मिल्की वे, एक डिस्क जैसी आकाशगंगा है जो चपटी डिस्क में केन्द्र के आसपास गोलाकार कक्षाओं में घूमते तारों से बनी है। इसके केन्द्र में बाहर निकले हुए हिस्से में तारों के घने समूह होते हैं, इन्हें बल्ज (उभार) कहा जाता है। इन उभारों का आकार लगभग गोलाकार से सपाट हो सकता है, जैसा कि आकाशगंगा डिस्क में होता है।
मिल्की वे के केंद्र में एक सपाट बक्सानुमा या मूंगफली के आकार का उभार होता है। ऐसे उभार आकाशगंगा में तारा संबंधी घेरों के मोटे होने के कारण बनते हैं। यह एक दिलचस्प और प्रबल बकलिंग है, जहां आकाशगंगा डिस्क के सपाट होने के कारण घेरे में झुकाव होता है।
हाल के अनेक सांख्यिकी अध्ययन बताते है कि काला पदार्थ गोलाकार तथा लंबे आकार जो भुजाओं की ओर से दबा हुआ एक गोले की तरह या सपाट ऊपर और नीचे से दबा हुआ एक गोले के आकार में होता है। लेकिन आकार की दृष्टि से आकाशगंगाओं के उभार और घेरों में तारा संबंधी कीनेमेटीक्स पर इसके प्रभाव को अभी तक अच्छी तरह से समझा नहीं गया है।
वर्तमान में यह कार्य भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के पीएचडी छात्र अंकित कुमार की अगुवाई में किया गया है। इसमें आईआईए की प्रोफेसर मौसमी दास और शंघाई जिओ टोंग विश्वविद्यालय के डॉ. संदीप कुमार कटारिया की टीम ने आईआईए में अत्याधुनिक संख्यात्मक सिमुलेशन का उपयोग करके आकाशगंगाओं के गतिशील विकास के बारे में पता लगाया है।
उनके द्वारा किए गए सिमुलेशन से पता चलता है कि 8 अरब वर्षों में फैले हुए काले पदार्थ मंडल में घेरे मुख्य रूप से तीन बार बकलिंग या सपाट झुकाव की घटनाओं से गुजरते हैं जो उन्हें लंबे समय तक पता लगाने लायक बनाते हैं।
यह पहली बार है कि किसी भी अध्ययन में तीन-बार बकलिंग घटनाओं की जानकारी दी गई है। बक्सानुमा या मूंगफली के आकार के उभार, जो घेरे की बकलिंग के परिणामस्वरूप बनते हैं। इन फैले हुए काले पदार्थ मंडल में अधिक मजबूत होते हैं और उनमें बार- बार बकलिंग के संकेत अधिक समय तक होते हैं। यह शोध 'मंथली नोटिसेज ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
उन्होंने अपने निष्कर्ष में कहा कि काले पदार्थ मंडल जो कि भुजाओं की ओर से गोलाकार है इनमें सिमुलेशन के साथ-साथ देखी गई कई बकलिंग की घटनाओं से संकेत मिलता है कि अधिकांश अवरुद्ध हुए आकाशगंगाओं में धुंधले पदार्थ मंडल की आकृतियां चपटी हो सकती हैं, जो ऊपर से नीचे तक दबी हुई या गोलाकार हो सकती हैं।
अध्यनकर्ता अंकित कुमार ने बताया कि हमने डिस्क जैसी आकाशगंगाओं के आकार में बिना गोलाकार वाले काले पदार्थ मंडल के प्रभाव का अध्ययन नकली आकाशगंगाओं को उत्पन्न करके किया है। उन्होंने कहा इसके लिए हमने बेंगलुरु के आईआईए में उपलब्ध सुपरकंप्यूटिंग सुविधा का उपयोग करते हुए उन्हें विकसित किया है।
अंकित कुमार ने कहा हमारे ब्रह्मांड में हो रही बकलिंग की घटनाओं का पता लगाना बहुत दुर्लभ है। हमारी जानकारी में केवल 8 आकाशगंगाएं देखी गई हैं जो वर्तमान में बकलिंग के दौर से गुजर रही हैं। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि अधिकांश घेरेदार आकाशगंगाएं प्रोलेट हैलो के बजाय अधिक चपटी या गोलाकार हो सकती हैं।
उन्होंने बताया कि बकलिंग की प्रत्येक घटना घेरे को और अधिक मोटा कर देती है। पहले बकलिंग के दौरान घेरे के अंदर का एक इलाका मोटा हो जाता है, जबकि बाद की बकलिंग की घटनाओं में घेरे का बाहरी क्षेत्र मोटा हो जाता है। प्रोलेट हेलो में घेरा तीन अलग-अलग बकलिंग की घटनाओं को दिखाता है इसलिए घेरा प्रोलेट हेलो में सबसे मोटा हो जाता है। परिणामस्वरूप सबसे मजबूत बक्सानुमा या मूंगफली के आकार का उभार प्रोलेट मंडल में बनता है।
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) की प्रो. मौसमी दास और डॉ. संदीप कटारिया ने बताया कि हेलो स्पिन को समझने के लिए धुधला पदार्थ मंडल का आकार महत्वपूर्ण है, जो कि दुनिया भर में कई आकाशगंगा सिमुलेशन समूहों द्वारा किए जा रहे अध्ययनों का एक क्षेत्र है।