क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025: जलवायु आपदाओं में तीन दशक में मारे गए 8 लाख लोग, भारत के 80 हजार से ज्यादा शामिल

क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 में भारत को छठे स्थान पर रखा है, जो 1993 से 2022 के बीच दुनिया के दस सबसे जलवायु आपदा प्रभावित देशों में शामिल था
जलवायु इतिहास में दर्ज केदारनाथ आपदा; फोटो: रोहित दिमरी
जलवायु इतिहास में दर्ज केदारनाथ आपदा; फोटो: रोहित दिमरी
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जलवायु से जुड़ी आपदाएं साल दर साल विकराल रूप लेती जा रही हैं। इन आपदाओं से भारत सहित दुनिया का करीब-करीब हर देश आहत है। आज जारी “क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025” के मुताबिक पिछले तीन दशकों में जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते हर साल भारत में औसतन 4,66,45,209 लोग प्रभावित हो रहे हैं। इसका मतलब है कि प्रति लाख लोगों पर औसतन 409 लोग इन आपदाओं से प्रभावित हुए हैं।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 1993 से 2022 के बीच भारत बाढ़, लू, बारिश में आते बदलावों और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा।

भारत ने जहां 1993, 1998 और 2013 में विनाशकारी बाढ़ का सामना किया, साथ ही 2002, 2003 और 2015 में भीषण लू का भी दंश झेला। कुल मिलाकर इन तीन दशकों में देश ने 400 से अधिक चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया। इन घटनाओं ने जहां देश में 80 हजार से ज्यादा जिंदगियों को निगल लिया। इंडेक्स के मुताबिक इन आपदाओं में औसतन हर साल 2,675 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि जलवायु आपदाओं ने देश में अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाला है। इन आपदाओं से अर्थव्यवस्था को 18,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा की चोट लगी। मतलब की यह आपदाएं हर साल अर्थव्यवस्था पर औसतन 2,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा का बोझ डाल रही हैं, जोकि देश की जीडीपी के करीब 0.31 फीसदी के बराबर है। 

इतना ही नहीं यह आपदाएं 1993 से 2022 के बीच भारत में औसतन 2,675 जिंदगियों को निगल चुकी हैं। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि जलवायु आपदाओं ने देश में अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाला है।

1993 से 2022 के बीच आई इन आपदाओं से अर्थव्यवस्था को 2,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा की चोट लगी है, जोकि देश की जीडीपी के करीब 0.31 फीसदी के बराबर है।

गौरतलब है कि पिछले 30 वर्षों में भारत ने 1998 के दौरान गुजरात में आए चक्रवात, 1999 के ओडिशा चक्रवात और 12 अक्टूबर, 2014 को आए चक्रवात हुदहुद और 2020 में चक्रवात अम्फान जैसी चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया है।

इसी तरह 2013 के दौरान उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ के निशान अभी भी मिटे नहीं हैं। भारत ने 1998, 2002, 2003 और 2015 में भीषण गर्मी का भी कहर झेला था, जब तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इस दौरान लू ने हजारों जिंदगियों को निगल लिया।

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2019 में आई आपदाओं की बात करें तो भारत में इस वर्ष मानसून का मौसम कुछ ज्यादा ही लम्बा था। जिसका असर सामान्य से एक महीना ज्यादा देखने को मिला था। इस मौसम में जून से सितम्बर के अंत तक औसत से 110 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी। जो 1994 के बाद सबसे ज्यादा थी। इसके चलते 14 से भी ज्यादा राज्यों में आई बाढ़ में 1,800 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जबकि 18 लाख से भी ज्यादा लोगों को इसके चलते अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था।

2019 में आया 'फानी' सबसे ज्यादा विनाशकारी था। इसके कारण भारत और बांग्लादेश में 90 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2.8 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। इससे कुल मिलकर अर्थव्यवस्था को करीब 59,051 करोड़ रुपए (810 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ था।  

जलवायु आपदाओं से दुनिया ने खोई आठ लाख जिंदगियां

यही वजह है कि जर्मनवॉच ने क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में 1993 से 2022 के बीच जलवायु आपदाओं से सबसे प्रभावित देशों की लिस्ट में भारत को छठे स्थान पर रखा है, वहीं डॉमिनिका को पहले, जबकि चीन को दूसरे पायदान पर जगह दी है।

रिपोर्ट के मुताबिक चीन, भारत और फिलीपींस जैसे देश बार-बार घटने वाली चरम मौसमी घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, जबकि डोमिनिका, होंडुरास, म्यांमार और वानुअतु को दुर्लभ, चरम घटनाओं से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है।

अपने इस सूचकांक में जर्मनवॉच ने यह अध्ययन किया है कि चरम मौसम घटनाएं देशों को किस हद तक प्रभावित कर रही हैं। साथ ही इनकी वजह से हुई आर्थिक और मानवीय क्षति के आधार पर देशों को रैंक दिया गया है।

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जर्मनवॉच द्वारा जारी यह इंडेक्स अंतर्राष्ट्रीय आपदा डेटाबेस में रिकॉर्ड चरम मौसमी घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी आर्थिक आंकड़ों पर आधारित है।

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि पिछले 30 वर्षों में, चरम मौसमी घटनाओं के चलते दुनिया भर में करीब आठ लाख लोगों की मौत हुई है। इतना ही नहीं इन आपदाओं से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 4,20,000 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। इस दौरान दुनिया ने 9,400 से भी ज्यादा चरम मौसमी आपदाओं का सामना किया है।

मतलब की इन तीन दशकों में जलवायु आपदाओं की वजह से दुनिया में होने वाली 10 फीसदी मौतें भारत में दर्ज की गई। इसी तरह वैश्विक अर्थव्यवस्था को जितना भी नुकसान हुआ उसका करीब 4.3 फीसदी भारत को झेलना पड़ा है।

इसी तरह 1993 से 2022 के बीच जलवायु आपदाओं से 10 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में होंडुरास, म्यांमार, इटली, ग्रीस, स्पेन, इटली, वानुअतु और फिलीपीन्स को भी शामिल किया है।

इसके साथ ही जर्मनवॉच ने 2022 के लिए भी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स लांच किया है। इस इंडेक्स में दुनिया के जलवायु आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में पाकिस्तान को पहले स्थान पर रखा है। वहीं बेलीज को दूसरे, जबकि इटली को तीसरे स्थान पर रखा गया है।

वैश्विक तापमान में वृद्धि का सिलसिला लगातार जारी है, जिसकी वजह से आपदाएं कहीं ज्यादा विकराल रूप लेती जा रही हैं। बता दें कि 22 जुलाई 2024 को वैश्विक औसत तापमान 17.16 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया, जो ऐतिहासिक रूप से पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म दिन था।

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कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने भी 2024 को अब तक का सबसे गर्म साल घोषित करते हुआ कहा कि यह पहला वर्ष है जब औसत वैश्विक तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया है। वहीं 2025 में भी अब तक का सबसे गर्म जनवरी का महीना दर्ज किया गया है।

इसी तरह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि भारत में 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। ऐसे में जर्मनवॉच ने अपनी रिपोर्ट में बढ़ते तापमान पर लगाम लगाने के साथ-साथ इन जलवायु आपदाओं पर कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है।

देखा जाए तो जलवायु से जुड़ी यह आपदाएं पहले से कहीं ज्यादा गंभीर होती जा रही हैं। साथ ही इनके घटने की आवृति भी बढ़ रही है। ऐसे में हमें जलवायु परिवर्तन पर जल्द से जल्द कार्रवाई करने की जरूरत है।

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