क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में सरीसृपों की 20 फीसदी से ज्यादा प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है और इसके लिए कहीं न कहीं हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। बात चाहे कृषि की हो या शिकार की या जलवायु में आते बदलावों के साथ शहरीकरण की, हम इंसान ही सरीसृपों के होते विनाश के लिए जिम्मेवार हैं।
इसकी पुष्टि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने भी की है जिसके मुताबिक 2022 में दुनिया भर की 21 फीसदी सरीसृप प्रजातियों के विलुप्त हो जाने का खतरा है। हालांकि इस बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध थी कि इन सरीसृप प्रजातियों को किस स्थान पर, किन चीजों से सबसे ज्यादा खतरा है। नतीजन जानकारी के आभाव में इन प्रजातियों के संरक्षण की राह में कई बाधाएं थी।
यही वजह है कि इनपर मंडराते खतरों को बारीकी से समझने के लिए डेनमार्क, मोजाम्बिक, स्पेन, स्वीडन और यूके के शोधकर्ताओं के दल ने एक नया अध्ययन किया है, जिसके नतीजे प्रीप्रिंट सर्वर बायोरेक्सिव पर प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि सरीसृप पारिस्थितिक तंत्र और जैवविविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। देखा जाए तो यह सरीसृप जैव संकेतक के रूप में कार्य करते हैं, जो इसकी बेहतर तस्वीर प्रस्तुत कर सकते हैं कि कोई पारिस्थितिकी तंत्र कितनी बेहतर स्थिति में है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्थानीय स्तर पर यह गणना की है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में खतरे में पड़ी सरीसृप प्रजातियों को नुकसान पहुंचाने वाले किस खतरे का जोखिम कितना ज्यादा है। यदि आईयूसीएन द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया भर में सरीसृपों की कुल 10,196 ज्ञात प्रजातियां हैं। उनमें से 1,829 खतरे में हैं।
हालांकि देखा जाए तो कितनी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, केवल यह जानकारी ही इनके प्रभावी संरक्षण के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए उन खतरों को भी समझना जरूरी है, जिनका सामना यह प्रजातियां हर दिन कर रही हैं। साथ ही यह जानना भी जरूरी है कि कहां किस स्थान पर किस तरह का विशिष्ट खतरा है और उनसे इन सरीसृप प्रजातियों को कितना खतरा है।
इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने आईयूसीएन की रेड लिस्ट में जमीन पर पाई जाने वाली सरीसृप की 9,827 प्रजातियों के आवास क्षेत्रों से सम्बंधित जानकारी का उपयोग किया है। हालांकि उन्होंने अपने इस अध्ययन में आंकड़ों की कमी के चलते समुद्री सांपों की 48 और समुद्री कछुओं की छह प्रजातियों को शामिल नहीं किया है।
दूसरी तरफ इन प्रजातियों पर मंडराते खतरों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आधारित अंतर सरकारी मंच यानी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) के आंकड़ों का उपयोग किया है। जिसमें प्रजातियों और जैव विविधता पर मंडराते इन सात प्रमुख खतरों को शामिल किया गया है।
इनमें विदेशी आक्रामक प्रजातियों का आक्रमण, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों को होता बेरोकटोक दोहन, प्रदूषण, भूमि उपयोग में आता बदलाव, कृषि, वनविनाश, और बढ़ता शहरीकरण जैसे खतरे शामिल हैं। यह वो खतरे हैं दुनिया भर में जैवविविधता के लिए बड़ा सरदर्द बन चुके हैं।
इसके बाद उन्होंने प्रजातियों के आवास क्षेत्र के आधार पर सातों खतरों के लिए 50 X 50 किलोमीटर की ग्रिड बनाई है। उन्होंने इस प्रत्येक ग्रिड में लुप्तप्राय प्रजातियों के पाए जाने की सम्भावना का पता लगाया है। वहीं यह समझने के लिए कि अलग-अलग खतरे संकटग्रस्त प्रजातियों को कैसे प्रभावित करते हैं, शोधकर्ताओं ने पूरी दुनिया और विशिष्ट क्षेत्रों के लिए मॉडल तैयार किए हैं। हालांकि सीमित आंकड़ों के चलते वे आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों को शामिल नहीं कर पाए।
भारत में सरीसृपों को शिकार से है सबसे ज्यादा खतरा
इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक जमीन पर पाई जाने वाली 46 फीसदी सरीसृप प्रजातियां (4,551) इन सात में से किसी न किसी एक खतरे से प्रभावित थी। सभी सातों खतरों में कृषि ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। इसकी वजह से सरीसृपों की कुल 2,995 यानी करीब 31 फीसदी प्रजातियां प्रभावित हुई हैं। साथ ही अन्य खतरों की तुलना में इससे होने वाले नुकसान की आशंका भी सबसे ज्यादा थी। अन्य खतरों ने प्रजातियों को अलग-अलग मात्रा में प्रभावित किया है।
इसी तरह यदि स्थानीय पैमाने पर देखें तो यूरोप सबसे ज्यादा प्रभावित था। साथ ही उत्तरी एशिया और कैरेबियाई द्वीपों में, सरीसृपों को नुकसान की आशंका सबसे ज्यादा थी। निष्कर्षों में यह भी सामने आया है कि अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग खतरों ने प्रभावित किया है।
उदाहरण के लिए मध्य एशिया, कैरेबियन द्वीप समूह, मेडागास्कर और यूरोप के कुछ हिस्सों में सरीसृपों के लिए कृषि सबसे बड़ा खतरा है। वहीं भारत, उपसहारा अफ्रीका और चीन के कुछ हिस्सों में सरीसृपों के लिए शिकार सबसे बड़ा खतरा है।
पिछले अध्ययनों ने भी पुष्टि की है कि सभी कशेरुकी जीवों में, जमीन पर रहने वाले सरीसृपों को विशेष रूप से अपनी जैव विविधता खोने का खतरा है। वहीं यह नया अध्ययन इन खतरों से होने वाले नुकसान का आंकलन करने वाला पहला अध्ययन है जो संरक्षण की बेहतर योजना तैयार करने में मदद कर सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक अध्ययन न केवल यह पता लगाने में मदद करता है कि कहां मानव गतिविधियां प्रजातियों को प्रभावित कर रही हैं। साथ ही यह भी समझने में मदद करता है कि ये प्रभाव किसी प्रजाति के विलुप्त होने के जोखिम से कैसे सम्बंधित हैं। वे खतरे की आशंका और संकटग्रस्त प्रजातियों पर इसके प्रभाव के बीच संबंध को समझने के महत्व पर जोर देते हैं।