भारतीय शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड में तीन विशाल ब्लैक होलों की खोज की

सुपरमैसिव ब्लैक होल का पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि वे कोई प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते हैं, लेकिन वे अपने परिवेश के साथ परस्पर प्रभाव से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकते हैं।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स, एनजीसी 3783
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भारतीय शोधकर्ताओं ने तीन आकाशगंगाओं से तीन सुपरमैसिव ब्लैक होलों की खोज की है। ये आपस में एक साथ मिलकर एक तिहरा सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक (न्यूक्लियस) बनाते हैं। नई खोजी गई आकाशगंगा के केंद्र में एक सघन क्षेत्र है जिसमें सामान्य से बहुत अधिक चमक है।

हमारे आस-पास के ब्रह्मांड में यह दुर्लभ घटना बताती है कि छोटे-छोटे आपस में मिलने वाले समूह कई साथ में बनने वाले सुपरमैसिव ब्लैक होल का पता लगाने के लिए आदर्श प्रयोगशाला हैं। इस तरह की चीजें ऐसी और भी दुर्लभ घटनाओं का पता लगाने की संभावना को बढ़ाते हैं।

सुपरमैसिव ब्लैक होल का पता लगाना मुश्किल होता है क्योंकि वे कोई प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते हैं। लेकिन वे अपने परिवेश के साथ परस्पर प्रभाव से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकते हैं। जब आसपास से धूल और गैस एक सुपरमैसिव ब्लैक होल पर गिरती है, कुछ भाग ब्लैक होल द्वारा निगल लिया जाता है। इसमें से कुछ ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है और विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में उत्सर्जित होता है जिससे ब्लैक होल बहुत चमकदार दिखाई देता है।

उन्हें सक्रिय गांगेय नाभिक या एक्टिव गैलेक्टिक नुक्ले (एजीएन) कहा जाता है और आकाशगंगा और उसके वातावरण में भारी मात्रा में आयनित कण और ऊर्जा छोड़ते हैं। ये दोनों आखिरकार आकाशगंगा के चारों ओर माध्यम के विकास में योगदान करते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) के शोधकर्ताओं की एक टीम जिसमें ज्योति यादव, मौसमी दास और सुधांशु बारवे शामिल हैं, कॉलेज डी फ्रांस के फ्रैंकोइस कॉम्ब्स, चेयर गैलेक्सीज एट कॉस्मोलॉजी, पेरिस, की एक मानी जोड़ीजोड़ी आकाशगंगा के एनजीसी 7733, और एनजीसी 7734 का अध्ययन कर रहे हैं।  

अध्ययन में एनजीसी 7734 के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन और एनजीसी 7733 की उत्तरी भुजा के साथ एक बड़े, चमकीले झुरमुट का पता चला। उनकी आगे की जांच से पता चला है कि झुरमुट आकाशगंगा एनजीसी 7733 की तुलना में एक अलग गति से आगे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना था कि यह झुरमुट एनजीसी 7733 का हिस्सा नहीं था, बल्कि, यह बांह के पीछे एक छोटी अलग आकाशगंगा थी। उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी 7733एन रखा है।  

इस अध्ययन में पहले भारतीय अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट पर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (यूवीआईटी) के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया। यूरोपीय इंटीग्रल फील्ड ऑप्टिकल टेलीस्कोप जिसे एमयूएसई कहा जाता है, चिली में वेरी लार्ज टेलीस्कोप (वीएलटी) पर और दक्षिण अफ्रीका में ऑप्टिकल टेलीस्कोप (आईआरएसएफ) से इंफ्रारेड इमेज पर लगाया गया है। यह अध्ययन जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रकाशित हुआ है।

यूवी और एच-अल्फा छवियों ने बढ़ते अंतिम भाग के साथ स्टार गठन का खुलासा करके तीसरी आकाशगंगा की उपस्थिति का भी समर्थन किया, जो कि बड़ी आकाशगंगा के साथ एनजीसी 7733 एन के मिलने से बन सकता था। प्रत्येक आकाशगंगा अपने नाभिक में एक सक्रिय सुपरमैसिव ब्लैक होल की मेजबानी करती है और इसलिए एक बहुत ही दुर्लभ तिहरा एक्टिव गैलेक्टिक नुक्ले (एजीएन) प्रणाली बनाती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक आकाशगंगा के विकास को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक आकाशगंगा का परस्पर क्रिया करना है, जो तब होता है जब आकाशगंगाएं एक-दूसरे के करीब आती हैं और एक-दूसरे पर जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण बल लगाती हैं। इस तरह की आकाशगंगा के परस्पर प्रभाव के दौरान, संबंधित सुपरमैसिव ब्लैक होल एक दूसरे के पास आ सकते हैं। दोहरे ब्लैक होल अपने परिवेश से गैस का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और दोहरे एक्टिव गैलेक्टिक नुक्ले (एजीएन) बन जाते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) की टीम बताती है कि अगर दो आकाशगंगाएं टकराती हैं, तो उनका ब्लैक होल भी गतिज ऊर्जा को आसपास की गैस में बदल देते हैं और करीब आ जाते हैं। ब्लैक होल के बीच की दूरी समय के साथ घटती जाती है जब तक कि इनके अलग होने का एक पारसेक (3.26 प्रकाश-वर्ष) के आसपास न हो जाए।

दो ब्लैक होल तब और अधिक गतिज ऊर्जा खोने में असमर्थ होते हैं ताकि वे और भी करीब आ सकें और एक दूसरे में मिल जाएं। इसे अंतिम पारसेक समस्या के रूप में जाना जाता है। तीसरे ब्लैक होल की उपस्थिति इस समस्या को हल कर सकती है। दो मिलने वाले ब्लैक होल अपनी ऊर्जा को तीसरे ब्लैक होल में बदल सकते हैं और एक दूसरे के साथ मिल सकते हैं।

यहां बताते चलें कि पारसेक - खगोल विज्ञान में उपयोग की जाने वाली दूरी की एक इकाई, लगभग 3.26 प्रकाश वर्ष (3.086 × 1013 किलोमीटर) के बराबर है। एक पारसेक उस दूरी को कहा जाता है जिस पर पृथ्वी की कक्षा की माध्य त्रिज्या चाप के एक सेकंड के कोण का अंतर होता है।

अतीत में कई एक्टिव गैलेक्टिक नुक्ले (एजीएन) जोड़ों का पता चला है, लेकिन तिहरा एजीएन अत्यंत दुर्लभ हैं और एक्स-रे अवलोकनों का उपयोग करने से पहले केवल कुछ ही का पता चला है। हालांकि, आईआईए की टीम को उम्मीद है कि आकाशगंगाओं के छोटे विलय वाले समूहों में ऐसा तिहरा एजीएन प्रणाली अधिक सामान्य होगी।

हालांकि यह अध्ययन केवल एक प्रणाली पर केंद्रित है, परिणाम बताते हैं कि छोटे आपस में मिलने वाले (विलय) समूह कई सुपरमैसिव ब्लैक होल का पता लगाने के लिए आदर्श प्रयोगशालाएं हैं।

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