जलवायु संकट: जून में बढ़ते तापमान ने तोड़े पिछले सारे रिकॉर्ड, सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा तापमान

पिछले 12 महीनों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो बढ़ता तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया है, जो धरती पर मंडराते बड़े खतरे को उजागर करता है
वैश्विक रूप से जिस तरह गर्मी बढ़ रही है, उससे इंसान ही नहीं जानवरों का भी जीवन मुहाल हो गया है। फोटो: आईस्टॉक
वैश्विक रूप से जिस तरह गर्मी बढ़ रही है, उससे इंसान ही नहीं जानवरों का भी जीवन मुहाल हो गया है। फोटो: आईस्टॉक
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हमारा ग्रह अब पहले जैसा नहीं रहा, जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान इस पर गहरा असर डाल रहा है। नतीजन दिन-प्रतिदिन जलवायु आपदाओं का कहर पहले से कहीं ज्यादा हावी होता जा रहा है। बढ़ते तापमान का आलम यह है कि पिछले 12 महीनों कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जब बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो। ऐसा ही कुछ जून में भी दर्ज किया गया।

जून में बढ़ती गर्मी का कहर भारत सहित दुनिया के कई देशों पर पूरी तरह हावी रहा। इसकी पुष्टि आंकड़े भी करते हैं। यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने पुष्टि की है कि जून में वैश्विक औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले (1850 से 1900) की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। जलवायु रिकॉर्ड में देखें तो यह अंतर बहुत बड़ा है। देखा जाए तो यह लगातार बारहवां महीना है जब वैश्विक तापमान में होती वृद्धि ने डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को छुआ या उसे पार किया है।

वहीं यदि जून 1991-2020 के औसत के आधार पर देखें तो जून 2024 का तापमान 0.67 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। कॉपरनिकस के मुताबिक जून 2024 में सतह के पास हवा का वैश्विक औसत तापमान 16.66 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जिसने जून 2023 में बनाए पिछले रिकॉर्ड को 0.14 डिग्री सेल्सियस से तोड़ दिया।

जून 1991-2020 के औसत के आधार पर देखें तो जून 2024 का तापमान 0.67 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। कॉपरनिकस के मुताबिक जून 2024 में सतह के पास हवा का वैश्विक औसत तापमान 16.66 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जिसने जून 2023 में बनाए पिछले रिकॉर्ड को 0.14 डिग्री सेल्सियस से तोड़ दिया।

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देखा जाए तो तापमान के रिकॉर्ड बनाने का सिलसिला जो जून 2023 से शुरू हुआ, वो अब तक नहीं थमा है। महीने दर महीने बढ़ता तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है। यह सिलसिला जून 2024 में भी जारी रहा। मतलब की पिछले 12 महीनों में कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जिसने नया रिकॉर्ड न कायम किया हो।

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यदि पिछले 12 महीनों (जुलाई 2023 से जून 2024) के वैश्विक औसत तापमान को देखें तो यह जलवायु इतिहास के अब तक के बारह सबसे गर्म महीने हैं। इन महीनों के दौरान औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले के औसत तापमान से 1.64 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है। कहीं न कहीं यह इस बात का जीता जागता सबूत है कि हमारी धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है। इसपर यदि जल्द से जल्द कार्रवाई न की गई तो मानवता को इसका भारी खामियाजा भरना पड़ सकता है।

इस साल की शुरूआत ही अब तक की सबसे गर्म जनवरी के साथ हुई, जब वैश्विक औसत तापमान में 1.66 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं 1991 से 2020 के दरमियान जनवरी के औसत तापमान से तुलना करें तो वो 0.7 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

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ऐसा ही कुछ फरवरी 2024 में भी देखने को मिला। औद्योगिक काल से पहले की तुलना में देखें तो फरवरी 2024 का औसत तापमान 1.77 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया। मार्च 2024 ने भी गर्मी के पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए, और बढ़ता तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.68 डिग्री अधिक दर्ज किया गया।

इसी तरह अप्रैल और मई भी अप्रत्याशित रूप से गर्म रहे। नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) ने पुष्टि की है कि अप्रैल 2024 अब तक का सबसे गर्म अप्रैल का महीना था। वहीं कॉपरनिकस के मुताबिक अप्रैल 2024 में तापमान औद्योगिक काल से पहले के औसत तापमान से 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। तापमान में होती वृद्धि का यह सिलसिला मई में भी जारी रहा जब बढ़ता तापमान नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।  

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी जून 2024 को लेकर पुष्टि की है कि वो भारत के जलवायु इतिहास में 1901 के बाद से अब तक का सबसे गर्म जून का महीना था। यूरोप से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले महीने जून 2024 में, यूरोप का औसत तापमान जून 1991 से 2020 के औसत तापमान से 1.57 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। इस तरह वह रिकॉर्ड पर यूरोप का दूसरा सबसे गर्म जून बन गया है।

इस दौरान दक्षिण-पूर्वी यूरोप और तुर्की में तापमान सबसे अधिक रहा, वहीं दूसरी ओर पश्चिमी यूरोप, आइसलैंड और उत्तर-पश्चिमी रूस में तापमान औसत के करीब या उससे कम था। यूरोप के बाहर भी पूर्वी कनाडा, पश्चिमी अमेरिका, मैक्सिको, ब्राजील, उत्तरी साइबेरिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी अंटार्कटिका में तापमान औसत से काफी ऊपर था।

इसके विपरीत, पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में तापमान औसत से नीचे दर्ज किया गया, जो ला नीना के विकसित होने का संकेत देता है। हालांकि, कई क्षेत्रों में समुद्र के ऊपर हवा का तापमान असामान्य रूप से उच्च रहा।

देखा जाए तो दुनिया में बढ़ता तापमान थमने का नाम ही नहीं ले रहा। गर्मी ऐसी कि इंसान ही नहीं पेड़-पौधे, जानवर हर कोई कुम्हला जाए। ऐसा लगता है कि दुनिया में बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड बनाने की एक होड़ सी लग गई है।

कॉपरनिकस द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते तापमान का असर धरती ही नहीं समुद्रों पर भी पूरी तरह हावी है। आंकड़ों के अनुसार यह लगातार 15वां महीना है जब जून 2024 में समुद्र की सतह का तापमान नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया।

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मतलब साफ है कि जिस तरह से तापमान में इजाफा हो रहा है वो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि 2024 भी अब तक के सबसे गर्म वर्ष होने की राह पर है। बता दें कि अब तक के सबसे गर्म वर्ष होने का यह रिकॉर्ड 2023 के नाम दर्ज है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने भी 2024 से 2028 के लिए जारी एक रिपोर्ट में आशंका जताई है कि अगले पांच वर्षों में से कम से कम एक वर्ष अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा, जब बढ़ता तापमान 2023 को पीछे छोड़ देगा।

जून 2024 में आइसलैंड, मध्य और दक्षिण-पश्चिमी यूरोप में औसत से अधिक बारिश हुई जिससे जर्मनी, इटली, फ्रांस और स्विटजरलैंड के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति बन गई। वहीं आयरलैंड, ब्रिटेन के ज्यादातर हिस्सों दक्षिणी इटली और पूर्वी यूरोप के ज्यादातर हिस्सों खास तौर पर काला सागर के आस-पास, औसत से ज्यादा सूखा रहा।

इसी तरह उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में औसत से अधिक बारिश देखी गई। इस दौरान बेरिल समेत कई तूफान आए, साथ ही दक्षिण-पश्चिमी और दक्षिण-पूर्वी एशिया, दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका के क्षेत्रों में भी तूफान दर्ज किए गए। दूसरी तरफ उत्तरी अमेरिका, एशिया के कई क्षेत्रों और दक्षिण अमेरिका के ज्यादातर हिस्से औसत से ज्यादा सूखे रही। इस दौरान उत्तर-पूर्वी रूस और मध्य दक्षिण अमेरिका के जंगलों में भीषण आगजनी की घटनाएं दर्ज की गई।

आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ की देखें तो वो औसत से तीन फीसदी कम रही। इसी तरह अंटार्कटिक समुद्री बर्फ की मात्रा औसत से 12 फीसदी कम दर्ज की गई। जो उपग्रह द्वारा दर्ज आंकड़ों में जून के लिए दूसरी सबसे कम सीमा थी। इससे पहले जून 2023 में यह सीमा 16 फीसदी कम रिकॉर्ड की गई थी।

कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के निदेशक कार्लो बुओनटेम्पो ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “जून लगातार 13वां महीना है जब बढ़ते तापमान ने पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। वहीं औद्योगिक काल से पहले की तुलना में देखें तो यह लगातार बारहवां महीना है जब बढ़ते तापमान ने डेढ़ डिग्री की सीमा को पार किया है। यह हमारी जलवायु में निरंतर आते बड़े बदलावों को उजागर करता है।“

उनके मुताबिक भले ही बढ़ते तापमान का यह सिलसिला थम जाए, लेकिन जब तक हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बंद नहीं करते, तब तक नए रिकॉर्ड बनते रहेंगे।

बढ़ते तापमान के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का भी कहना है कि पिछले एक साल से हर बीतते दिन के साथ धरती और गर्म होती जा रही है। हमारा ग्रह हमें कुछ बताने की कोशिश कर रह रहा है, लेकिन लगता नहीं कि हम उसको सुनने के लिए गंभीर हैं। उनके मुताबिक यह जलवायु संकट का समय है, जिससे बचने के लिए मानव जाति को एकजुट होकर जलवायु में आते इन बदलावों को रोकने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।

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