
क्या आप जानते हैं कि 2022 के दौरान दुनियाभर में जितना प्लास्टिक तैयार हुआ, उसमें से 10 फीसदी से भी कम रीसायकल मैटेरियल से बनाया गया था?
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2022 में 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ। लेकिन उसमें से महज 3.8 करोड़ टन यानी 9.5 फीसदी ही रीसायकल करके बनाया गया, जबकि बाकी 36.2 करोड़ टन प्लास्टिक में से 98 फीसदी का उत्पादन जीवाश्म ईंधन, मुख्य रूप से कोयला और तेल से किया गया।
यह जानकारी प्लास्टिक के जीवन चक्र पर किए गए पहले व्यापक वैश्विक अध्ययन से सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरमेंट में प्रकाशित हुए हैं।
प्लास्टिक आज हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। खाने-पीने से जुड़ी चीजों की पैकिंग से लेकर हमारे घरों, दफ्तरों तक हर जगह इसे देखा जा सकता है। एक तरह जहां प्लास्टिक ने जिंदगी आसान कर दी, वहीं इस सुविधा की कीमत पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है। यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसे चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता।
दुनिया में अब भी 10 फीसदी से भी कम प्लास्टिक रीसायकल हो रहा है, जबकि इसका उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। बाकी 91 फीसदी प्लास्टिक को आज भी जलाया, फेंका या लैंडफिल में डाला जा रहा है।
अपने इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और निपटान के वैश्विक और क्षेत्रीय आंकड़ों का विश्लेषण किया है। अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक उत्पादन जो कभी 1950 में 20 लाख टन प्रति वर्ष था वो 2022 में बढ़कर 40 करोड़ टन पर पहुंच गया। मतलब की इसमें सालाना 8.4 फीसदी की वृद्धि हुई। वहीं आशंका है कि 2050 तक प्लास्टिक उत्पादन का यह आंकड़ा बढ़कर दोगना यानी 80 करोड़ टन तक पहुंच जाएगा।
गौरतलब है कि सिंघुआ विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता ने अपने इस विश्लेषण के लिए राष्ट्रीय आंकड़ों, उद्योगों द्वारा जारी रिपोर्टों और अंतरराष्ट्रीय डेटाबेस का उपयोग किया है।
प्लास्टिक: उत्पादन बढ़ा, लेकिन रीसाइक्लिंग नहीं
अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि 2022 में 26.8 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरे के रूप में निपटान किया गया। इसमें से महज 27.9 फीसदी हिस्से को छांटने और संभावित रूप से रीसाइकिल करने के लिए भेजा गया।
36.2 फीसदी हिस्से का सीधे लैंडफिल में निपटान कर दिया गया। वहीं 22.2 फीसदी हिस्से को जलाने के लिए भेज दिया गया। चौंकाने वाली बात है कि जो प्लास्टिक छांटने के लिए भेजा गया था, उसका भी केवल आधा हिस्सा ही रीसाइकिल हुआ। बाकी बचे 41 फीसदी को जला दिया गया और 8.4 फीसदी को लैंडफिल में डाल दिया गया।
2022 में पूरी दुनिया में फेंके गए प्लास्टिक कचरे का 40 फीसदी हिस्सा लैंडफिल (10.4 करोड़ टन) में गया, लेकिन यह आंकड़ा पहले के मुकाबले काफी कम है। 1950 से 2015 के बीच यह आंकड़ा औसतन करीब करीब 79 फीसदी दर्ज किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में हर मिनट दस लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं, जबकि सालाना दुनिया में 500,000 करोड़ प्लास्टिक बैग इस्तेमाल किए जाते हैं। कुल मिलाकर, जितने प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है उसका आधा हिस्सा सिंगल यूज उद्देश्यों के लिए डिजाइन किया गया है। मतलब कि उसे बस एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है।
ऐसे में बढ़ता प्लास्टिक कचरा अपने साथ अनगिनत समस्याएं पैदा कर रहा है, जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। प्लास्टिक का एक रूप माइक्रोप्लास्टिक तो और ज्यादा बड़ा खतरा बन रहा है।
‘मानव युग’ की पहचान बन चुका है प्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक के कण आज दुनिया के हर हिस्से में मौजूद हैं। ये न केवल धरती बल्कि भूवैज्ञानिक इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे हैं। देखा जाए तो प्लास्टिक मानव युग यानी 'एंथ्रोपोसीन' की पहचान बन चुका है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि जब तक प्लास्टिक का उत्पादन तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर रहेगा, तब तक जलवायु संकट से निपटना और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना बेहद कठिन होगा। ऐसे में रीसाइक्लिंग तकनीक, नीति और बुनियादी ढांचे में निवेश की सख्त जरूरत है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक की खपत में मौजूद क्षेत्रीय असमानताओं को भी उजागर किया है। अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत सबसे ज्यादा थी, जो सालाना 216 किलोग्राम प्रति व्यक्ति दर्ज की गई।
इसी तरह यूरोपियन यूनियन में प्रति व्यक्ति 86.6 किलोग्राम और जापान में 129 किलोग्राम/प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत की जाती है। वहीं, कुल खपत के मामले में चीन सबसे आगे रहा, जहां 2022 में करीब आठ करोड़ टन प्लास्टिक का इस्तेमाल हुआ।
प्लास्टिक खपत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां चीन दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो कुल वैश्विक खपत का 20 फीसदी इस्तेमाल कर रहा है। इसके बाद अमेरिका में यह आंकड़ा 18 फीसदी, यूरोपियन यूनियन में 16 फीसदी और अन्य एशियाई देश में 12 फीसदी है।
भारत की बात करें तो यह छह फीसदी, जबकि जापान चार फीसदी प्लास्टिक का उपयोग कर रहा है। वहीं मध्य पूर्व में सात फीसदी जबकि अफ्रीका में पांच फीसदी प्लास्टिक की खपत होती है।
प्लास्टिक कचरे से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां चीन में 8.15 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। वहीं अमेरिका में सालाना चार करोड़ टन, यूरोपियन यूनियन में तीन करोड़ टन, एशिया में 3.5 करोड़ टन, भारत में 94.8 लाख टन, जबकि जापान में 45 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है।
प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के मामले में भी अमेरिका की स्थिति बेहद खराब है, जहां महज पांच फीसदी प्लास्टिक रीसायकल हो रहा है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह अध्ययन भविष्य की नीतियों और नियमों को तय करने के लिए जरूरी आंकड़े प्रदान करता है, ताकि बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाई जा सके साथ ही रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया जा सके।
बता दें कि वैश्विक प्लास्टिक संधि के लिए वार्ता का अगला दौर, जिसे आईएनसी-5.2 के नाम से जाना जाता है, पांच से 14 अगस्त, 2025 के बीच जिनेवा में आयोजित किया जाएगा। यह सत्र दक्षिण कोरिया के बुसान में हुए पिछले दौर की ही अगली कड़ी है, जहां देशों के बीच प्लास्टिक संधि पर सहमति नहीं बन पाई थी।
ऐसे में यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं को यह समझने में मदद कर सकती है कि प्लास्टिक की आपूर्ति श्रृंखला कितनी जटिल है और इसे कैसे बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है।