अपने खेतों को लेकर चिंतित किसान; फोटो: आईस्टॉक
अपने खेतों को लेकर चिंतित किसान; फोटो: आईस्टॉक

भारत ने साल में 322 दिन झेला चरम मौसमी घटनाओं का दंश, तोड़ा पिछले वर्षों का रिकॉर्ड

2024 में इन चरम मौसमी घटनाओं ने 3,472 जिंदगियों को छीन लिया, चिंता की बात है कि तीन वर्षों में इनमें 15 फीसदी की वृद्धि हुई है
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2024 में भारत ने साल के 366 में से 322 दिन चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया। वहीं 2023 में देखें तो यह आंकड़ा 318 जबकि 2022 में 314 दिन दर्ज किया गया। इसका मतलब है कि साल के करीब 88 फीसदी समय देश के किसी न किसी हिस्से में लोग इन चरम मौसमी घटनाओं से जूझ रहे थे।

वहीं 2023 में साल के 87 फीसदी समय में चरम मौसम की स्थिति रही। 2022 में देखें तो यह आंकड़ा 86 फीसदी रिकॉर्ड किया गया था। इसका मतलब है कि हर गुजरते साल के साथ स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर होती जा रही है।

यह विश्लेषण दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ (डीटीई) द्वारा जारी इंटरैक्टिव एटलस के आंकड़ों पर आधारित है।

इस एटलस में भारत में साल दर साल सामने आने वाली चरम मौसमी घटनाओं और उनके प्रभावों को ट्रैक किया गया है। एटलस से पता चला है कि 2024 में भारत को लू, शीतलहर, चक्रवात, भारी बारिश, आकाशीय बिजली, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं से जूझना पड़ा है।

सीएसई-डीटीई डेटाबेस के मुताबिक, भारत को हर दिन कम से कम एक न एक आपदा का सामना करना पड़ा है। वहीं पिछले तीन वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2024 में सबसे ज्यादा दिन चरम मौसमी घटनाओं से आमना-सामना हुआ है। इनकी वजह से देश को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

इन आपदाओं की बढ़ती प्रवत्ति के चलते भारी नुकसान भी हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2024 में इन आपदाओं में 3,472 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वहीं वहीं 2023 में इन आपदाओं में 3,287, जबकि 2022 में 3,026 लोगों की जान गई थी। मतलब की तीन वर्षों में इनकी वजह से होने वाली मौतों में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है।

किसानों पर भारी पड़ रही जलवायु की मार

सीएसई-डीटीई द्वारा जारी एटलस में यह भी सामने आया है कि 2024 में इन चरम मौसमी घटनाओं की वजह से 40.7 लाख हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचा है। वहीं 2023 में यह आंकड़ा 22.1 लाख हेक्टेयर, जबकि 2022 में 19.6 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया। इसका मतलब है कि 2022 की तुलना में इस नुकसान में 108 फीसदी का इजाफा हुआ है।

एटलस में यह भी सामने आया है कि पिछले तीन वर्षों में भारत के करीब-करीब सभी क्षेत्रों में चरम मौसम वाले दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2024 के दौरान मध्य भारत में चरम मौसम वाले दिनों की संख्या देश में सबसे अधिक 253 दर्ज की गई, जो 2022 में दर्ज 218 दिनों से 16 फीसदी अधिक है।

इसी तरह दक्षिणी प्रायद्वीप में 2024 के दौरान 223 दिन चरम मौसमी घटनाओं का कहर देखा गया, जो 2022 की तुलना में 31 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है। इसकी वजह से फसलों को होने वाले नुकसान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि देश में किसान किस कदर जलवायु में आते बदलावों की मार झेल रहे हैं।

यदि राज्यवार आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्य प्रदेश में साल के 185 दिन चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गई, जो देश में सबसे अधिक हैं।

2024 के दौरान मध्य क्षेत्र में फैली 23.6 लाख हेक्टेयर फसल जलवायु से जुड़ी चरम मौसमी आपदाओं की भेंट चढ़ गई। यह भारत की कुल प्रभावित कृषि भूमि का 58 फीसदी है।

इनमें से 20 लाख हेक्टेयर फसल अकेले महाराष्ट्र में बर्बाद हुई। गौरतलब है कि महाराष्ट्र ने साल में 161 दिन चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा 126 था। इसका मतलब है कि 2024 में इन आपदाओं से फसलों को जितना भी नुकसान हुआ है, उसकी करीब आधी मार महाराष्ट्र के किसानों पर पड़ी है। इस नुकसान के लिए राज्य में चरम मौसम वाले दिनों की बढ़ती प्रवृत्ति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

2024 में इन आपदाओं की वजह से मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक 1,052 मौतें हुईं। इसके साथ ही दक्षिणी प्रायद्वीप क्षेत्र में 871, पूर्व और उत्तर-पूर्व में 776 तथा उत्तर-पश्चिम में 773 लोग इन चरम घटनाओं की भेंट चढ़ गए।

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