कटक में अवैध बालू खनन: एनजीटी ने जिलाधिकारी की लापरवाही पर जताई कड़ी नाराजगी

एनजीटी ने कटक के जिला मजिस्ट्रेट की लापरवाही पर नाराजगी जताते हुए अवैध बालू खनन रोकने और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश दिए हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर
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सारांश
  • ओडिशा के कटक में अवैध बालू खनन के मामले में एनजीटी ने जिला प्रशासन की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई है।

  • जिलाधिकारी की रिपोर्ट में खामियां पाई गईं और समय पर हलफनामा दाखिल नहीं हुआ।

  • एनजीटी ने अधिकारियों को अवैध खनन रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया है।

  • यह मामला ओड़िशा के कटक जिले के तंगी-चौद्वार तहसील की भाटीमुंडा बालू खदान में अवैध खनन से जुड़ा है।

  • संयुक्त समिति की जांच में पाया गया कि भाटीमुंडा बालू खदान लंबे समय से बंद थी, वहां कोई वाहन मौजूद नहीं था। खदान के पट्टा क्षेत्र में आंशिक रूप से बिरुपा नदी का पानी भरा था और कुछ जगह झाड़ियां उग गई थी।

  • तहसीलदार और खनन अधिकारी ने रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि पट्टेदार ने अवैध खनन किया था, जिस पर जुर्माना लगाया गया है, लेकिन पट्टेदार अभी तक नियमों का पालन नहीं कर रहा।

ओडिशा के कटक में बिरूपा नदी के पास अवैध बालू खनन के मामले में जिला प्रशासन की लापरवाही पर 9 दिसंबर 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ी नाराजगी जताई है। मामला एनजीटी के बार-बार दिए गए आदेशों के बावजूद कटक के जिलाधिकारी द्वारा अपना पक्ष न रखने का है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने अपने पिछले आदेश में कटक के जिलाधिकारी को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। इसके बाद मार्च 2025 में जिलाधिकारी की रिपोर्ट में खामियां मिलने के बाद दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया। इसके बाद न तो खामियां दूर की गईं और न ही हलफनामा दुबारा दाखिल हुआ।

4 जुलाई 2025 को सुनवाई में उनके वकील तक उपस्थित नहीं हुए। 3 सितंबर को दो महीने का और समय दिया गया, पर रिपोर्ट फिर भी दाखिल नहीं हुई।

पूर्वी पीठ के न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी ने कटक के जिला मजिस्ट्रेट की एनजीटी में चल रही कार्यवाही के प्रति उदासीन रवैये पर गहरी नाराजगी जताई। आदेश में कहा कि अवैध खनन के बारे में शिकायत करने वाले आवेदकों ने संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया है।

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इस पर अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुआ कहा कि, “यदि संबंधित अधिकारी छह महीने से अधिक समय तक अपनी प्रतिक्रिया तक दर्ज कराने की जहमत नहीं उठाते, तो कानून के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और कर्तव्य पालन क्षमता पर संदेह उठना स्वाभाविक ही है।“

अधूरा मॉनिटरिंग सिस्टम, अधूरी कार्रवाई

आदेश में कहा गया है कि अवैध खनन को रोकने और नियंत्रित करने के लिए निगरानी तंत्र और सुधारात्मक उपाय पहले ही तय किए जा चुके हैं। लेकिन संयुक्त समिति की रिपोर्ट से लगता है कि ओड़िशा में यह तंत्र पूरी तरह से स्थापित नहीं हुआ है और सुधार के लिए उपाय ईमानदारी से लागू नहीं किए जा रहे हैं।

अदालत का कहना है, “निगरानी तंत्र की विफलता और सुधारात्मक उपायों को सही ढंग से लागू न किए जाने की कमी इस मामले के तथ्यों और उपलब्ध साक्ष्यों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।“

इसपर एनजीटी ने ओड़िशा के खनन एवं भूविज्ञान निदेशक और ओड़िशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे इस मामले की जांच करें और यह सुनिश्चित करें कि सतत बालू खनन के लिए निगरानी प्रणाली सही तरीके से लागू की जा रही है। इसमें 2016 के सतत बालू खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2020 के खनन निगरानी और प्रवर्तन दिशा-निर्देश और सुप्रीम कोर्ट तथा एनजीटी द्वारा दिए आदेशों का पालन शामिल है।

अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे खनन क्षेत्र से अवैध खनन को रोकने के लिए उपयुक्त कदम उठाएं और क्षेत्र में अवैध खनन में शामिल लोगों और वाहनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए प्रभावी तंत्र लागू करें।

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जिलाधिकारी पर जुर्माना

एनजीटी ने 9 दिसंबर, 2025 को कटक के जिला मजिस्ट्रेट को अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने का एक और अवसर दिया। न्यायालय ने चेतावनी दी कि अगर जिला मजिस्ट्रेट समय पर जवाब दाखिल नहीं करते तो देरी, असुविधा और अनावश्यक देरी के लिए लागत लगाई जा सकती है।

इसके साथ ही अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट को जुर्माने के रूप में 10,000 रुपए भरने और 23 जनवरी 2026 को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। यह राशि 15 दिनों के भीतर एनजीटी की पूर्वी बेंच के रजिस्ट्रार के पास जमा करनी होगी।

जिलाधिकारी को यह भी बताना होगा कि उन्होंने गुजरात मामले (ओए 360/2015) में दिए निर्देशों का पालन करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। साथ ही उन्हें जिला टास्क फोर्स की बैठक के मिनट्स की प्रति भी अपनी प्रतिक्रिया के साथ जमा करनी होगी, जिसमें अवैध खनन रोकने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण होना चाहिए।

इसके अलावा, आदेश में यह भी कहा गया है कि जिलाधिकारी द्वारा जवाब दाखिल करने में हुई इस अनुचित देरी की जानकारी ओडिशा के मुख्य सचिव को दी जाए ताकि सभी जिलाधिकारियों को पर्यावरण संरक्षण और सुधार के संवैधानिक दायित्व की संवेदनशीलता से अवगत कराया जा सके। साथ ही उनसे मूल आवेदन/अपील के नोटिस पर समय पर जवाब देने को प्राथमिकता देने के लिए कहा गया है।

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क्या थी शिकायत?

गौरतलब है कि यह मामला ओड़िशा के कटक जिले के तंगी-चौद्वार तहसील की भाटीमुंडा बालू खदान में अवैध खनन से जुड़ा है।

संयुक्त समिति की जांच में पाया गया कि भाटीमुंडा बालू खदान लंबे समय से बंद थी, वहां कोई वाहन मौजूद नहीं था। खदान के पट्टा क्षेत्र में आंशिक रूप से बिरुपा नदी का पानी भरा था और कुछ जगह झाड़ियां उग गई थी। तहसीलदार और खनन अधिकारी ने रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि पट्टेदार ने अवैध खनन किया था, जिस पर जुर्माना लगाया गया है, लेकिन पट्टेदार अभी तक नियमों का पालन नहीं कर रहा।

संयुक्त समिति की जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि खदान नदी तटबंध के बेहद करीब है, इसलिए यहां वैज्ञानिक और सुरक्षित खनन संभव नहीं है और भविष्य में पर्यावरण को नुकसान का खतरा बना रहेगा।

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