जलवायु से जुड़ी आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान आदि के चलते पिछले छह महीनों में 1.03 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं| इनमें से करीब 60 फीसदी विस्थापित एशिया के थे| यह जानकारी 16 मार्च 2021 को इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज (आईएफआरसी) द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है, जोकि इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) द्वारा जारी आंकड़ों पर आधारित है| आईडीएमसी का अनुमान है कि बाढ़, सूखा, तूफान जैसी जलवायु सम्बन्धी आपदाओं के चलते हर साल दुनिया भर में औसतन 2.27 करोड़ लोग विस्थापित हो जाते हैं|
आईएफआरसी में कोर्डिनेटर हेलेन ब्रंट ने बताया कि पिछले छह महीनों के दौरान सितम्बर 2020 से फरवरी 2021 के बीच दुनिया भर में करीब 1.25 करोड़ लोग अपने ही देशों में विस्थापित होने को मजबूर हो गए थे| जिनमें से करीब 80 फीसदी लोगों के विस्थापन के लिए जलवायु और चरम मौसमी घटनाओं से जुड़ी आपदाएं जिम्मेवार थी| उनके अनुसार जलवायु से जुड़ी इन आपदाओं के चलते होने वाला यह विस्थापन एशिया में दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में सबसे ज्यादा था| एक तरफ पहले ही कोरोना महामारी का दंश झेल रहे गरीब तबके पर अब जलवायु परिवर्तन के चलते दोहरी मार पड़ रही है|
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में धीमी गति से शुरु होने वाली आपदाओं के कारण विस्थापित लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है| चूंकि धीमी गति से शुरु होने के कारण इन घटनाओं से होने वाले विस्थापितों के विषय में सटीक आंकड़ें बड़ी मुश्किल से मिल पाते हैं| यहां रहने वाले लोगों के रोजगार धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है, जिसके कारण यह लोग विस्थापित या फिर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं| विश्व बैंक के एक अनुमान के अनुसार अकेले समुद्र के जलस्तर के बढ़ने के कारण इस सदी में करीब 9 करोड़ लोग विस्थापित हो जाएंगे|
विस्थापन का असर ने केवल विस्थापितों पर पड़ता है, साथ ही इससे वो लोग और समुदाय भी प्रभावित होते हैं जो इन्हें समर्थन और शरण देते हैं| इनमें से कई विस्थापितों को ने केवल आश्रय, स्वास्थ्य, सुरक्षा, साफ़ पानी और स्वच्छता आदि के साथ-साथ लम्बे समय तक समर्थन और मदद की जरुरत रहती है| विस्थापन का सबसे ज्यादा असर महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, बीमार लोगों और पहले से ही हाशिए पर रह रहे लोगों पर पड़ता है|
भारत पर भी बढ़ रहा है खतरा
समय के साथ इन आपदाओं से होने वाला नुकसान भी बढ़ता जा रहा है। हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2021 में भी पर्यावरण से जुड़े मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, चरम मौसमी घटनाओं को सबसे आगे रखा गया था। जर्मनवॉच द्वारा जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 में भारत को दुनिया का 7वां सबसे जलवायु प्रभावित देश माना था| इस इंडेक्स के मुताबिक 2019 में जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते भारत में 2,267 लोगों की जान गई थी। वहीं देश को करीब 501,659 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। भारत के लिए भी 2020 आठवां सबसे गर्म वर्ष था। इस वर्ष तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था। हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इन जिलों में देश के करीब 63.8 करोड़ लोग बसते हैं।
जिस तरह और जिस रफ्तार से तापमान में यह बढ़ोतरी हो रही है, उसके चलते बाढ़, सूखा, तूफान, हीट वेव, शीत लहर जैसी घटनाएं बहुत आम बात हो जाएंगी और यह हो भी रहा है।