
भारत को अगले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन की दोहरी मार का सामना करना पड़ सकता है। आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया की ताजा रिपोर्ट ‘वेदरिंग द स्टॉर्म: मैनेजिंग मानसून इन अ वार्मिंग क्लाइमेट’ ने चेताया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से 2030 तक देश में भारी बारिश की घटनाएं 43 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। वहीं दूसरी तरफ हीटवेव (लू) वाले दिनों की संख्या ढाई गुना तक बढ़ सकती है।
मतलब कि आने वाले वर्षों में देश पहले से ज्यादा गर्म और नम हो जाएगा।
रिपोर्ट में इस बात की भी आशंका जताई गई है कि मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, सूरत, ठाणे, हैदराबाद, पटना और भुवनेश्वर जैसे शहरों में हीटवेव वाले दिनों में दोगुनी बढ़ोतरी हो सकती है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि लंबे समय तक लू की स्थिति बने रहने से अनियमित, लगातार और भारी बारिश की घटनाएं बढ़ सकती हैं। ऐसे में देश के 10 में से आठ जिले 2030 तक इस तरह की भारी बारिश की कई घटनाओं का सामना करने को मजबूर होंगे।
बढ़ रही मौसम की मार
यह भी सामने आया है कि हाल के दशकों में भारी बारिश, गर्मी और लू के कहर में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है। भारत में यह चरम मौसमी घटनाएं न केवल पहले से ज्यादा हमलावर हो चुकी हैं, साथ ही इनकी तीव्रता और कहर में भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है।
पिछले कुछ दशकों में लू, भारी वर्षा और गर्मी जैसी चरम मौसम घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और अनिश्चितता में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। मतलब कि भारत में यह चरम मौसमी घटनाएं न केवल पहले से ज्यादा हमलावर हो चुकी हैं, साथ ही इनकी तीव्रता और कहर में भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में साझा आंकड़ों पर नजर डालें तो 1993 से 2024 के बीच भारत में गर्मी के मौसम (मार्च से सितंबर) में बेहद गर्म दिनों की संख्या 15 गुना बढ़ गई है। चिंताजनक बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में ही यह वृद्धि 19 गुना हो गई है।
तटीय जिलों में बढ़ेगा गर्मी का तनाव
अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में मानसून के मौसम के दौरान गर्मियों जैसे हालात अब ज्यादा समय तक बने रहते हैं, सिवाय उन दिनों के जब बारिश नहीं होती।
रिपोर्ट में पाया गया कि 2030 तक जून से सितंबर के बीच तटीय इलाकों में गर्मी का दबाव और बढ़ेगा और हीट स्ट्रेस जैसी स्थिति बनी रहेगी। अनुमान है कि 2030 तक 69 फीसदी तटीय जिले लंबे समय तक गर्मी से जुड़ी परेशानियों का सामना करेंगे। वहीं 2040 तक इन जिलों की संख्या बढ़कर 79 फीसदी तक पहुंच सकती है।
कई राज्यों पर पड़ेगी दोहरी मार
रिपोर्ट में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्य हीट स्ट्रेस और भारी बारिश दोनों से बुरी तरह प्रभावित होंगे। 2030 तक इन राज्यों के 80 फीसदी से ज्यादा जिलों पर इन घटनाओं का असर पड़ेगा।
आईपीई ग्लोबल और रिपोर्ट से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता अबिनाश मोहंती ने भारत में जलवायु परिवर्तन के भयावह परिणामों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा "रिपोर्ट के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि कैसे जलवायु परिवर्तन ने भारत को भीषण गर्मी और बारिश के प्रति संवेदनशील बना दिया है, और 2030 तक स्थिति और भी विकट और कठोर होने वाली है। इसमें अधिकांश शहरी केंद्र सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
मोहंती ने आगे कहा कि अल नीनो और ला नीना जैसी मौसमी घटनाएं पहले से कहीं अधिक जोर पकड़ेंगी। इसके चलते बाढ़, चक्रवात, तूफान, और भीषण गर्मी जैसी चरम जलवायु घटनाओं में अचानक से वृद्धि होगी। उनके विश्लेषण से पता चलता है कि करीब 72 फीसदी टियर- I और टियर- II शहरों में गर्मी के तनाव और भारी बारिश की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिलेगी। इसके साथ ही बाढ़, तूफान, बिजली गिरना और ओलावृष्टि जैसी घटनाएं भी बढ़ेंगी।
ऐसे में मोहंती ने जोर देकर कहा, "भारतीय कृषि, उद्योग और बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए, बेहद छोटे स्तर पर जोखिम का आकलन करना और जलवायु-जोखिम वेधशालाएं स्थापित करना अब देश के लिए बेहद जरूरी हो गया है।“
अध्ययन में एक साफ रुझान सामने आया है कि भीषण गर्मी लू के हॉटस्पॉट वाले क्षेत्रों में लगातार और अप्रत्याशित बारिश की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ रही है। तटीय जिलों में अप्रत्याशित बारिश की घटनाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं। इसके साथ ही जिन जिलों में जून से सितंबर के बीच लू (हीटवेव) ज्यादा चलती है, वहां लगातार और अप्रत्याशित बारिश की घटनाएं भी ज्यादा होती हैं।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन जिलों को मौजूदा सामान्य स्थिति में 'हॉटस्पॉट' के रूप में पहचाना गया है, वहां भूमि-उपयोग और भू-आवरण में 63 फीसदी का बदलाव आएगा।
रिपोर्ट के अनुसार ये बदलते पैटर्न भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहे सूक्ष्म-जलवायु परिवर्तनों से प्रेरित हैं। इन बदलावों के लिए स्थानीय जलवायु परिवर्तन के कारक जैसे कि भूमि-उपयोग-सतह में बदलाव, वनों की कटाई, मैंग्रोव और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण आदि भी जिम्मेवार हैं।
क्या है समाधान
आईपीई ग्लोबल के संस्थापक और प्रबंध निदेशक अश्वजीत सिंह ने कहा, "हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दुनिया भर में बढ़ते तापमान के जानलेवा प्रभावों के जवाब में 'चरम गर्मी पर कार्रवाई का आह्वान' किया है, भारत भी इससे अछूता नहीं है।"
उनका कहना है जलवायु और विकास के रास्ते आपस में गहराई से जुड़े हैं। दक्षिण के करीब-करीब सभी देश जीवन स्तर में सुधार लाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के परिणामों के अनुकूल ढलने की दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं।
उनके मुताबिक यह अध्ययन दर्शाता है कि कैसे नवाचारों को हाशिये से ऊपर लाकर मुख्यधारा में शामिल किया जा सकता है, जिससे भारत और दक्षिण के देश जलवायु परिवर्तन के लिए तैयार हो सकें। तभी सही मायनों में भारत दुनिया के लिए जलवायु समाधानों का केंद्र बन पाएगा।
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि भारत को जलवायु जोखिमों को समझने के लिए "क्लाइमेट रिस्क ऑब्जर्वेटरी" जैसी प्रणालियां बनानी चाहिए जो वास्तविक समय में मौसम संबंधी जोखिमों की निगरानी और पूर्वानुमान कर सकें। साथ ही हीटवेव से निपटने के लिए जिला स्तर पर "हीट-चैंपियन्स" नियुक्त करने की भी सिफारिश रिपोर्ट में की गई है।