जनवरी के बाद फरवरी ने भी तोड़े बढ़ते तापमान के रिकॉर्ड, सामान्य से 1.77 डिग्री ज्यादा रहा तापमान

बढ़ता तापमान किस कदर दुनिया पर हावी हो चुका है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगातार पिछले नौ महीनों ने जलवायु रिकॉर्ड बनाए हैं
बढ़ते तापमान से किसानों की जीविका पर भी खतरा मंडराने लगा है; फोटो: आईस्टॉक
बढ़ते तापमान से किसानों की जीविका पर भी खतरा मंडराने लगा है; फोटो: आईस्टॉक
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2024 शुरूआत से ही बढ़ते तापमान की चपेट में है, पहले जनवरी और अब फरवरी ने भी बढ़ते तापमान के पिछले सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। जलवायु आंकड़ों की मानें तो फरवरी 2024 में बढ़ता तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में फरवरी के औसत तापमान से 1.77 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है, जो उसे जलवायु इतिहास की अब तक की सबसे गर्म फरवरी बनाता है।

इस बारे में यूरोप की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने पुष्टि की है कि फरवरी के दौरान सतह पर हवा का औसत तापमान बढ़कर 13.54 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था, जो 1991 से 2020 के बीच फरवरी में दर्ज औसत तापमान की तुलना में 0.81 ज्यादा था। बता दें कि कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस यूरोपियन यूनियन के अर्थ ऑब्जरवेशन प्रोग्राम का हिस्सा है।

इसी तरह पिछले सबसे गर्म फरवरी से इसकी तुलना करें तो फरवरी 2024 में तापमान उससे 0.12 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। बता दें कि इससे पहले अब तक की सबसे गर्म फरवरी 2016 में दर्ज की गई थी। वहीं यदि पिछले 12 महीनों यानी मार्च 2023 से फरवरी 2024 के बीच बढ़ते वैश्विक औसत तापमान को देखें तो औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.56 डिग्री सेल्सियस अधिक था। वहीं 1991 से 2020 की अवधि के आधार पर देखें तो उसकी तुलना में यह तापमान 0.68 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है।

दुनिया पर पूरी तरह हावी हो चुका है बढ़ता तापमान

बढ़ता तापमान किस कदर दुनिया पर हावी हो चुका है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगातार पिछले नौ महीनों ने जलवायु रिकॉर्ड बनाए हैं। इनमें से सभी महीने अब तक के सबसे गर्म रहे। गौरतलब है कि इस साल जनवरी में भी बढ़ता तापमान सामान्य यानी औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.66 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।

फरवरी 2024 में बढ़ता तापमान किस कदर हावी था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फरवरी के शुरूआती दिन बहुत ज्यादा गर्म रहे। वहीं आठ से 11 फरवरी के बीच तो स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि इन चार दिनों में तापमान लगातार दो डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंच गया।

देखा जाए तो फरवरी के दौरान बढ़ता तापमान पूरी दुनिया में असमानताओं से भरा था। फरवरी 2024 के दौरान जहां यूरोप में 1991 से 2020 के बीच फरवरी में रहे औसत तापमान से 3.3 डिग्री सेल्सियस अधिक था। वहीं मध्य और पूर्वी यूरोप में तो औसत तापमान की स्थिति इसके कहीं ज्यादा खराब थी। इसी तरफ फरवरी 2024 के दौरान उत्तरी साइबेरिया, उत्तरी अमेरिका के मध्य और उत्तर-पश्चिमी हिस्सों, अधिकांश दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में तापमान औसत से कहीं ज्यादा रहा।

मौजूदा आंकड़ों को देखें तो बढ़ता तापमान पूरी तरह हावी है। जून 2023 से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो। यदि 2023 के तापमान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वो उसे अब तक का सबसे गर्म वर्ष बनाते हैं।

देखा जाए तो इस बढ़ते तापमान में अल नीनो की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपने नए अपडेट में कहा है कि इस साल मार्च से मई के बीच अल नीनो के बने रहने की आशंका करीब 60 फीसदी है। वहीं इसके अप्रैल से जून के बीच तटस्थ रहने की 80 फीसदी संभावना जताई जा रही है।

बता दें कि 2023-24 में घटी अल नीनो की घटना अब तक की पांच सबसे मजबूत अल नीनों की घटनाओं में से एक है। जो नवंबर-दिसंबर 2023 में अपने चरम पर पहुंच गई थी और धीरे-धीरे कमजोर पड़ रही है। हालांकि वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि यह इसके बावजूद आने वाले महीनों में जलवायु को प्रभावित करती रहेगी।

ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अगले तीन महीनों में दुनिया के करीब-करीब सभी हिस्सों में तापमान सामान्य से ज्यादा रह सकता है। साथ ही बारिश का पैटर्न भी प्रभावित हो सकता है

इस बारे में डब्ल्यूएमओ महासचिव सेलेस्टे साउलो ने जोर देकर कहा है कि, "अल नीनो ने इस बढ़ते तापमान में योगदान दिया है, लेकिन इसका मुख्य कारण निस्संदेह ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन है जो गर्मी को रोक रहीं हैं।"

वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान को देखें तो ऐसा नहीं है कि वो केवल जमीन को प्रभावित कर रहा है। इससे समुद्र भी सुरक्षित नहीं है। आंकड़ों की मानें तो फरवरी 2024 में वैश्विक स्तर पर समुद्र की सतह का औसत तापमान 21.06 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था, जो किसी भी महीने के लिए सबसे अधिक है। इससे पहले समुद्र में अब तक का उच्चतम तापमान अगस्त 2023 में दर्ज किया गया था, जो 20.98 डिग्री सेल्सियस था। आंकड़ों को देखें तो फरवरी 2024 में महीने के अंत तक समुद्र की सतह का वैश्विक औसत तापमान बढ़कर 21.09 डिग्री सेल्सियस की नई ऊंचाई पर पहुंच गया था।

बढ़ते तापमान के साथ बढ़ रहा है बाढ़-तूफान का खतरा

इस अवधि के दौरान होने वाली बारिश की बात करें तो उत्तरी अमेरिका के पश्चिम और उत्तर-पूर्वी हिस्सों के साथ-साथ यूरेशिया से मध्य एशिया तक के एक बड़े क्षेत्र में, चीन और जापान के कुछ हिस्सों में दक्षिण-पूर्वी ब्राजील और दक्षिणी अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में औसत से अधिक बारिश हुई थी। इसी तरह यूरोप में इबेरियन प्रायद्वीप से पश्चिमी रूस तक, यूके, आयरलैंड, दक्षिणी स्कैंडिनेविया और आल्प्स के एक बड़े हिस्से में औसत से अधिक बारिश देखी गई। इसी तरह इटली के अधिकांश हिस्सों में भी औसत से अधिक वर्षा देखी गई।

वहीं दूसरी तरफ उत्तरी अमेरिका, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, दक्षिण मध्य एशिया, दक्षिणी अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में औसत से अधिक शुष्क स्थितियां दर्ज की गई, जो अक्सर जंगल में लगने वाली आग के लिए जिम्मेवार थी।

कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने यह भी पुष्टि की है कि दिसंबर 2023 से फरवरी 2024 के बीच पश्चिमी उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों, यूरेशिया और मध्य एशिया के साथ-साथ चीन, जापान, पाकिस्तान, उत्तरी भारत, उत्तरी और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी ब्राजील में औसत से अधिक बारिश दर्ज की गई। 

वहीं यदि ध्रुवों पर जमा बर्फ को देखें तो फरवरी 2024 के दौरान आर्कटिक में बर्फ का विस्तार औसत से दो फीसदी कम रहा। दूसरी तरफ अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ अपनी वार्षिक न्यूनतम मासिक सीमा तक पहुंच गई, जो आंकड़ों के मुताबिक तीसरी सबसे कम रही। आंकड़ों की मानें तो इस दौरान अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 28 फीसदी कम रहा, जो फरवरी 2023 में इसकी न्यूनतम सीमा के करीब-करीब बराबर है। बता दें कि फरवरी 2023 में अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 33 फीसदी कम था। 

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