जलवायु संकट: ग्रीनलैंड में तेजी से दरक रही बर्फ, दरारों के आकार और गहराई में भी हो रहा इजाफा

रिसर्च में सामने आया है कि बर्फ की चादरों के किनारे, जहां वे समुद्र से मिलती हैं, वहां मौजूद दरारें 25 फीसदी तक बढ़ गई हैं
बढ़ते तापमान के साथ तेजी से पिघलती बर्फ; फोटो: आईस्टॉक
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डरहम विश्वविद्यालय ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि ग्रीनलैंड में बर्फ की चादरें तेजी से दरक रही हैं। इतना ही नहीं इन दरारों के आकार और गहराई में भी इजाफा हो रहा है।

वैज्ञानिकों ने इसके लिए जलवायु में आते बदलावों को जिम्मेवार माना है, जिसकी वजह से ग्रीनलैंड में बड़ी तेजी से बदलाव हो रहे हैं।

अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने हाई-रिजॉल्यूशन उपग्रह छवियों से बनाए 8,000 से अधिक 3डी मानचित्रों का अध्ययन किया है।

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विश्लेषण से पता चला है कि 2016 से 2021 के बीच बर्फ की चादरों के किनारों पर मौजूद दरारें बहुत बड़ी और गहरी हो गई हैं। इससे पता चलता है कि दरारें पहले की तुलना में तेजी से बढ़ रही हैं।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि अंटार्कटिका के बाद ग्रीनलैंड में मौजूद यह बर्फ की चादरें सबसे ज्यादा विशाल हैं। नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (एनएसआईडीसी) के मुताबिक धरती पर बर्फ के रूप में जितना भी साफ पानी जमा है, उसमें से 70 फीसदी अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ की चादरों के रूप में मौजूद है।

बड़ी और गहरी होती दरारें

आंकड़ों के मुताबिक अंटार्कटिका में मौजूद बर्फ की चादरें सबसे ज्यादा विशाल हैं, जो 1.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैली हैं। यह आकार में अमेरिका और मेक्सिको से भी बड़ी हैं।

वहीं ग्रीनलैंड में जमा यह बर्फ की चादरें 17 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हैं, जो ग्रीनलैंड के ज्यादातर हिस्सों में मौजूद हैं। आकार में यह  टेक्सास से भी तीन गुनी बड़ी हैं।

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अध्ययन के मुताबिक गर्म हवा और बढ़ते समुद्री तापमान के चलते बर्फ तेजी से आगे बढ़ रही है। इसकी वजह से वहां मौजूद दरारें बड़ी और गहरी होती जा रही हैं। शोधकर्ताओं ने इस बात का भी खुलासा किया है कि बर्फ की इन चादरों के किनारे जहां ये समुद्री से मिलती हैं, वहां मौजूद दरारें 25 फीसदी तक बढ़ गई हैं।

हालांकि अध्ययन में यह भी सामने आया है कि सरमेक कुजालेक ग्लेशियर की दरारों में आई कमी के कारण यह वृद्धि संतुलित हो गई है, लेकिन इसके बावजूद बर्फ की चादर में मौजूद दरारों में 4.3 फीसदी का इजाफा हुआ है।

क्यों परेशान हैं वैज्ञानिक

हालांकि यह ग्लेशियर एक बार फिर तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिसका अर्थ है कि दरारें बढ़ने और बंद होने के बीच का संतुलन अब बिगड़ रहा है।

शोध के मुताबिक 1992 से अब तक ग्रीनलैंड में पिघलती बर्फ ने समुद्र के स्तर में करीब 14 मिलीमीटर की वृद्धि की है। वहीं शोध से पता चला है कि सदी के अंत तक ऐसा ही चलता रहा तो समुद्र के स्तर में 30 सेंटीमीटर (करीब एक फुट) की वृद्धि हो सकती है।

वैज्ञानिकों ने चेताया है कि यदि तापमान में होती वृद्धि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में लम्बे समय तक दो डिग्री सेल्सियस बनी रहती है, तो इसके विनाशकारी परिणाम सामने आ सकते हैं। इससे ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में समुद्र का स्तर 12 से 20 मीटर तक बढ़ सकता है।

वहीं अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में जमा बर्फ ऐसी ही पिघलती रही तो 2300 तक समुद्र के जलस्तर में दस मीटर की अतिरिक्त वृद्धि हो सकती है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 50 लाख से अधिक आबादी वाले करीब 75 फीसदी शहर समुद्र के स्तर से दस मीटर से भी कम ऊंचाई पर मौजूद हैं।

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जलवायु पर काम करने वाले संगठन कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बताया कि 2024 पहला साल है जब तापमान में होती वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा रेखा को पार कर गई है। वहीं 2025 भी इसी नक्शे कदम पर है। बता दें कि जनवरी 2025 अब तक का सबसे गर्म जनवरी का महीना था।

यह कहीं न कहीं इस बात का स्पष्ट सबूत है कि हमारी धरती पहले से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है। ऐसे में यदि इसकी रोकथाम के लिए समय रहते कदम न उठाए गए तो मानवता को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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