1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से 30 गुना ज्यादा उत्सर्जन कर रहा है दुनिया का अमीर वर्ग

1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से 30 गुना ज्यादा उत्सर्जन कर रहा है दुनिया का अमीर वर्ग

उसके विपरीत दुनिया के सबसे कमजोर तबके की करीब 50 फीसदी आबादी प्रति व्यक्ति उस सीमा से कई गुना कम उत्सर्जन कर रही है
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आज जब सारी दुनिया जलवायु परिवर्तन के मामले में समानता की बात कह रही है, तो ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि क्या अमीर वर्ग के पास प्रदूषण फैलाने का ‘फ्री पास’ है। हाल ही में ऑक्सफेम द्वारा जारी नई रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया की सबसे अमीर एक फीसदी आबादी प्रति व्यक्ति उतना उत्सर्जन कर रही है जिससे आगे चलकर 2030 में उनका प्रति व्यक्ति किया गया उत्सर्जन 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य से करीब 30 गुना ज्यादा होगा। 

वहीं इस वर्ग से सम्बन्ध रखने वाली दुनिया की 10 फीसदी आबादी की बात करें तो वो इस लक्ष्य से करीब 9 गुना ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार होगी। हालांकि उसके विपरीत दुनिया के सबसे कमजोर तबके की करीब 50 फीसदी आबादी उस सीमा से कई गुना कम उत्सर्जन कर रही है। 

ऑक्सफैम में क्लाइमेट पॉलिसी के प्रमुख, नफकोटे डाबी के अनुसार एक अरबपति अपनी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान इतना उत्सर्जन करता है, जितना कि एक गरीब अपने जीवनकाल में भी नहीं कर सकता। देखा जाए तो उनके द्वारा बड़ी मात्रा में किया जा रहा यह उत्सर्जन दुनिया भर में मौसम की चरम घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर दुनिया के सबसे कमजोर तबके पर पड़ रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो इस कमजोर वर्ग को जो पहले ही तूफान, बाढ़, सूखा और भूख से त्रस्त है उसे इसके गंभीर और विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे।    

गौरतलब है कि 2015 में किए गए पेरिस समझौते के तहत देशों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को पूर्व पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखना जरुरी है। लेकिन देखा जाए तो देशों द्वारा उत्सर्जन को कम करने के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं वो जरुरत से काफी कम हैं।

रिपोर्ट के अनुसार इस सीमा के भीतर रहने के लिए 2030 तक हर व्यक्ति प्रतिवर्ष केवल 2.3 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर सकता है। हालांकि देखा जाए तो वैश्विक आबादी इस लक्ष्य से करीब दोगुना उत्सर्जन कर रही है। ऐसे में यदि इस लक्ष्य को हासिल करना है तो वैश्विक स्तर पर औसतन प्रति व्यक्ति को अपना उत्सर्जन आधा करने की जरुरत है। 

लक्ष्य को हासिल करने के लिए अमीर वर्ग को करनी होगी उत्सर्जन में 95 फीसदी की कटौती

वहीं यदि सबसे अमीर वर्ग की बात करें जोकि वैश्विक आबादी का केवल एक फीसदी हिस्सा है उसको इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने प्रति व्यक्ति उत्सर्जन आज के अपने उत्सर्जन की तुलना में 95 फीसदी की कमी करनी होगी। इसी तरह  मध्यम वर्ग जोकि वैश्विक आबादी का 40 फीसदी है उसे अपने उत्सर्जन में 2015 से 2030 के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में करीब 9 फीसदी की कटौती करनी होगी। गौरतलब है कि 1990 से 2015 के बीच चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई थी। 

यदि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की जगह कुल वैश्विक उत्सर्जन को देखें तो दुनिया का सबसे अमीर वर्ग जोकि वैश्विक आबादी का एक फीसदी है उसकी आबादी करीब  8 करोड़ है, जोकि जर्मनी की कुल आबादी से भी कम है। वो कुल वैश्विक उत्सर्जन के करीब 16 फीसदी के लिए जिम्मेवार होगा। गौरतलब है कि यह वर्ग 1990 में 13 फीसदी और 2015 में करीब 15 फीसदी उत्सर्जन के लिए  जिम्मेवार था। 

यही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 10 फीसदी आबादी इस रफ्त्तार से उत्सर्जन कर रही है, यदि उसे कम न किया गया तो 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करना लगभग नामुमकिन होगा। भले ही विश्व की शेष 90 फीसदी आबादी कितनी भी कटौती करे उसका इसपर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। 

ऐसे में पैरिस समझौते के तहत निर्धारित किए इस 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने की संभावनाओं को जिन्दा रखना है तो इस असमानता से निपटना अत्यंत जरुरी है। इसके लिए अमीर वर्ग को अपने उत्सर्जन में कमी करनी होगी। साथ ही उनकी जवाबदेही भी तय करनी होगी। उन्हें खुद भी यह ध्यान रखना होगा कि वो जो खपत और निवेश कर रहे हैं वो पेरिस समझौते के अनुरूप ही हों।   

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