कॉप-29: 360 करोड़ लोगों के जीवन-मृत्यु का सवाल है जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई

बढ़ती गर्मी के प्रति चेतावनी, जीवाश्म ईंधन की सही कीमत का निर्धारण और घरों में ऊर्जा के साफ सुथरे साधनों का उपयोग सालाना 20 लाख लोगों की जान बचा सकता है।
फोटो: विकास चौधरी
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जलवायु परिवर्तन पर होने वाला संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन यानी कॉप-29 आज से अजरबैजान की राजधानी बाकू में शुरू हो रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें इस बैठक में होने वाले फैसलों और नतीजों पर टिकी हैं।

देखा जाए तो आज जीवन के हर पहलू पर जलवायु में आते बदलावों का असर साफ तौर पर नजर आने लगा है। लोगों का स्वास्थ्य भी इससे सुरक्षित नहीं है। बात चाहे आपदाओं के कारण जा रही जानों की हो या इसकी वजह से तेजी से पनपती बीमारियों की, जलवायु परिवर्तन रूप बदल-बदल कर लोगों के स्वास्थ्य पर आघात कर रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य पर मंडराते इस खतरे को कहीं ज्यादा संजीदगी से लेने की जरूरत है।

ऐसे में इस शिखर सम्मेलन से ठीक पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी देशों से जीवाश्म ईंधन से अपना नाता तोड़ने का आग्रह किया है। साथ ही सरकारों से आम लोगों को जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के काबिल बनाने में मदद करने की वकालत की है। 

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कॉप-29 से ठीक पहले जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर जारी अपनी विशेष रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक नेताओं से जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य को अलग-अलग मुद्दों के रूप में देखना बंद करने का आग्रह किया है। इसके साथ ही स्वास्थ्य संगठन ने जलवायु वार्ता में स्वास्थ्य को भी तत्काल शामिल करने की मांग उठाई है।

अपनी रिपोर्ट और जारी तकनीकी मार्गदर्शन में डब्ल्यूएचओ ने जलवायु से जुड़ी सभी चर्चाओं, योजनाओं और कार्यों में स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया है, ताकि न केवल लोगों के जीवन को बचाया जा सके, साथ ही मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस का कहना है कि, "जलवायु संकट, स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या भी है, ऐसे में हमें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।" उनके मुताबिक कॉप-29 वैश्विक नेताओं के लिए स्वास्थ्य को अपनी जलवायु योजनाओं का हिस्सा बनाने का एक बड़ा मौका है।

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जीवन-मृत्यु का है सवाल

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 से भी ज्यादा संगठनों और 300 विशेषज्ञों के सहयोग से जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को संबोधित करते हुए कॉप-29 पर यह विशेष रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में तीन प्रमुख क्षेत्रों लोग, क्षेत्र और ग्रह से जुड़ी महत्वपूर्ण नीतियों पर प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 360 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं, जो जलवायु में आते बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। यह वो क्षेत्र हैं जहां खतरा बहुत ज्यादा है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि स्वास्थ्य और जलवायु नीतियों का मेल मानव प्रगति के लिए बेहद जरूरी है। रिपोर्ट में जिन बात पर जोर दिया गया है

रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि स्वास्थ्य और जलवायु नीतियों का मेल मानव प्रगति के लिए बेहद जरूरी है। रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि विकास को गति देने के लिए मानव स्वास्थ्य और कल्याण को जलवायु सफलता का मुख्य मापदंड बनाना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि जलवायु संबंधी कार्यवाहियां लोगों की मदद करने पर केंद्रित हों, ताकि वो बदलती जलवायु के प्रति अनुकूल हो सकें और उसका सामना कर सकें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक आर्थिक और वित्तीय प्रणालियों में बदलाव करके जीवाश्म ईंधन पर बढ़ती निर्भरता और उसके लिए दी जा रही सब्सिडी पर रोक लगाना जरूरी है। इसकी जगह स्वच्छ एवं सतत विकल्पों में निवेश करना आवश्यक है जो प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों को कम करते हैं और कार्बन उत्सर्जन में कटौती करते हैं।

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डब्ल्यूएचओ ने जलवायु और स्वास्थ्य से जुड़ी परियोजनाओं को दिए जा रहे वित्त में इजाफा करने की भी बात कही है। इसके साथ थी स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने पर ध्यान देना भी जरूरी है। इसके साथ ही लोगों के जीवन की रक्षा करने के लिए ऐसी स्वास्थ्य प्रणालियों को तैयार करना जरूरी है जो जलवायु में आते बदलावों का सामना कर सकें और मुश्किल समय में भी लोगों के प्राणों की रक्षा कर सकें।

रिपोर्ट के मुताबिक जांचे परखे समाधानों पर निवेश करना फायदेमंद साबित हो सकता है। इतना ही नहीं बढ़ती गर्मी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए चेतावनी प्रणाली, जीवाश्म ईंधन की सही कीमत का निर्धारण और घरों में ऊर्जा के साफ सुथरे साधनों का उपयोग सालाना 20 लाख लोगों की जान बचा सकते हैं। इन पर किए हर एक डॉलर के निवेश के बदले चार डॉलर के बराबर फायदा होगा।

रिपोर्ट में शहरों के बेहतर डिजाईन, स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु संकट का सामना करने के काबिल आवास, और साफ सफाई पर ध्यान देने पर भी जोर दिया है। इसके साथ ही साफ हवा, स्वच्छ और सुरक्षित पानी, खाद्य सुरक्षा, पोषण जैसे मुद्दों पर भी गौर करना जरूरी है।

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