यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अभी कार्रवाई न की गई तो 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना 27 फीसदी का नुकसान हो सकता है। यह जानकारी ऑक्सफैम द्वारा किए विश्लेषण में सामने आई है। अनुमान है कि तापमान में 2.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ बाढ़, सूखा, तूफान, हीटवेव जैसी घटनाओं का आना आम हो जाएगा। इसके साथ ही तापमान में हो रही यह वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि उत्पादकता और लोगों की काम करने की क्षमता पर भी असर डालेगी।
वहीं यदि जी7 देशों (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका) को सालाना होने वाले औसत नुकसान को देखें तो वो उसकी अर्थव्यवस्था के करीब 8.5 फीसदी रहने का अनुमान है, जोकि करीब 349 लाख करोड़ रुपए (4.8 लाख करोड़ डॉलर) के बराबर होगा। ऐसे में ऑक्सफैम ने जी7 नेताओं से आग्रह किया है कि वो इससे बचने के लिए कार्बन उत्सर्जन में जितना जल्द हो सके, उतनी जल्द तेजी से कटौती करें।
जी7 देशों को जलवायु परिवर्तन के कारण जीडीपी में होने वाला यह नुकसान, कोविड-19 से होने वाले आर्थिक नुकसान का करीब दोगुना है। अनुमान है कि कोविड-19 के चलते इन सात देशों की अर्थव्यवस्थाओं में औसतन 4.2 फीसदी की कमी आई है।
महामारी के कारण इन देशों में लोगों के काम धंधों को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी भरपाई के लिए भारी-भरकम राशि आर्थिक सहायता के रूप में दी गई है। हालांकि कोविड-19 से होने वाला यह नुकसान अल्पकालिक ही है, जिसके जल्द ठीक होने की उम्मीद है। वहीं इसके विपरीत जलवायु परिवर्तन के चलते अर्थव्यवस्था को जो नुकसान होगा, वो साल दर साल जारी रहेगा, ऐसे में उसपर भी ध्यान देने की जरुरत है।
बेहतर भविष्य के लिए जरुरी हैं ठोस कदम
यदि स्विस रे द्वारा किए अध्ययन को देखें तो उससे पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और उसके कारण आने वाले संकट जैसे गर्मी के कारण बढ़ता तनाव, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाएं, समुद्र का बढ़ता जल स्तर और घटती कृषि उत्पादकता पहले ही अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है।
इस अध्ययन में शामिल सभी 48 देशों में जलवायु परिवर्तन के चलते अर्थव्यवस्था में गिरावट आने की सम्भावना है। यही नहीं अनुमान है कि कई देशों को होने वाला यह नुकसान जी7 देशों से कहीं ज्यादा रहने का अनुमान है।
विश्लेषण के अनुसार जी7 देशों में जहां कनाडा की अर्थव्यवस्था में 6.9 फीसदी की गिरावट आ सकती है। वहीं फ्रांस में 10 फीसदी, जर्मनी में 8.3 फीसद, इटली में 11.4 फीसदी, जापान में 9.1 फीसदी, यूके में 6.5 फीसदी और अमेरिका की अर्थव्यवस्था में 2050 तक 2.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ करीब 7.2 फीसदी की गिरावट आने की सम्भावना है।
वहीं कुछ देशों में अर्थव्यवस्था को होने वाला यह नुकसान जी-7 देशों से कहीं ज्यादा रहने की सम्भावना है। जलवायु में आ रहे इन बदलावों के चलते 2050 तक जहां फिलीपीन्स की अर्थव्यवस्था को 35 फीसदी का नुकसान हो सकता है। वहीं कोलंबिया के लिए यह 16.7 फीसदी रहने की सम्भावना है। वहीं ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में 12.5 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 17.8 फीसदी और दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था में 9.7 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान लगाया गया है।
ऑक्सफैम ने चेतावनी दी है कि कम आय वाले देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के यह परिणाम कहीं ज्यादा गंभीर हो सकते हैं। विश्व बैंक के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते 2030 तक करीब और 13.2 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी का सामना करने को मजबूर हो जाएंगें। जिसका एक बड़ा हिस्सा इन पिछड़े देशों में रह रहा होगा।
ऑक्सफैम से जुड़े मैक्स लॉसन ने बताया कि अगले नौ वर्षों में जी7 देशों को अपने उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दी जा रही सहायता को बढ़ाने की जरुरत है। उनके अनुसार जी7 देशों को होने वाला यह आर्थिक नुकसान समस्या का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। दुनिया के कई हिस्सों में इन चरम मौसमी घटनाओं के चलते होने वाली मौतों, गरीबी और भुखमरी का आंकड़ा इससे कहीं अधिक रहने की सम्भावना है। यदि देश इस खतरे को गंभीरता से लेते हैं और हमारी धरती को सभी के लिए सुरक्षित बनाना चाहते हैं, तो इस दिशा में यह वर्ष एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है।