जलवायु परिवर्तन के चलते बच्चों के भोजन में घट रही है विविधता, बढ़ रहा है कुपोषण

बढ़ते तापमान के साथ बच्चों के आहार में विविधता में घट रही है| साथ ही उनके भोजन में पोषक तत्वों की मात्रा भी कम हो रही है| जिसका असर उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ सकता है
जलवायु परिवर्तन के चलते बच्चों के भोजन में घट रही है विविधता, बढ़ रहा है कुपोषण
Published on

जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के चलते बच्चों के आहार में विविधता कम हो रही है साथ ही उसमें पोषक तत्वों की मात्रा भी घट रही है। जिसका सीधा असर पोषण पर पड़ रहा है। गौरतलब है कि पहले बच्चों में कुपोषण के लिए गरीबी, शिक्षा और स्वच्छता की कमी को वजह माना जाता था। पर इस नए शोध से पता चला है कि बच्चों में कुपोषण के लिए बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन भी उतना ही जिम्मेवार है। ऐसे में अनुमान है कि इन क्षेत्रों में हो रही प्रगति के बावजूद आने वाले वक्त में जलवायु परिवर्तन के चलते बच्चों के आहार विविधता में कहीं ज्यादा गिरावट आ जाएगी।

यह जानकारी हाल ही में जर्नल एनवायरनमेंट रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित शोध में सामने आई है। यह शोध 19 देशों के 107,000 बच्चों पर किया गया है, जो दुनिया के अलग-अलग महाद्वीपों से सम्बन्ध रखते हैं। इस शोध में शोधकर्ताओं ने आहार में मौजूद विविधता और जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध को समझने के लिए लम्बे समय के दौरान तापमान में हो रही वृद्धि, बारिश और बच्चों में कुपोषण के स्तर का अध्ययन किया है।

उनके अनुसार जलवायु और आहार विविधता के बीच सीधा सम्बन्ध है। तापमान बढ़ने के साथ आहार विविधता में कमी देखी गई है, जबकि इसके विपरीत कुछ क्षेत्रों में जहां बारिश में वृद्धि हो रही है वहां आहार विविधता में भी वृद्धि देखी गई थी। शोध में सामने आया है कि छह में से पांच क्षेत्रों में जहां तापमान ज्यादा था वहां बच्चों की आहार विविधता में महत्वपूर्ण कमी देखने को मिली थी।

शोधकर्ताओं का मानना है कि यह पहला ऐसा अध्ययन है जो कई देशों में किया गया है। जो जलवायु परिवर्तन और कुपोषण के सम्बन्ध को दर्शाता है। इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता मेरेडिथ नाइल्स ने बताया कि “निश्चित रूप से भविष्य में जलवायु परिवर्तन के चलते कुपोषण बढ़ेगा। लेकिन तापमान बढ़ने के साथ उसका असर पहले ही पोषण पर दिखने लगा है।”

इसके प्रभाव को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने आहार विविधता, आहार गुणवत्ता और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा को मापने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा विकसित विधि का प्रयोग किया है। इसमें उन्होंने आयरन, फोलिक एसिड, जिंक और विटामिन ए एवं डी जैसे सूक्ष्म पोषक पर ध्यान केंद्रित किया है। यह पोषक तत्व बच्चों के न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक विकास में भी अहम भूमिका निभाते हैं। इनकी कमी कुपोषण का एक मुख्य कारण है। जोकि हर तीसरे बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसके साथ ही इस शोध में एक निश्चित समयावधि में खाए गए भोजन समूहों की गणना के आधार पर आहार विविधता को मापा गया है।

इस शोध के निष्कर्ष से पता चला है कि पांच वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों में औसत आहार विविधता 3.22 पाई गई थी। जिसका मतलब है कि इस सर्वेक्षण से पहले बच्चों ने 10 खाद्य पदार्थ समूहों में से औसतन 3.2 का सेवन किया था। यह आहार विविधता जहां दक्षिण अमेरिका में 4.48 पाई गई थी वहीं दक्षिण-पूर्व अफ्रीका में यह औसत से भी कम 2.66 पाई गई थी।

कितनी बड़ी है कुपोषण की समस्या

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो दुनिया में पांच वर्ष से कम आयु के 14.4 करोड़ बच्चों की ऊंचाई अपनी उम्र के लिहाज से कम है। वहीं 1.43 करोड़ वेस्टिंग का शिकार हैं जिनका शरीर लम्बाई के अनुपात में पतला है जबकि 3.83 करोड़ बच्चों का वजन ज्यादा है या फिर वो मोटापे का शिकार हैं। अनुमान है कि हर साल पांच साल से कम उम्र के बच्चों की होने वाली 45 फीसदी मौतों के लिए कुपोषण ही जिम्मेवार है।

यदि भारत की बात करें तो देश में पांच साल की उम्र से छोटे हर तीन में दो बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है। भले ही हम विकास के कितनी बड़ी बातें करते रहें, पर सच यही है कि आज भी भारत में लाखों बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है। इस स्थिति में पिछले कई वर्षों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। 1990 में 5 वर्ष से छोटे 70.4 फीसदी बच्चों की मौत के लिए कुपोषण जिम्मेदार था। जबकि 2017 में यह आंकड़ा घटकर 68.2 फीसदी ही हुआ है। 

2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के अनुसार भारत में हर दूसरा बच्चा पहले से ही कुपोषित है। इसका मतलब है कि हमारे देश में लगभग 7.7 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। दुनिया के सामने वैसे भी जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती है। यदि इसपर अभी ध्यान न दिया गया तो पोषण की स्थिति बद से बदतर हो सकती है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in