जलवायु परिवर्तन के चलते भारतीय बच्चों के संक्रामक रोगों की चपेट में आने का खतरा बढ़ रहा है यह जानकारी हाल ही में भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आई है। बनारस में बच्चों पर किए इस शोध में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में संक्रामक रोगों और जलवायु परिवर्तन के बीच के सम्बन्ध का पता चला है। शोध के अनुसार संक्रामक रोगों से ग्रस्त करीब 9 से 18 फीसदी बच्चों में उनकी बीमारी और जलवायु से जुड़े कारकों के बीच सम्बन्ध देखा गया था।
दुनिया के सामने जलवायु में आ रहा बदलाव आज एक बड़ी समस्या है, जिसका शिकार भारत भी है। देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में बदलती जलवायु स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। यह चुनौती भारत जैसे देशों के लिए विशेष रूप से गंभीर है क्योंकि वो पहले से ही जलवायु संवेदनशील देशों की सूची में पहले ही ऊंचे पायदान पर हैं।
इतना ही नहीं, वैश्विक स्तर पर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि स्वास्थ्य पर पड़ने वाला जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर बच्चों को प्रभावित कर रहा है, जो इसके कारण उपजी बीमारियों का बोझ ढोने को मजबूर हैं। ऊपर से यह बीमारियां कमजोर तबके के लिए कहीं ज्यादा गंभीर चुनौतियां को पैदा कर रही हैं।
अनुमान है कि बच्चों में खतरा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि एक तो वो शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, दूसरा उनमें इसके संपर्क में आने का जोखिम कहीं ज्यादा होता है।
यह शोध बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के डीएसटी-महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च द्वारा किया गया है, जोकि जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है। अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन और संक्रामक बीमारियों पर सम्बन्ध को समझने के लिए बनारस शहर के 16 वर्ष से कम उम्र के 460 बच्चों का तीन वर्षों तक अध्ययन किया है।
क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने
अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने व्यापक रूप से बच्चों से जुड़े सामाजिक और आर्थिक आंकड़ों का विश्लेषण किया है साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले जलवायु से जुड़े कारकों जैसे तापमान, आद्रता, वर्षा, सौर विकिरण, हवा की गति आदि का भी अध्ययन किया है। जिसके निष्कर्ष के तौर पर उन्होंने देखा है कि जलवायु से जुड़े इन कारकों के तार महत्वपूर्ण रूप से संक्रामक बीमारियों से जुड़े थे, जिनमें सांस सम्बन्धी बीमारियां, पेट और आंत से जुड़ी बीमारियां (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल), वेक्टर जनित बीमारियां और त्वचा सम्बन्धी रोग शामिल थे।
शोध के मुताबिक संक्रामक रोगों के 9 से 18 फीसदी मामलों में जलवायु कारकों का जुड़ाव दर्ज किया गया था। इसमें अधिकतम तापमान और आद्रता मुख्य रूप से जलवायु से जुड़े कारक थे, जिन्होंने स्वास्थ्य को प्रभावित किया था। वहीं जो बच्चे संक्रामक रोगों से ग्रस्त पाए गए थे। उनमें से करीब 78 फीसदी सांस सम्बन्धी संक्रमण (ज्यादातर सर्दी और फ्लू) और पेट एवं आंत से जुड़ी बीमारियां (मुख्य रूप से दस्त) का शिकार थे।
इतना ही नहीं, शोध के अनुसार सामाजिक और आर्थिक कारकों के साथ जलवायु से जुड़े कारक भी बच्चों में स्टंटिंग, वेस्टिंग और कम वजन के लिए जिम्मेवार पाए गए थे।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इस शोध के निष्कर्ष बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी नीतियों के निर्माण में सरकार और नीति निर्माताओं के लिए मददगार हो सकते हैं। जिस तरह से देश में जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ रहा है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि वो पहले से ही कुपोषण और बीमारियों का बोझ ढो रहे बच्चों के स्वास्थ्य को भविष्य में कहीं ज्यादा प्रभावित कर सकता है। ऐसे में उनसे निपटने के लिए जरुरी है कि समय रहते ठोस कदम उठाए जाएं।