विलुप्ति के कगार पर 41 फीसदी उभयचर जीवों की प्रजातियां, जानें- कारण

अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में मौसम के पिछले 40 वर्षों आंकड़ों का विश्लेषण किया है
यूरोप में पड़ता सूखा उभयचरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। खासकर सलामेंडर इस बदलती जलवायु से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक
यूरोप में पड़ता सूखा उभयचरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। खासकर सलामेंडर इस बदलती जलवायु से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक
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मेंढक, सलामेंडर और केसिलियन जैसे उभयचर जीव दुनिया के कई हिस्सों में अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के अनुसार, उभयचरों की 41 फीसदी प्रजातियां पहले ही विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं।

इन प्रजातियों पर पहले ही बढ़ते प्रदूषण, प्राकृतिक आवास को होते नुकसान और बीमारियों का दबाव है। वहीं जलवायु परिवर्तन के चलते स्थिति और जटिल होती जा रही है।

इस बारे में गेटे विश्वविद्यालय, फ्रैंकफर्ट से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में बारिश के पैटर्न में आता बदलाव, सूखा, लू, जैसी बढ़ती चरम मौसमी घटनाएं इनके अस्तित्व को और अधिक संकट में डाल रही हैं।  

जर्नल कंजर्वेशन बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार मौसम में आ रहे चरम स्तर के बदलाव अब उभयचरों के लिए एक नया गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में मौसम के पिछले 40 वर्षों आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसकी मदद से उन्होंने यह समझने का प्रयास किया है कि कैसे पिछले 40 वर्षों के इन मौसमी बदलावों ने 7,000 से अधिक उभयचर प्रजातियों को प्रभावित किया है।

अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि अस्थाई तालाबों और छोटे जलस्रोतों पर प्रजनन के लिए निर्भर रहने वाली प्रजातियां, जैसे मेंढक, सूखे और असमय गर्मी के कारण अपने अंडे और लार्वा के विकास में असफल हो रही हैं। इससे इनकी आबादी घट रही है।

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अध्ययन के निष्कर्ष पूरी तरह स्पष्ट हैं जिन क्षेत्रों में लू और सूखे की घटनाएं बढ़ीं हैं। वहां 2004 के बाद से रेड लिस्ट में शामिल उभयचर प्रजातियों की स्थिति और खराब हुई है।

विश्लेषण में यह सामने आया है कि चरम मौसमीय घटनाओं के बढ़ने और उभयचरों की घटती संख्या के बीच सीधा संबंध है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर इवान ट्वोमी ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "उभयचर जीव प्रजनन के लिए अस्थाई जलस्रोतों पर निर्भर होते हैं, इसलिए सूखा और तापमान में बदलाव उनके लिए खासतौर पर खतरनाक हैं, क्योंकि इससे उनके प्रजनन क्षेत्र समय से पहले सूख जाते हैं।"

बदलते मौसम से बढ़ रहा बीमारियों का खतरा

इतना ही नहीं ज्यादा गर्मी में मेंढकों की त्वचा और सांस लेने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है, जबकि अत्यधिक ठंड कई प्रजातियों को बीमारियों जैसे कि ‘चिट्रिड फंगस’ के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि यूरोप, अमेजन और मेडागास्कर में यह जीव विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। दक्षिण अमेरिका में, जहां मेंढकों की अधिकांश प्रजातियां पाई जाती हैं, वे बढ़ती गर्मी और लू का सामना कर रही हैं। वहीं यूरोप में पड़ता सूखा उभयचरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। खासकर सलामेंडर इस बदलती जलवायु से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। गौरतलब है कि यह जीव नमी पर निर्भर रहता है।

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मध्य यूरोप में स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है। जलवायु पूर्वानुमान बताते हैं कि आने वाले वर्षों में यहां सूखे की अवधि और तीव्रता दोनों बढ़ सकती हैं। अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर लीसा शुल्टे ने चेताया, "मध्य यूरोप में पाए जाने वाले आधे से अधिक सलामेंडर पहले ही बढ़ते सूखे का सामना कर रहे हैं। वहीं आने वाले समय में हालात और खराब हो सकते हैं।"

इसी तरह मेडागास्कर में भी अनेक उभयचर प्रजातियां गंभीर खतरे का सामना कर रही हैं।

पहले से कहीं अधिक संरक्षण की जरूरत

अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि इन जीवों को बचाने के लिए हमें तत्काल लक्षित संरक्षण उपायों की आवश्यकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, कई उपाय इन संकटग्रस्त प्रजातियों की मदद कर सकते हैं, जैसे छोटे संरक्षित क्षेत्र बनाना जहां ये जीव सुरक्षित रह सकें। प्राकृतिक दलदली क्षेत्रों में सुधार करना ताकि इन्हें रहने और प्रजनन के लिए बेहतर माहौल मिल सके।

इसी तरह सूखे के दौरान इनके छिपने के लिए नम स्थान तैयार। गौरतलब है कि उभयचर जीव पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के विश्वसनीय संकेतक माने जाते हैं। इनका संरक्षण न केवल जैव विविधता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, साथ ही यह पर्यावरण के संतुलन को भी बनाए रखने में मदद करता है।

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