विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने पेश किया साल 2024 का लेखा, कई रिकॉर्ड टूटे, बिगड़े हालात

इस बढ़ते तापमान के लिए काफी हद तक हम इंसान ही जिम्मेवार हैं जो विकास की अंधी दौड़ में भाग रहे हैं। इसी दौड़ का नतीजा है कि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पिछले आठ लाख वर्षों के अपने शिखर पर पहुंच गया
समुद्र में समाता सुंदरबन; फोटो: आईस्टॉक
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क्या आपने सोचा है कि जिस तरह से हमारी जलवायु में बदलाव आ रहा है, तापमान में वृद्धि हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और वातावरण में मौजूद ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं, उनका हमारे जीवन पर क्या असर पड़ेगा।

भले ही हम इन बदलावों को नजरअंदाज कर दें, लेकिन यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई हैं, जिन्हें चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता। जलवायु में इन बदलावों के पुख्ता निशान 2024 में भी सामने आए, जिनका जिक्र विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी नई रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2024' में किया है। आइए समझते हैं 2024 में ऐसा क्या कुछ हुआ जिसने इस साल को जलवायु इतिहास में दर्ज कर दिया।   

यह जलवायु का 'संकट काल' है। मतलब जलवायु में बदलावों का युग। रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह से हमारी जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उनके कुछ प्रभाव तो सदियों या उससे अधिक समय तक बने रहेंगें। मतलब हमारी गलतियों की सजा आने वाली कई नस्लों को भुगतनी होगी। डब्ल्यूएमओ ने अपनी इस रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के गंभीर आर्थिक, सामाजिक प्रभावों पर भी प्रकाश डाला है।

रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि 2024 पहला साल था जब वैश्विक तापमान में होती वृद्धि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की 'लक्ष्मण रेखा' को पार कर गई। इस दौरान वैश्विक तापमान में 1.55 डिग्री सेल्सियस का इजाफा दर्ज किया गया है, जो पिछले 175 वर्षों के जलवायु इतिहास में 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष होने की पुष्टि करता है।

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रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि दीर्घकालिक वैश्विक तापमान 1850 से 1900 के स्तर की तुलना में 1.34 से 1.41 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा, हालांकि आंकड़ों में कुछ अनिश्चिताएं मौजूद हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का एक दल इन आंकड़ों की समीक्षा कर रहा है। हालांकि इसे मापने का कोई भी तरीका हो, तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि मायने रखती है। इस वृद्धि की समाज को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

यह सही है कि 2023 और 2024 में वैश्विक तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया, जिसके लिए काफी हद तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में होती वृद्धि और अल नीनो प्रमुख रूप से जिम्मेवार थे। देखा जाए तो 2015 से 2024 के बीच हर साल रिकॉर्ड पर दस सबसे गर्म वर्षों में शुमार रहा। इसी तरह जून 2023 से दिसंबर 2024 के बीच, हर महीने ने बढ़ते तापमान का एक नया वैश्विक रिकॉर्ड स्थापित किया था।

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विश्व मौसम संगठन की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, "हालांकि तापमान के एक साल डेढ़ डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहने का मतलब यह नहीं है कि हम पेरिस समझौते में विफल हो गए हैं, लेकिन यह एक चेतावनी है कि हम अपने जीवन, अर्थव्यवस्थाओं और ग्रह के लिए जोखिम को और बढ़ा रहे हैं।"

इस बढ़ते तापमान के लिए काफी हद तक हम इंसान ही जिम्मेवार हैं जो विकास की अंधी दौड़ में भाग रहे हैं। इसी दौड़ का नतीजा है कि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पिछले आठ लाख वर्षों के अपने शिखर पर पहुंच गया।

आठ लाख वर्षों में पहली बार इस स्तर पर पहुंची ग्रीनहाउस गैसें

हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक कई अन्य कारक जैसे सौर चक्र में बदलाव, ज्वालामुखी विस्फोट और ठंडे एरोसोल में गिरावट भी अप्रत्याशित रूप से तापमान में होती वृद्धि में मददगार हो सकते हैं। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ता तापमान बड़ी तस्वीर का महज छोटा सा हिस्सा है।

रिपोर्ट में पुष्टि हुई है कि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर अब 800,000 वर्षों में सबसे अधिक है। आंकड़ों के मुताबिक 2023 में, कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ₂) का स्तर 420 पीपीएम तक पहुंच गया, जो 2022 से 2.3 पीपीएम अधिक है। 1750 की तुलना में देखें तो इसमें 151 फीसदी की वृद्धि हुई है। देखा जाए तो यह वातावरण में 3,27,600 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी के बराबर है।

रियल टाइम में प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि 2024 में इन गैसों में होती वृद्धि जारी रही। चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड पीढ़ियों तक वायुमंडल में बनी रह सकती है। ऐसे में यह लम्बे समय तक गर्मी को रोके रहती है।

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धरती ही नहीं तेजी से गर्म हो रहे हैं समुद्र

ऐसा नहीं है कि धरती ही गर्म हो रही है, समुद्र भी बढ़ते तापमान का दंश झेल रहे हैं। पिछले आठ वर्षों से महासागर में बढ़ती गर्मी ने हर वर्ष नए रिकॉर्ड बनाए हैं।

गौरतलब है कि जितनी भी गर्मी ग्रीनहाउस गैसों द्वारा रोकी जाती है, उसका करीब 90 फीसदी हिस्सा समुद्र में समा जाती है। 2024 के आंकड़ों पर नजर डालें तो समुद्री ऊष्मा पिछले 65 वर्षों के अपने उच्चतम स्तर तक पहुंच गई। आंकड़ों की मानें तो समुद्र अब 1960 से 2005 की अवधि की तुलना में दोगुनी गति से गर्म हो रहे हैं।

महासागरों के गर्म होने के खामियाजा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भुगतना पड़ रहा है। इससे समुद्री जीवन को नुकसान हो रहा है। इतना ही नहीं इसकी वजह से महासागरों की कार्बन अवशोषित करने की क्षमता को घट रही है। यह उष्णकटिबंधीय तूफानों को बढ़ा रही है और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि की वजह बन रही है।

यह ऐसे बदलाव हैं जिन्हें सैकड़ों या हजारों सालों तक पलटा नहीं जा सकता। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन को कम कर भी दिया जाए तो भी महासागर 21वीं सदी में गर्म होते रहेंगे।

जलवायु के घावों को भरने में लगेंगी सदियां

इसकी वजह से महासागरों का अम्लीकरण जारी है। महासागरों में पीएच का स्तर गिरता जा रहा है। इसमें सबसे बड़ी गिरावट हिंद महासागर, दक्षिणी महासागर, प्रशांत और अटलांटिक के कुछ हिस्सों में दर्ज की गई है। यह बदलाव पहले ही समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जैव विविधता को कम कर रहे हैं और मत्स्य पालन और प्रवाल भित्तियों को प्रभावित कर रहे हैं।

रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि 21वीं सदी में अम्लीकरण बढ़ता रहेगा, जिसकी दर भविष्य के उत्सर्जन पर निर्भर करेगी। इतना ही नहीं गहरे समुद्र के पीएच में होने वाले यह बदलाव सदियों या हजारों सालों तक अपरिवर्तनीय रहेंगे।

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 1993 में उपग्रह रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से 2024 में वैश्विक समुद्र का स्तर अपने शिखर तक पहुंच गया। आंकड़ों के मुताबिक 2015 से 2024 के बीच समुद्र के स्तर में 1993 से 2002 की तुलना में दोगुनी गति से वृद्धि हुई है। इस दौरान वृद्धि की यह दर 2.1 मिलीमीटर से बढ़कर 4.7 मिलीमीटर प्रति वर्ष हो गई है।

समुद्र के स्तर में होती यह वृद्धि तटीय क्षेत्रों में पारिस्थितिकी तंत्र और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा रही है, बाढ़ का कारण बन रही है, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही है और खारे पानी से भूजल को दूषित कर रही है।

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2022 से 2024 के बीच पिछले किन्ही भी तीन वर्षों की तुलना में ग्लेशियरों ने सबसे अधिक बर्फ खोई है। 1950 के बाद से देखें तो ग्लेशियर बर्फ को हुए नुकसान मामले में दस सबसे खराब वर्षों में से सात 2016 के बाद दर्ज किए गए हैं।

नॉर्वे, स्वीडन, स्वालबार्ड और उष्णकटिबंधीय एंडीज के ग्लेशियरों को विशेष रूप से भारी नुकसान पहुंचा है। ग्लेशियरों को हो रहे इस नुकसान से जहां आपदाएं बढ़ रही हैं। वहीं अर्थव्यवस्थाओं और पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हो रहा है। साथ ही इसकी वजह से जल सुरक्षा को लेकर भी खतरा पैदा हो गया है।

रिपोर्ट में ध्रुवों पर तेजी से पिघलती बर्फ पर भी प्रकाश डाला गया है। आंकड़ों के मुताबिक आर्कटिक समुद्री बर्फ के 18 सबसे कम स्तर पिछले 18 वर्षों में सामने आए हैं। 2024 में आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ की न्यूनतम सीमा 42.8 लाख वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गई, जो 46 वर्षों में सातवीं सबसे कम सीमा है।

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ऐसा ही कुछ अंटार्कटिक में भी देखने को मिला जब समुद्री बर्फ अब तक के अपने दूसरे सबसे कम निचले स्तर पर पहुंच गई। यह लगातार तीसरा साल है जब समुद्री बर्फ 20 लाख वर्ग किमी से नीचे पहुंच गई। सैटेलाइट रिकॉर्ड में यह अब तक के तीन सबसे कम स्तर हैं।

2024 में काल बनी चरम मौसमी घटनाएं

इसमें कोई शक नहीं कि 2024 चरम मौसमी आपदाओं का साल रहा। 2024 में, चरम मौसमी घटनाओं के कारण 2008 के बाद से सबसे ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। इन आपदाओं की वजह से घर, बुनियादी ढांचे, जंगल और कृषि भूमि और जैव विविधता को गहरा आघात लगा है। 2024 के मध्य तक, संघर्ष, सूखे और बढ़ती खाद्य कीमतों के कारण 18 देशों में खाद्य संकट और भी बदतर हो गया।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों ने 2024 में सबसे भयंकर आपदाओं को जन्म दिया। यागी तूफान ने जहां वियतनाम, फिलीपींस और दक्षिणी चीन को प्रभावित किया, वहीं अक्टूबर में अमेरिका के फ्लोरिडा में आए तूफान हेलेन और मिल्टन ने भारी तबाही मचाई, जिससे अरबों डॉलर का नुकसान हुआ।

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हेलेन की वजह से हुई भारी बारिश और बाढ़ के कारण 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। 2005 में कैटरीना के बाद से देखें तो अमेरिका में किसी भी मुख्य भूमि पर तूफान की वजह से हुई यह सबसे बड़ी तबाही थी।

इसी तरह उष्णकटिबंधीय चक्रवात चिडो ने मायोटे, मोजाम्बिक और मलावी में जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाया। मोजाम्बिक में, इसकी वजह से करीब 100,000 लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा।

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सेलेस्टे साउलो ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "2024 के आंकड़ों से पता चला है कि हमारे महासागर गर्म होते जा रहे हैं। समुद्र का जल स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ अपने दूसरे सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। इस बीच चरम मौसमी घटनाओं की वजह से दुनिया भर में विनाशकारी परिणाम सामने आ रहे हैं।"

2024 में उष्णकटिबंधीय चक्रवात, बाढ़, सूखा और अन्य आपदाओं के कारण 16 वर्षों में सबसे अधिक विस्थापन झेलना पड़ा। इससे खाद्य संकट और बढ़ गया। साथ ही समाज को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ा है।

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उनका आगे कहना है कि डब्ल्यूएमओ वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और जलवायु सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है, ताकि इन चरम मौसमी घटनाओं से निपटा जा सके।" इस दिशा में प्रगति हो रही है, लेकिन अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। दुनिया के केवल आधे देशों के पास आपदाओं के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है।

ऐसे में इन चुनौतियों का सामना करने और समुदायों को सुरक्षित और मजबूत बनाने के लिए मौसम, जल और जलवायु सेवाओं में निवेश बेहद महत्वपूर्ण है।

यह रिपोर्ट डब्ल्यूएमओ की वैज्ञानिक श्रृंखला का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य बेहतर निर्णय लेने में मदद करना है। इसे विश्व ग्लेशियर दिवस (21 मार्च), विश्व जल दिवस (22 मार्च) और विश्व मौसम विज्ञान दिवस (23 मार्च) से ठीक पहले जारी किया गया है।

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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का कहना है, "हमारा ग्रह संकट के अधिक संकेत दे रहा है। लेकिन वैश्विक तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस के भीतर रखना अभी भी मुमकिन है।"

उन्होंने वैश्विक नेताओं से स्वच्छ अक्षय ऊर्जा साधनों में निवेश बढ़ाने की अपील की है। यह साधन बेहद किफायती हैं। साथ ही उन्होंने देशों से इस साल अपनी जलवायु योजनाओं को अपडेट करके कार्रवाई करने का भी आग्रह किया है।

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