विलुप्ति के कगार पर द्वीपों पर रहने वाली सरीसृपों की 30 फीसदी प्रजातियां: स्टडी

अध्ययन ने चेताया है कि द्वीपों में रहने वाली हर तीसरी सरीसृप प्रजाति विलुप्ति की ओर बढ़ रही है, फिर भी उन पर बहुत कम शोध हो रहा है
गैलापागोस का विशाल कछुआ दुनिया के सबसे बड़े कछुओं में से एक है। यह प्रजाति केवल गैलापागोस द्वीपों में पाई जाती है और अपनी लंबी उम्र और धीमी गति के लिए जानी जाती है। फोटो: आईस्टॉक
गैलापागोस का विशाल कछुआ दुनिया के सबसे बड़े कछुओं में से एक है। यह प्रजाति केवल गैलापागोस द्वीपों में पाई जाती है और अपनी लंबी उम्र और धीमी गति के लिए जानी जाती है। फोटो: आईस्टॉक
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सारांश
  • दुनिया के द्वीपों पर रहने वाली सरीसृप प्रजातियां, जैसे छिपकलियां और कोमोडो ड्रैगन, विलुप्ति के कगार पर हैं, फिर भी वैज्ञानिक शोधों में उन्हें करीब-करीब अनदेखा किया जा रहा है।

  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययन के अनुसार, इन द्वीपों की 30 फीसदी सरीसृप प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं।

  • खेती, शिकार और जलवायु परिवर्तन जैसे कारणों से ये प्रजातियां तेजी से लुप्त हो रही हैं। संरक्षण के प्रयासों को इन पर केंद्रित करना आवश्यक है।

दुनिया भर के द्वीपों में रहने वाली सरीसृप प्रजातियां जैसे छिपकलियां, कछुए, कोमोडो ड्रैगन आदि गंभीर खतरे में हैं। देखा जाए तो सरीसृपों की यह प्रजातियां मुख्य भूमि पर पाई जाने वाली प्रजातियों की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं, फिर भी वैज्ञानिक शोधों में उन्हें करीब-करीब अनदेखा किया जा रहा है।

यह चौंकाने वाला सच ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय सहित दुनिया के कई अन्य संस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए वैश्विक अध्ययन में सामने आई है।

धरती की सतह का महज सात फीसदी हिस्सा इन द्वीपों के रूप में है, लेकिन यह जगह दुनिया की जैव-विविधता का सबसे अनमोल खजाना समेटे हुए हैं। अध्ययन के मुताबिक धरती पर पहचानी गई सरीसृपों की 12,000 में से एक-तिहाई प्रजातियां केवल इन्हीं द्वीपों तक सीमित हैं। इनमें गैलापागोस के विशाल कछुओं से लेकर इंडोनेशिया की कोमोडो ड्रैगन जैसी मशहूर प्रजातियां शामिल हैं।

देखा जाए तो धरती पर अलग-थलग पड़े ये द्वीप प्रकृति की प्रयोगशालाएं हैं, जहां प्रजातियां खास परिस्थितियों में अनोखे तरीके से विकसित होती हैं। लेकिन यही अलगाव इन प्रजातियों की सबसे बड़ी कमजोरी भी बन गया है।

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जर्नल कंजर्वेशन साइंस एंड प्रैक्टिस में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि इन द्वीपों में रहने वाली 30 फीसदी सरीसृप प्रजातियों पर विलुप्ति होने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर सरीसृपों की औसतन 12.1 फीसदी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। हालांकि इसके बावजूद, 1960 से अब तक सरीसृपों पर प्रकाशित शोध में से महज 6.7 फीसदी ही द्वीपीय प्रजातियों पर केंद्रित हैं।

सोचिए, क्या हो यदि कोमोडो द्वीप पर ड्रैगन ही न मिलें

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर रिकार्डो रोचा का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों को द्वीपों और वहां की अनोखी सरीसृप प्रजातियों पर केंद्रित करना जरूरी है। वे उदाहरण देते हुए कहते हैं, “सोचिए, अगर आप कोमोडो द्वीप जाएं और वहां ड्रैगन ही न मिलें। क्या वह जगह वैसी रहेगी?”

उनका आगे कहना है, “द्वीपों के सरीसृप इन पारिस्थितिक तंत्रों की रीढ़ हैं। मेरे जन्म स्थान मदीरा द्वीप पर दीवार छिपकलियां कीड़े खाती हैं, पौधों का परागण करती हैं और फलों को फैलाने में मदद करती हैं। अगर ये गायब हो जाएं, तो पूरा तंत्र हिल जाएगा।“

उनके मुताबिक कई द्वीपों पर छिपकलियां बिना किसी स्तनधारी शिकारी के बीच पनपीं। इसलिए उनमें खतरों से बचने के मजबूत व्यवहार विकसित ही नहीं हुए। ऐसे में खुली घूमने वाली बिल्लियों और अन्य बाहरी प्रजातियों का पहुंचना इनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है।

उदाहरण के लिए, केवल मदीरा द्वीप पर एक अकेली बिल्ली साल में औसतन 90 से अधिक छिपकलियां खा जाती है। यह दिखाता है कि बाहरी प्रजातियां कैसे संवेदनशील द्वीपीय पारिस्थितिकी तंत्र को हिला सकती हैं।

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शोध के मुताबिक दुनिया भर में सरीसृप उन कशेरुकी प्रजातियों में शामिल हैं जो मानव गतिविधियों से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। कृषि विस्तार, जंगलों की कटाई, प्रदूषण और विदेशी आक्रामक प्रजातियां इनके अस्तित्व के लिए बड़ा खतरे बन गए हैं।

कौन-सी प्रजातियां सबसे ज्यादा उपेक्षित?

शोधकर्ताओं ने 1960 से 2021 के बीच द्वीपों और मुख्य भूमि में रहने वाले सरीसृपों पर हुए शोध की तुलना की है। उन्होंने यह भी देखा कि प्रजातियों का आकार, उनका फैलाव, भूगोल और सामाजिक–आर्थिक स्थिति जैसे कारक शोध को कैसे प्रभावित करते हैं।

नतीजा यह निकला कि बड़ी और ज्यादा फैलाव वाली प्रजातियों पर सबसे अधिक शोध होता है, जबकि छोटी, हाल ही में खोजी गई और ऊंचे द्वीपों में रहने वाली प्रजातियां लगभग अनछुई रह जाती हैं।

शोधकर्तओं के मुताबिक दुनिया की कई सबसे अनोखी प्रजातियां, जो केवल द्वीपों पर पनपीं उनके बारे में सबसे कम जानकारी है। ज्ञान की यह कमी उन्हें और भी असुरक्षित बनाती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक अध्ययन में यह असमानता कई कारणों से हो सकती है। कई द्वीप बेहद दूर और पहुंच से बाहर हैं, इसलिए वहां शोध करना मुश्किल होता है। इसके अलावा, दुनिया भर में ध्यान आमतौर पर आकर्षक या चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण सरीसृपों पर जाता है, जबकि बाकी प्रजातियां पीछे रह जाती हैं।

वहीं समृद्ध द्वीपीय देशों में अक्सर शोध के बजाय निवेश पर्यटन ढांचों पर होता है, जिससे जैव-विविधता को कम प्राथमिकता मिलती है।

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रिपोर्ट के अनुसार, इंडो-मलायन क्षेत्र (इंडोनेशिया, फिलीपींस आदि) दुनिया के द्वीपों में सरीसृपों का सबसे महत्वपूर्ण हॉटस्पॉट हैं, लेकिन अध्ययन के मामले में यह सबसे पिछड़ा क्षेत्र है। यहां कई ऐसी भी प्रजातियां हैं जिन पर एक भी वैज्ञानिक अध्ययन मौजूद नहीं है।

मेडागास्कर जैसे उदाहरण चौंकाते हैं, धरती पर जमीन का महज 0.4 फीसदी हिस्सा होने के बावजूद यहां सरीसृपों की 450 से ज्यादा प्रजातियां मिलती हैं, यानी दुनिया में सरीसृपों की ज्ञात 3.8 प्रजातियां यहां हैं। इनमें से एक-चौथाई आईयूसीएन की संकट ग्रस्त प्रजातियों की लिस्ट में शामिल हैं।

क्या हैं समाधान?

शोधकर्ताओं ने अपने इस अध्ययन में कई सुझाव भी दिए हैं, जैसे खतरे में पड़ी द्वीपीय प्रजातियों पर तुरंत और लक्षित शोध बढ़ाए जाएं। राष्ट्रीय संस्थानों और द्वीपीय समुदायों के बीच बराबरी की साझेदारी बनाकर स्थानीय क्षमता को मजबूत किया जाए।

केवल अकादमिक शोध पर निर्भर न रहकर, एनजीओ, सरकारी एजेंसियों और स्थानीय संस्थानों की रिपोर्टों को भी शामिल किया जाए। साथ ही फंडिंग को सिर्फ पर्यटन ही नहीं, प्राकृतिक विरासत को बचाने की दिशा में भी ले जाया जाए।

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