आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने उजागर किया ब्लैक होल से आने वाले रहस्यमयी संकेतों का राज

भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज दिखाती है कि ब्लैक होल कैसे बढ़ते और अपने आसपास के ब्रह्मांड को आकार देते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर: जे श्नाइटमैन, जे क्रोलिक (जेएचयू) और एस. नोबल (आरआईटी)/ गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (नासा)
प्रतीकात्मक तस्वीर: जे श्नाइटमैन, जे क्रोलिक (जेएचयू) और एस. नोबल (आरआईटी)/ गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (नासा)
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इंसान सदियों से ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्यों को समझने की कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल से आने वाले रहस्यमयी संकेतों को समझने में बड़ी सफलता हासिल की है।

इस शोध में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के यू आर राव सैटेलाइट सेंटर और इजराइल की हाइफा यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं ने भी योगदान दिया है। इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल मंथली नोटिसेज ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 28,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित ब्लैक होल (जीआरएस 1915+105) से निकलने वाले रहस्यमयी एक्स-रे संकेतों का पता लगाया है। भारत की स्पेस ऑब्जर्वेटरी ‘एस्ट्रोसैट’ से मिले आंकड़ों से पता चला कि इस ब्लैक होल से आने वाली एक्स-रे रोशनी बार-बार तेज और मंद होती रहती है।

इस तरह ब्लैक होल से आने वाली एक्स-रे रोशनी दो चरणों में बदलती है, इसमें एक तेज और एक मंद होता है। इसका यह हर चरण कई सौ सेकंड तक चलता है और एक तय पैटर्न में दोहराता है।  

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प्रतीकात्मक तस्वीर: जे श्नाइटमैन, जे क्रोलिक (जेएचयू) और एस. नोबल (आरआईटी)/ गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (नासा)

अध्ययन से पता चला है कि तेज रोशनी के चरण में झिलमिलाहट सबसे अधिक होती है, इस समय ब्लैक होल के चारों ओर गैस की परत जिसे कोरोना के रुप में जाना जाता है, सिकुड़कर ज्यादा गर्म हो जाती है, जबकि मंद रोशनी के समय यह फैलकर ठंडी पड़ जाती है।

यह साफ संकेत देता है कि तेज संकेतों का स्रोत ब्लैक होल के चारों ओर मौजूद यही बदलता हुआ कोरोना है।

गौरतलब है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक ब्लैक होल के रहस्यों को समझने में जुटे हैं। ब्लैक होल अपने पास मौजूद तारों की गैस खींचते हैं, जिससे अत्यधिक गर्मी पैदा होती है और एक्स-रे किरणे निकलती है। इन एक्स-रे का अध्ययन करके वैज्ञानिक ब्लैक होल के आसपास के वातावरण को समझने का प्रयास करते हैं।

क्या हैं इस खोज के मायने?

अध्ययन के नतीजों पर प्रकाश डालते हुए आईआईटी गुवाहाटी में भौतिकी विभाग के प्रोफेसर संतब्रत दास ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि हमें पहली बार ब्लैक होल से निकलने वाली एक्स-रे की तेज झिलमिलाहट के प्रमाण मिले हैं।

यह झिलमिलाहट प्रति सेकंड करीब 70 बार होती है, लेकिन यह केवल उज्ज्वल चरणों में ही दिखाई देती है और मंद चरणों में पूरी तरह गायब हो जाती है।"

प्रोफेसर दास का कहना है कि यह खोज एस्ट्रोसैट की अनोखी क्षमताओं से ही संभव हो पाई है।”

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यह खोज दर्शाती है कि ब्लैक होल के चारों ओर मौजूद कोरोना कोई स्थाई संरचना नहीं है, बल्कि गैस के प्रवाह के अनुसार इसका आकार और ऊर्जा बदलती रहती है।

इस अध्ययन ने ब्लैक होल के रहस्यमयी किनारों पर मौजूद चरम गुरुत्वाकर्षण और तापमान की बेहतर समझ को नई दिशा दी है। नतीजे बताते हैं कि कैसे ब्लैक होल न केवल बढ़ते हैं, बल्कि अपने आस-पास की ऊर्जा और गैस को खींचते और छोड़ते भी हैं। इसका असर उनके आसपास के परे वातावरण पर पड़ता है। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कैसे ब्लैक होल पूरी आकाशगंगा के विकास को प्रभावित कर सकते हैं।

शोध के महत्व पर प्रकाश डालते हुए यू आर राव सैटेलाइट सेंटर डॉक्टर अनुज नंदी ने कहा कि शोध ने एक्स-रे की झिलमिलाहट के स्रोत का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है। अध्ययन में पहली बार सामने आया है कि यह झिलमिलाहट ब्लैक होल के चारों ओर मौजूद कोरोना की हलचलों से जुड़ी है।

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