आज दुनिया भर में मेंढक, सैलामैंडर और न्यूट्स जैसे उभयचर जीव गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। अनुमान है कि आज इन जीवों की 41 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, जिनमें भारत में पाए जाने वाले उभयचर जीवों की 100 से ज्यादा प्रजातियां भी शामिल हैं।
वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो दुनिया भर में उभयचरों की 2,873 प्रजातियां खतरे में हैं। चिंता की बात तो यह है कि समय के साथ यह स्थिति सुधरने की जगह कहीं ज्यादा बदतर हो रही है। रिपोर्ट में जारी आंकड़ों की मानें तो 2004 की तुलना में देखें तो स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर हुई है। आंकड़ों के अनुसार जहां 2004 में उभयचर जीवों की 39 फीसदी प्रजातियां संकटग्रस्त थी। वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 40.7 फीसदी पर पहुंच गया है। शोध के मुताबिक संकटग्रस्त प्रजातियां मुख्य रूप से कैरेबियन द्वीप समूह, मेसोअमेरिका, उष्णकटिबंधीय एंडीज, कैमरून, नाइजीरिया, मेडागास्कर, भारत में पश्चिमी घाट और श्रीलंका जैसे क्षेत्रों में पाई गईं हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में अब तक उभयचरों की कुल 453 प्रजातियों की खोज हुई है, इनमें से 139 प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यदि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट के आधार पर देखें तो इनमें से 16 प्रजातियां वो हैं जो गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं। वहीं 72 प्रजातियों को लुप्तप्राय और 51 को असुरक्षित श्रेणी में रखा गया है।
वैज्ञानिकों की मानें तो भारत में पाए जाने वाले 70 फीसदी से अधिक उभयचर स्थानिक हैं जो कहीं और नहीं पाए जाते। ऐसे में यदि यह देश से विलुप्त होते हैं तो पूरी दुनिया से इन प्रजातियों का अस्तित्व खत्म हो सकता है। इनमें खासी हिल रॉक टोड, कोंकण टाइगर टोड, केरल इंडियन फ्रॉग जैसी प्रजातियां शामिल हैं।
दुनिया भर के 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों द्वारा किए इस अध्ययन में उभयचरों की 8,011 प्रजातियों का वैश्विक मूल्यांकन किया गया है। जो इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा जारी आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इन शोधकर्ताओं में भारत के फ्रॉगमैन कहे जाने वाले वैज्ञानिक प्रोफेसर एस डी बीजू और डॉक्टर सोनाली गर्ग भी शामिल हैं। जो दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े हैं। इस अध्ययन के नतीजे चार अक्टूबर 2023 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि दुनिया भर में उभयचर जीवों की 8,615 प्रजातियां ज्ञात हैं।
आईयूसीएन द्वारा जारी आंकड़ों की मानें तो आज दूसरे अन्य जीवों की तुलना में उभयचरों की सबसे ज्यादा प्रजातियां खतरे में हैं। वैश्विक स्तर पर जहां स्तनधारियों की 27 फीसदी, पक्षियों की 13 फीसदी, कोरल्स की 36 फीसदी और शार्क एवं रे की 37 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं उभयचर जीवों में यह आंकड़ा 41 फीसदी दर्ज किया गया है। इसी तरह केकड़े जैसे जीवों की 28 फीसदी और सांप जैसे रेंगने वाले जीवों की करीब 21 फीसदी प्रजातियां खतरे में हैं।
हाल ही में जर्नल बायोलॉजिकल रिव्यु में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में 16 हजार से अधिक प्रजातियों की आबादी घटी है। इनमें उभयचर जीवों की 3,135 प्रजातियां भी शामिल हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि आवासों को होता नुकसान खतरे में पड़ी उभयचरों की 2,873 प्रजातियों में से 93 फीसदी को प्रभावित कर रहा है।
कृषि, बेतरतीब विकास, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन हैं सबसे बड़े खतरे
इन उभयचर जीवों में मेंढक, टोड, न्यूट, सैलामैंडर और नम वातावरण में रहने वाले अन्य ठंडे रक्त वाले जीव शामिल हैं, जो अपने पर्यावरण में आते बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। ऐसे में जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही और जलवायु में बदलाव आ रहे हैं वो भी इन जीवों के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है।
रिपोर्ट की मानें तो 1980 के बाद से उभयचर जीवों की 37 प्रजातियां हमेशा के लिए दुनिया से लुप्त हो गईं हैं, जिसके लिए मुख्य रूप से इन जीवों में फैलती बीमारियों और उनके आवास को होता नुकसान जिम्मेवार है। वहीं साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी चेतावनी दी है की जलवायु में आता बदलाव इन जीवों के लिए तेजी से गंभीर खतरा बनता जा रहा है। इसकी वजह से 2004 के बाद से इनकी आबादी में 39 फीसदी की गिरावट आई है। अध्ययन के अनुसार, 2004 से 2022 के बीच जलवायु परिवर्तन समेत, कई गंभीर खतरों ने 300 से अधिक उभयचर प्रजातियों को विलुप्त होने के करीब ला दिया है।
देखा जाए तो उभयचर जीवों पर मंडराते इस खतरे के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार है। आज इन जीवों के आवास को होता नुकसान इनके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसकी सबसे बड़ी वजह कृषि है, जो दुनिया भर में उभयचरों की 2,222 प्रजातियों के लिए खतरा है।
इसी तरह टिम्बर और उसके लिए होते वन विनाश से 1,533 प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट में जहां प्रदूषण को 825 प्रजातियों के लिए खतरा माना है, वहीं खनन और ऊर्जा उत्पादन की वजह से 469 प्रजातियां खतरे में पड़ गई है।
इसी तरह तेजी से होते बढ़ते कंक्रीट की वजह से उभयचरों की 1,348 प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इसी तरह यदि जलवायु में आते बदलावों को देखें तो वो वर्तमान और भविष्य में करीब 845 प्रजातियों के लिए खतरा बन चुका है। वहीं आग से 611 प्रजातियों का अस्तित्व संकट में है।
जैवविविधता में आती यह गिरावट आने वाले दशकों में मानवता के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। जो अपने साथ बीमारियां, खाद्य सुरक्षा में गिरावट जैसे खतरों को भी साथ ला रही है। इसका खामियाजा न केवल अर्थव्यवस्था को बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र को भी उठाना पड़ रहा है। देखा जाए तो कहीं न कहीं जैवविविधता को बचाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वो काफी नहीं हैं।
यदि भारत को ही देखें तो देश में केवल छह फीसदी से भी कम हिस्सा संरक्षित है। हालांकि यह तब है जब संरक्षित क्षेत्रों को जैव विविधता की सुरक्षा के लिए सबसे प्रभावी उपकरणों में से एक माना गया है।
वहीं पिछले 10 वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में संरक्षित क्षेत्रों में केवल 0.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस रफ्तार से देखें तो जैवविविधता को बचाने के लिए जो 2030 के लक्ष्य तय किए गए हैं, उनका हासिल करना दूर की कौड़ी नजर आता है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम स्थिति की गंभीरता को समझें और इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों में तेजी लाएं।