
वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन पर लगाम न लगाई गई तो सदी के अंत तक मौजूदा एक तिहाई प्रजातियां धरती से विलुप्त हो सकती हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट से जुड़े जीवविज्ञानी मार्क सी अर्बन द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में उन्होंने पिछले तीन दशकों में प्रकाशित 485 अध्ययनों का विश्लेषण किया है। इसमें बताया गया है कि कैसे प्रजातियां जलवायु में आते बदलावों के प्रति अनुकूल होती हैं।
रिसर्च से पता चला है कि इन प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए हम ही जिम्मेवार हैं। इंसानों की वजह से ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन हवा और महासागरों को गर्म कर रहा है। इसकी वजह से मौसम में अप्रत्याशित बदलाव हो रहे हैं जो आगे भी जारी रहेंगे।
इसकी वजह से जहां कुछ जगहों पर बेहद अधिक बारिश होगी। वहीं दूसरी तरफ कुछ क्षेत्र जरूरत से ज्यादा गर्म और शुष्क हो जाएंगे।
इस बात की भी आशंका है कि दुनिया को सूखा, आंधी, तूफान और लू जैसी कई और भी चरम मौसमी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। यह घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी हो जाएंगी। वातावरण में आते ये बदलाव दूसरे जीवों और पौधों के लिए जीवन कठिन बना देंगे। यह जीव हम इंसानों की तरह अनुकूलन नहीं कर सकते, ऐसे में आने वाले समय में इनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
अपने इस अध्ययन में जीवविज्ञानी मार्क सी अर्बन ने 485 अन्य शोधों की समीक्षा की है। इसमें यह समझने का प्रयास किया गया है कि यह प्रजातियां वातावरण और जलवायु में आते बदलावों का सामना कैसे कर सकती हैं। इसमें उनके जलवायु अनुकूलन की क्षमता का भी विश्लेषण किया गया है।
इसकी वजह से जहां कुछ जगहों पर बेहद अधिक बारिश होगी। वहीं दूसरी तरफ कुछ क्षेत्र जरूरत से ज्यादा गर्म और शुष्क हो जाएंगे।
इस बात की भी आशंका है कि दुनिया को सूखा, आंधी, तूफान और लू जैसी कई और भी चरम मौसमी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। यह घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी हो जाएंगी। वातावरण में आते ये बदलाव दूसरे जीवों और पौधों के लिए जीवन कठिन बना देंगे। यह जीव हम इंसानों की तरह अनुकूलन नहीं कर सकते, ऐसे में आने वाले समय में इनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
अपने इस अध्ययन में जीवविज्ञानी मार्क सी अर्बन ने 485 अन्य शोधों की समीक्षा की है। इसमें यह समझने का प्रयास किया गया है कि यह प्रजातियां वातावरण और जलवायु में आते बदलावों का सामना कैसे कर सकती हैं। इसमें उनके जलवायु अनुकूलन की क्षमता का भी विश्लेषण किया गया है।
उन्होंने इन आंकड़ों की तुलना भविष्य में तापमान में होने वाली वृद्धि से की है ताकि यह देखा जा सके कि इसकी वजह से विभिन्न क्षेत्रों में क्या बदलाव आ सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने प्रजातियों के आवास, प्रवास और अनुकूलन क्षमता के आधार पर प्रजातियों के जीवित बचे रहने की संभावनाओं का भी अनुमान लगाया है।
छोटे जीवों के साथ उनपर निर्भर बड़े जीव भी हो सकते हैं विलुप्त
रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं वो दर्शाते हैं कि यदि सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 5.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, जैसा कि सबसे खराब परिस्थितयों में होने का अंदेशा जताया गया है, तो इसके साथ ही दुनिया की एक तिहाई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने के साथ उनपर निर्भर दूसरी प्रजातियां भी विलुप्त होने लगेंगी। इस तरह विलुप्त होने की एक श्रंखला शुरू हो सकती है।
इसकी वजह से जहां छोटे जीव के विलुप्त होने के साथ उसपर निर्भर दूसरे बड़े जीव भी विलुप्त हो सकते हैं। नतीजन इसकी वजह से उभयचर और कुछ दूसरे जीव कहीं अधिक जोखिम का सामना करने को मजबूर होंगे।