
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में होता इजाफा अपने साथ कई नए खतरे भी पैदा कर रहा है। उन्हीं खतरों में से एक है चरम मौसमी आपदाएं, जो पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी रूप ले चुकी हैं।
इस कड़ी में किए एक नए वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है, जलवायु में आते बदलावों ने अटलांटिक क्षेत्र में तूफानों को कहीं अधिक शक्तिशाली बना दिया है, और पिछले छह वर्षों में हवाओं की रफ्तार औसतन 29 किलोमीटर प्रति घंटा बढ़ गई है।
जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च: क्लाइमेट में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि अध्ययन किए गए 40 तूफानों में से अधिकांश को गर्म महासागरों ने अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान की, जिससे ये तूफान एक श्रेणी तक बढ़ गए। शोधकर्ताओं के मुताबिक पिछले छह वर्षों में अध्ययन किए गए 85 फीसदी तूफानों को जलवायु परिवर्तन ने और अधिक शक्तिशाली बना दिया है।
यह विशेष रूप से शक्तिशाली तूफानों के लिए सच है, जो निचले स्तर के तूफानों से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक श्रेणी पांच का तूफान श्रेणी एक के तूफान से 400 गुना अधिक क्षति पहुंचाता है, वहीं श्रेणी 3 के तूफान से यह 140 गुणा जबकि श्रेणी 4 के तूफान से पांच गुणा अधिक नुकसान का कारण बनता है।
रिसर्च में सामने आया है कि 2024 में, जलवायु परिवर्तन की वजह से दो श्रेणी पांच के ऐसे तूफान आए थे, जिनका जलवायु परिवर्तन के बिना इतना शक्तिशाली होना संभव नहीं था। मतलब की यदि जलवायु परिवर्तन का हाथ नहीं होता तो 2024 में एक भी श्रेणी पांच का तूफान नहीं आता।
अध्ययन के मुताबिक 2019 से अब तक आठ तूफान ऐसे आए हैं, जिनकी रफ्तार में औसतन 40 किमी प्रति घंटा की वृद्धि हुई है। इनमें 2019 में आया हम्बर्टो, जीटा (2020), सैम और लैरी (2021), अर्ल (2022), फ्रैंकलिन (2023), और 2024 में आए इसाक और राफेल शामिल हैं। इनमें हम्बर्टो और जीटा ऐसे थे, जिनके दौरान जलवायु परिवर्तन की वजह से हवा की रफ्तार 50 किमी प्रति घंटा तक बढ़ गई थी।
विनाश की वजह बनता जलवायु परिवर्तन
यह इस बात को भी दर्शाता है कि कहीं न कहीं इंसानों द्वारा किया जलवायु परिवर्तन उसके खुद के विनाश की वजह बन रहा है।
अध्ययन के मुताबिक इस महीने आए तूफान राफेल समेत तीन तूफानों के लिए जलवायु परिवर्तन ने हवाओं की रफ्तार को इतना बढ़ा दिया कि इनका स्तर दो श्रेणी बढ़ गया। शोधकर्ताओं ने अध्ययन के बारे में कहा है कि यह शोध तूफानों की बढ़ती संख्या के बारे में न होकर शक्तिशाली तूफानों के और भी ज्यादा ताकतवर होने के बारे में है।
देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन की वजह से यह तूफान पहले से कहीं ज्यादा प्रचंड हो रहें हैं जिसकी वजह से मानव जाति को इसकी कहीं ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है।
जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले संगठन, क्लाइमेट सेंट्रल ने भी अपनी रिपोर्ट में पाया है कि जलवायु परिवर्तन ने 2024 के दौरान अटलांटिक में आए सभी 11 तूफानों के दौरान हवा की अधिकतम रफ्तार को बढ़ा दिया। इससे इन तूफानों की अधिकतम रफ्तार 14 से 45 किलोमीटर प्रति घंटा तक बढ़ गई।
हवा की रफ्तार में आई इस वृद्धि ने सात तूफानों को पैमाने पर उच्च श्रेणी में पहुंचा दिया। इसने उष्णकटिबंधीय तूफान डेबी और ऑस्कर को भी हरिकेन में बदल दिया। गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन में प्रयोग तकनीकों का ही उपयोग किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी ने पानी को 2.5 डिग्री फॉरेन्हाइट तक गर्म कर दिया, जिससे तूफान कहीं अधिक शक्तिशाली हो गए। क्लाइमेट सेंट्रल ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की है कि जलवायु परिवर्तन के चलते 2024 में आने वाले तूफानों के मार्ग में समुद्र की सतह के तापमान के बढ़ने की आशंका 800 गुना तक बढ़ गई है।
इसी तरह इंसानों की वजह से समुद्र के बढ़ते तापमान ने हरिकेन हेलेन और मिल्टन को और भी अधिक शक्तिशाली बना दिया। इसकी वजह से जहां हेलेन की रफ्तार 26 किमी प्रति घंटा, वहीं मिल्टन की 39 किमी प्रति घंटा बढ़ गई। इसी तरह तूफान बेरिल की रफ्तार में भी 29 किलोमीटर प्रति घंटा की वृद्धि होने का अनुमान है।
देखा जाए तो तूफानों को अपनी शक्ति गर्म पानी से मिलती है। ऐसे में अटलांटिक, कैरिबियन और मैक्सिको की खाड़ी जितनी गर्म होगी, उतनी ही अधिक ऊर्जा तूफान बढ़ने के लिए उपयोग कर सकते हैं। हालांकि, आसमान में चलते तेज या शुष्क हवाएं कभी-कभी उन्हें कमजोर कर सकती हैं।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डैनियल एम गिलफोर्ड के मुताबिक उन क्षेत्रों में जहां तूफान आते हैं वहां पानी आमतौर पर करीब 1.1 से 1.6 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुका है। वहीं जलवायु परिवर्तन की वजह से इसमें 2.2 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
एक मील प्रति घंटा = 1.60934 किलोमीटर प्रति घंटा