जलवायु संकट में अमीरों की भूमिका: 0.1% लोग कर रहे हैं भारी उत्सर्जन: रिपोर्ट

कॉप-30 से पहले ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ गिने-चुने अरबपतियों की जीवनशैली और निवेश से होने वाला प्रदूषण 118 देशों के कुल उत्सर्जन से भी अधिक है
इलस्ट्रेशन: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई)
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सारांश
  • ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सबसे अमीर 0.1 फीसदी लोग एक दिन में उतना कार्बन उत्सर्जन करते हैं जितना गरीब आधी आबादी पूरे साल में करती है।

  • इन अमीरों की विलासिता भरी जीवनशैली धरती के कार्बन बजट को तेजी से खत्म कर रही है, जिससे जलवायु संकट गहराता जा रहा है। अगर यही स्थिति रही, तो धरती का भविष्य खतरे में है।

  • 1990 से अब तक, दुनिया के सबसे अमीर 0.1 फीसदी लोगों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में 32 फीसदी की बढ़ोतरी की है, जबकि दुनिया की आधी गरीब आबादी की हिस्सेदारी तीन फीसदी घट गई है।

  • आंकड़ों पर नजर डालें तो एक औसत अमीर व्यक्ति हर दिन 800 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ₂) उत्सर्जित कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ एक गरीब हर दिन महज दो किलोग्राम सीओ₂ उत्सर्जित करता है।

  • एक औसत अरबपति अपने निवेशों के जरिए हर साल करीब 19 लाख टन कार्बन उत्सर्जित करता है, जो एक आम आदमी के उत्सर्जन से करीब 3.46 लाख गुणा अधिक है

क्या आप जानते हैं दुनिया के सबसे अमीर तबके की विलासिता, ऐशो-आराम में डूबी जीवनशैली पृथ्वी के बचे कार्बन बजट को तेजी से खत्म कर रही है। गौरतलब है कि कार्बन बजट वह सीमा है जिसके भीतर रहकर हम जलवायु आपदाओं से बच सकते हैं। इस बात का खुलासा अंतराष्ट्रीय संगठन ऑक्सफेम ने अपनी नई रिपोर्ट में किया है।

क्लाइमेट प्लंडर: हाउ अ पावरफुल फ्यू आर लॉकिंग द वर्ल्ड इंटू डिजास्टर” नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे अमीर 0.1 फीसदी लोग एक दिन में उतना कार्बन प्रदूषण कर रहे हैं, जितनी दुनिया की गरीब आधी आबादी पूरे साल भर में करती है।

मतलब की यदि जलवायु परिवर्तन के लिहाज से देखें तो धरती पर बढ़ते तापमान और गर्मी के लिए सबसे ज्यादा वही लोग जिम्मेदार हैं, जिनके पास सबसे ज्यादा दौलत है।

ऐसे में अगर हर व्यक्ति उतना ही प्रदूषण करने लगे जितना ये अमीर तबका करता है, तो दुनिया का पूरा कार्बन बजट (यानी धरती को सुरक्षित रखने की सीमा) महज तीन हफ्तों में खत्म हो जाएगा।

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असमानता की पराकाष्ठा

रिपोर्ट की मानें तो 1990 से अब तक, दुनिया के सबसे अमीर 0.1 फीसदी लोगों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में 32 फीसदी की बढ़ोतरी की है, जबकि दुनिया की आधी गरीब आबादी की हिस्सेदारी तीन फीसदी घट गई है।

1990 से अब तक देखें तो दुनिया के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों ने जितना कार्बन बजट खर्च किया है, वह धरती की आधी गरीब आबादी के मुकाबले 100 गुणा और सबसे गरीब 10 फीसदी लोगों के मुकाबले 300 गुणा अधिक है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो एक औसत अमीर व्यक्ति हर दिन 800 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ₂) उत्सर्जित कर रहा है। यह इतना वजन है जिसे धरती का सबसे शक्तिशाली इंसान भी नहीं उठा सकता। वहीं दूसरी तरफ एक गरीब हर दिन महज दो किलोग्राम सीओ₂ उत्सर्जित करता है।

ऐसे में यदि धरती पर बढ़ते तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा के भीतर रखना है तो इन सबसे समृद्ध लोगों को 2030 तक अपने उत्सर्जन में 99 फीसदी की कटौती करनी होगी।

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निवेश से विनाश तक

ऑक्सफैम के मुताबिक, यह अरबपति सिर्फ अपनी विलासिता से भरी जीवनशैली से न केवल बहुत अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं। साथ ही प्रदूषण से मुनाफा भी कमा रहे हैं। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कैसे यह अरबपति अपनी आर्थिक और राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर मानवता को जीवाश्म ईंधन पर निर्भर बनाए रख रहे हैं, ताकि उनकी तिजोरियां भरती रहें।

ये लोग उन कंपनियों में निवेश कर रहे हैं जो सबसे ज्यादा प्रदूषण करती हैं। रिपोर्ट में साझा जानकारी के मुताबिक एक औसत अरबपति अपने निवेशों के जरिए हर साल करीब 19 लाख टन कार्बन उत्सर्जित करता है, जो एक आम आदमी के उत्सर्जन से करीब 3.46 लाख गुणा अधिक है। इतना प्रदूषण फैलाने के लिए किसी अरबपति को अपने निजी जेट से धरती का करीब 10,000 बार चक्कर लगाना पड़ेगा।

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि करीब 60 फीसदी अरबपतियों के निवेश तेल, गैस और खनन जैसी प्रदूषणकारी कंपनियों में हैं, जिनसे औसत निवेश की तुलना में ढाई गुना अधिक उत्सर्जन होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ 308 अरबपतियों के निवेश से होने वाला प्रदूषण 118 देशों के कुल उत्सर्जन से भी ज्यादा है।

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जलवायु संकट का असली चेहरा है असमानता

“जलवायु संकट दरअसल असमानता से भी जुड़ा संकट है। दुनिया के कुछ सबसे अमीर लोग अपने पैसे और ताकत से धरती को तबाह करने वाले कामों को बढ़ावा दे रहे हैं और उनसे चांदी काट रहे हैं, जबकि इसकी भारी कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ रही है।“

दुनिया के यह सबसे अमीर लोग और बड़ी कंपनियां अपनी दौलत और ताकत के दम पर जलवायु नीतियों पर भी अनुचित प्रभाव डाल रही हैं। वे जलवायु समझौतों को कमजोर करने में भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं।

देखा जाए तो इन अमीरों की राजनीतिक पकड़ भी गहरी है। पिछले साल हुए कॉप-29 सम्मेलन में कोयला, तेल और गैस कंपनियों के 1,773 प्रतिनिधि शामिल हुए थे, जो दस सबसे ज्यादा जलवायु-संवेदनशील देशों के कुल प्रतिनिधियों से भी ज्यादा थे। हैरानी की बात है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे समृद्ध देशों ने भी इन लॉबिस्टों से बड़ी डोनेशन मिलने के बाद अपने जलवायु कानूनों को कमजोर किया है।

क्यों कुछ गिने-चुने अमीरों की मुट्ठी में है धरती का भविष्य

रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ता और दौलत कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में सिमट गई है, जो इसका इस्तेमाल अपनी पकड़ बढ़ाने और पूरी धरती को विनाश की ओर धकेलने में कर रहे हैं।

यह समृद्ध लोग और उनकी कंपनियां जलवायु संकट को लेकर झूठ फैलाती हैं, लॉबिस्टों को पैसा देती हैं और जो संगठन या सरकारें उनके खिलाफ खड़ी होती हैं, उन पर मुकदमे ठोंक देती हैं।

बेहर का कहना है, “हमें जलवायु नीतियों पर अमीरों की पकड़ तोड़नी होगी, उनकी बेइंतहा दौलत पर टैक्स लगाना होगा, उनके लॉबिंग पर रोक लगानी होगी, और जलवायु संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों को फैसले लेने की अगली पंक्ति में लाना होगा।”

ऑक्सफैम का अनुमान है कि इन सबसे समृद्ध एक फीसदी लोगों द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन इतना ज्यादा है कि अकेले 2019 में इनके द्वारा किए उत्सर्जन के चलते सदी के अंत तक 13 लाख लोगों को भीषण गर्मी की वजह से अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है। इसका सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं और बुजुर्गों को होगा।

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साथ ही इसकी वजह से 2050 तक कमजोर देशों को 44 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।

दुनिया के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों द्वारा बेतहाशा किया जा रहा यह प्रदूषण दुनिया में भुखमरी, आर्थिक संकट और सामाजिक असमानता को भी बढ़ा रहा है। पिछले 30 वर्षों में उनके उत्सर्जन से इतनी फसलें नष्ट हुईं, जिनसे हर साल 1.45 करोड़ लोगों को भोजन मिल सकता था।

आम लोगों को भुगतना होगा इसका खामियाजा

दुःख की बात है कि इन जलवायु नुकसानों का सबसे ज्यादा खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ेगा, जिनका जलवायु संकट पैदा करने में सबसे कम हाथ है, खासकर दक्षिण के देशों में रहने वाले लोग, महिलाएं, बच्चियां और आदिवासी समुदाय इसका सबसे ज्यादा शिकार बनेंगे।

गौरतलब है कि पेरिस समझौते के दस वर्ष होने वाले हैं। इन दस वर्षों में दुनिया के सबसे समृद्ध एक फीसदी लोगों ने जितना कार्बन बजट खर्च किया है, वह धरती की आधी कमजोर आबादी के कुल बजट के दो गुणा से भी ज्यादा है।

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ऐसे में ऑक्सफैम ने कॉप-30 से पहले सरकारों से अपील की है कि वे अमीरों के प्रदूषण पर रोक लगाएं और उनके राजनीतिक व आर्थिक दबदबे को खत्म करें। ऑक्सफेम की मांग है कि अमीरों पर कार्बन टैक्स लगाया जाए, साथ ही जीवाश्म ईंधन से जुड़ी कंपनियों को जलवायु वार्ताओं से बाहर किया जाए और सबसे प्रभावित समुदायों को जलवायु फैसलों में आवाज दी जाए।

आज ताकत और दौलत कुछ लोगों के हाथों में सिमट गई है, और यही धरती को विनाश की ओर ले जा रही है। अगर हमने अब भी इन्हें नहीं रोका, तो हमारी आने वाली पीढ़ियों के पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचेगा।

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