बच्चों पर बढ़ रहा जलवायु संकट, 2050 तक तीन गुणा बढ़ जाएगा बाढ़ का खतरा: यूनिसेफ

जलवायु परिवर्तन की वजह से न केवल बच्चों पर बाढ़, लू, सूखा जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है, साथ ही उनके आहार में मौजूद पोषक तत्वों में भी गिरावट आ रही है
भारत सहित दुनिया के अन्य क्षेत्रों में 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर जलवायु और पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं का खतरा मंडरा रहा है; फोटो: आईस्टॉक
भारत सहित दुनिया के अन्य क्षेत्रों में 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर जलवायु और पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं का खतरा मंडरा रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में बच्चों के भविष्य पर मंडराती चुनौतियों को उजागर किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक बच्चों के लिए भीषण लू का सामना करने का जोखिम आठ गुणा बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं 2000 से तुलना करें तो अगले 26 वर्षों में बाढ़ का खतरे भी तीन गुणा बढ़ सकता है।

इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक जब 2050 के दशक में पर्यावरण और जलवायु सम्बन्धी परिस्थितियां और बदतर हो जाएंगी। तब 2000 की तुलना में दोगुने बच्चे जंगलों में धधकती आग का सामना करने को मजबूर होंगे।

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‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड चिल्ड्रन्स 2024’ रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु से जुड़ी आपदाएं, आबादी में आता बदलाव और तकनीकों तक पहुंच में मौजूद असमानताएं ऐसी चुनौतियां हैं जो 2050 तक बच्चों के जीवन में नाटकीय बदलाव के साथ-साथ कई बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकती हैं।

वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है वो आने वाले वक्त में एक बड़े खतरे की ओर इशारा करती है। बता दें कि 2023 दर्ज जलवायु इतिहास में अब तक का सबसे गर्म वर्ष था। वहीं वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि 2024 में बढ़ता तापमान एक नए शिखर तक पहुंच सकता है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस साल वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि डेढ़ डिग्री सेल्सियस की लक्ष्मण रेखा को पार कर सकती है।

ऐसे में रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि बढ़ते जलवायु जोखिमों का असर अन्य लोगों की तुलना में बच्चों पर कहीं ज्यादा भारी पड़ेगा। हालांकि दुनिया के किस क्षेत्र में यह ज्यादा या कम होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहां बच्चों के सामाजिक-आर्थिक हालात व संसाधनों तक उनकी उनकी पहुंच कितनी अच्छी या खराब है।

रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि पूर्वी और दक्षिण एशिया के साथ-साथ प्रशांत, मध्य पूर्व, उत्तर, पश्चिम एवं मध्य अफ्रीका में भीषण गर्मी का सामना करने को मजबूर बच्चों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि हो सकती है। वहीं बाढ़ की वजह से पूर्वी अफ्रीका और प्रशांत क्षेत्र में बच्चों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है।

इस बारे में यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले सा कहा, "बच्चों को जलवायु आपदाओं से लेकर ऑनलाइन खतरों तक, अनेक तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आशंका है कि यह खतरे समय के साथ और गंभीर रूप ले सकते हैं।"

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जलवायु परिवर्तन से उभर रहे कई अनजाने खतरे

उनके मुताबिक 2050 में एक बेहतर भविष्य के सृजन के लिए कल्पना से कहीं अधिक प्रयास करने होंगें। उन्होंने चेताया कि दशकों की प्रगति, विशेष रूप से बच्चियों के लिए खतरे में है।

रिपोर्ट में आबादी में आते नाटकीय बदलावों पर भी प्रकाश डाला है। इसके मुताबिक अगले 26 वर्षों में सब-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में बच्चों की सबसे अधिक आबादी होगी। हालांकि साथ ही बुजुर्गों की आबादी भी बढ़ रही है। अनुमान है कि दुनिया के हर क्षेत्र की आबादी में बच्चों की हिस्सेदारी में कमी आ सकती है।

अफ्रीका में जहां बच्चों की संख्या सबसे अधिक होने के बावजूद वहां उनकी आबादी 40 फीसदी से नीचे पहुंच सकती है। बता दें कि 2000 के दशक में आबादी में यह हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी थी। इसी तरह पूर्वी एशिया में जहां यह हिस्सेदारी 2000 में 29 फीसदी थी, वो गिरकर 17 फीसदी से नीचे रह जाएगी। पश्चिमी यूरोप में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलेगा।

इन बदलावों से दुनिया के सामने नई चुनौतियां भी पैदा होंगी। जहां कुछ देशों में बच्चों के लिए सेवाओं का विस्तार करने का बोझ बढ़ जाएगा। वहीं कुछ देश बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के साथ जरूरतों को पूरा करने के लिए जद्दोजहद कर रहे होंगे।

रिपोर्ट में जिस एक और महत्वपूर्ण पहलू को उजागर किया है, वो तकनीक है। यह तकनीकों का युग है, कृत्रिम बुद्धिमता और अत्याधुनिक टैक्नॉलॉजी के उभरने के साथ लोगों के लिए नए अवसर भी पैदा हुए हैं। लेकिन इन डिजिटल तकनीकों की पहुंच में मौजूद खाई अपने आप में एक बड़ी समस्या है।

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रिपोर्ट के अनुसार 2024 में समृद्ध देशों में जहां 95 फीसदी आबादी तक इंटरनेट की पहुंच थी। वहीं दूसरी तरफ कमजोर देशों में यह आंकड़ा महज 26 फीसदी ही है। यही वजह है कि आज भी विकासशील देशों में युवाओं को डिजिटल कौशल का विकास करने के लिए अनगिनत समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसका सीधा असर उनकी शिक्षा और भविष्य की संभावनाओं पर पड़ रहा है।

चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के मुताबिक भारत सहित दुनिया के अन्य क्षेत्रों में 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर जलवायु और पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं का खतरा मंडरा रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड और नाइजीरिया में बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक खतरा है।

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग हर बच्चा किसी न किसी जलवायु और पर्यावरण से जुड़े खतरे का सामना करने को मजबूर है। वहीं कई देश तो ऐसे बच्चे एक साथ कई खतरों का सामना कर रहे हैं ऐसे में यह उनके जीवन और विकास के लिए के बड़ा खतरा हैं।

अनुमान है कि करीब 85 करोड़ बच्चे ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां कम से कम चार जलवायु और पर्यावरण से जुड़े खतरों का संकट एक साथ मंडरा रहा है।

सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक करीब चार करोड़ बच्चियों को बाल विवाह और जलवायु परिवर्तन के दोहरे संकट का सामना करना पड़ सकता है।

लेकिन इसके बावजूद विडम्बना देखिए की दुनिया में केवल दो फीसदी से भी कम राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में लड़कियों की जरूरतों और साझेदारी पर ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक हर साल करीब 90 लाख बच्चियों को जलवायु से जुड़ी आपदाओं और बाल विवाह के गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ता है।

भारत में बच्चों पर मंडराते जलवायु संकट को उजागर करते हुए जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से भारतीय बच्चों में संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ रहा है।

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इसी तरह जलवायु में आते बदलावों की वजह से न केवल चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं, साथ ही वैज्ञानिकों के मुताबिक चावल गेहूं, दालें और सब्जियों में अतिआवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे आयरन, जिंक, कैल्शियम, विटामिन आदि की मात्रा में भी निरंतर कमी आ रही है। इसका मतलब है कि भरपेट भोजन के बावजूद बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है।

इसी तरह जर्नल एनवायरनमेंट रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के चलते बच्चों के आहार में विविधता घट रही है, साथ ही इसकी वजह से पोषक तत्वों में भी कमी आ रही है, जिसका सीधा असर पोषण पर पड़ रहा है।

इन चुनौतियों के बावजूद कुछ सकारात्मक रुझान भी सामने आए हैं, जो आशा की किरण की तरह हैं। उदाहरण के लिए जीवन-प्रत्याशा में वृद्धि हो रही है। वहीं अनुमान है कि 2050 तक दुनिया के 96 फीसदी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराई जा सकेगी।

शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्र में किए जा रहे निवेश और पर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की मदद से आने वाले समय में लैंगिक असमानता की खाई को पाटा जा सकता है। साथ ही इसकी वजह से पैदा होने वाले खतरों को सीमित किया जा सकेगा।

ऐसे में बदलती दुनिया में बच्चों के चहुमुखी विकास पर ध्यान देना जरूरी है। यह बच्चे आने वाले कल की नींव हैं। यदि इनके अधिकारों की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो इनका भविष्य अधर में लटक जाएगा।

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