जलवायु संकट: जनवरी 2024 ने तोड़े पिछले रिकॉर्ड, सामान्य से 1.66 डिग्री ज्यादा रहा तापमान

वहीं पिछले 12 महीनों की बात करें तो बढ़ता तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया है, जो हमारे ग्रह पर मंडराते बड़े खतरे को उजागर करता है
पानी की कमी से सूखा पड़ा तल; फोटो: आईस्टॉक
पानी की कमी से सूखा पड़ा तल; फोटो: आईस्टॉक
Published on

2024 की शुरूआत से ही नए जलवायु रिकॉर्ड बनने का सिलसिला शुरू हो चुका है। जलवायु आंकड़ों की मानें तो जनवरी 2024 अब तक का सबसे गर्म जनवरी रहा। जब बढ़ता तापमान एक नए स्तर पर पहुंच गया। यूरोप की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने इसकी पुष्टि की है।

जनवरी 2024 में बढ़ता तापमान औद्योगिक काल (1850 से 1900) से पहले की तुलना में 1.66 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा, जो इसे अब तक की सबसे गर्म जनवरी बनाता है। बता दें कि कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस यूरोपियन यूनियन के अर्थ ऑब्जरवेशन प्रोग्राम का हिस्सा है।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2024 के दौरान सतह के पास हवा का औसत वैश्विक तापमान 13.14 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो 1991 से 2020 के दरमियान जनवरी माह में दर्ज औसत तापमान से करीब 0.7 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है।

वहीं पिछली सबसे गर्म जनवरी से इसकी तुलना करें, तो तापमान 0.12 डिग्री सेल्सियस अधिक है। गौरतलब है कि इससे पहले साल 2020 में जनवरी का तापमान 1991 से 2020 के औसत तापमान की तुलना में 0.58 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था। देखा जाए तो यह बढ़ता तापमान कहीं न कहीं एक बार फिर इस बात की चेतावनी है कि हमारी दुनिया कितनी तेजी से गर्म हो रही है।

खतरे की घंटी: डेढ़ डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचा बढ़ता तापमान

आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले बारह महीनों (फरवरी 2023 - जनवरी 2024) में, वैश्विक औसत तापमान अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। जो 1991-2020 के औसत तापमान की तुलना में 0.64 डिग्री सेल्सियस और औद्योगिक काल से पहले के औसत तापमान से करीब 1.52 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

मतलब की यह पहला मौका है जब 12 महीनों के दौरान वैश्विक तापमान में होती वृद्धि ने डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार किया है। गौरतलब है कि पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए दुनिया के सभी देशों ने प्रतिबद्धता जताई थी। वैज्ञानिक भी इसको लेकर चेता चुके हैं कि यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि इस सीमा को पार करती है तो मानवता को इसका भारी खामियाजा चुकाना पड़ सकता है। 

वहीं यदि यूरोप को देखें तो जनवरी 2024 में तापमान में काफी विषमता देखी गई। जहां नॉर्डिक देशों में औसत से बहुत ज्यादा ठंडा था, वहीं यूरोप के दक्षिणी हिस्सों में तापमान बहुत अधिक रहा।

यदि इस दौरान दुनिया के अन्य हिस्सों को देखें तो जहां पूर्वी कनाडा, उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका, मध्य पूर्व और मध्य एशिया में तापमान सामान्य से काफी अधिक था। वहीं पश्चिमी कनाडा, मध्य अमेरिका और पूर्वी साइबेरिया के अधिकांश हिस्सों में तापमान औसत से नीचे रहा।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक मॉन्ट्रियल में लगातार दूसरे महीने तापमान 1981 से 2010 के औसत तापमान से चार डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। इसी तरह उत्तरी क्यूबेक में भी यह औसत से करीब सात डिग्री सेल्सियस अधिक था। वहीं उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका में गर्मी के कहर के साथ बारिश में भी कमी दर्ज की गई है। यहां तक की कुछ क्षेत्रों में बिल्कुल बारिश नहीं हुई, जिसकी वजह से सूखे को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

दक्षिण अमेरिका के उत्तर में कोलंबिया से लेकर दक्षिण में चिली और अर्जेंटीना तक के देशों में लू का कहर महसूस किया जा रहा है। ऐसा ही कुछ ऑस्ट्रेलिया में भी दर्ज किया गया जिसने अब तक की तीसरी सबसे गर्म जनवरी का अनुभव किया।

कमजोर पड़ने लगा है अल नीनो 

हालांकि वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में अल नीनो अब कमजोर पड़ने लगा है, लेकिन इसके बावजूद कुल मिलाकर समुद्री तापमान असाधारण रूप से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि हमारी धरती ही नहीं समुद्र भी बड़ी तेजी से गर्म हो रहें हैं, जिनकी वजह से पूरी दुनिया में मौसमी हलचलें महसूस की जा रहीं हैं।

आंकड़ों के मुताबिक जनवरी के दौरान समुद्र की सतह का औसत तापमान 20.97 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। जो 2016 में पिछले सबसे गर्म जनवरी से 0.26 डिग्री सेल्सियस अधिक है। वहीं 31 जनवरी 2024 के बाद देखें तो समुद्री तापमान ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले साल 2023 भी जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। वहीं पिछले जून से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब बढ़ते तापमान ने रिकॉर्ड न बनाया हो। जलवायु वैज्ञानिकों ने इस बढ़ते तापमान के लिए इंसानों द्वारा बेतहाशा जलाए जा रहे जीवाश्म ईंधन को जिम्मेवार माना है। इसके साथ ही अल नीनो ने भी इसपर प्रभाव डाला है। देखा जाए तो तापमान में होती वृद्धि, बारिश के पैटर्न में आता बदलाव और ध्रुवों पर घटती बर्फ एक बार फिर इस ओर इशारा करती है कि हमारी धरती बहुत तेजी से गर्म हो रही है। ऐसे में यदि उत्सर्जन की रोकथाम के लिए अभी ठोस कदम न उठाए गए तो भविष्य में स्थिति कहीं ज्यादा खराब हो सकती है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in