भारत के 80 फीसदी जिले चरम मौसमी घटना के शिकार, 2036 तक 10 में 8 भारतीय होगा प्रभावित : शोध

गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर चरम ताप और चरम वर्षा का दोहरी मार खा रहे
Photo: Usafe
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देश में करीब 84 फीसदी जिले चरम हीटवेव की जद में हैं, वहीं 70 फीसदी जिलों में मानसून के दौरान चरम वर्षा वाली घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता भी बढ़ रही है। गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर चरम ताप और चरम वर्षा का दोहरी मार खा रहे हैं। वहीं, 2036 तक हर 10 में से 8 भारतीय चरम मौसमी घटनाओं का भुक्तभोगी होगा।

आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया की ओर से की गई संयुक्त रिपोर्ट " मैनेजिंग मानसून्स इन ए वार्मिंग क्लाइमेट" में यह तथ्य सामने रखा गया है। इस रिपोर्ट को 1993 से 2022 तक के देश के अलग-अलग रीजन मेंं तापमान और वर्षा आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है।

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक इन दशकों में चरम स्थितियों वाले ताप और वर्षा की आवृत्ति, तीव्रता और अनिश्चितिता में बढोत्तरी हुई है। भारत में इन तीन दशकों (1993-2022) में मार्च से लेकर सितंबर तक चरम हीटवेव वाले दिनों में 15 गुना की बढोत्तरी हुई है। जबकि बीते एक दशक में एक्स्ट्रीम हीटवेव दिनों में 19 गुना की बढोत्तरी हुई है।अध्ययन के मुताबिक बीते तीन दशक में चरम घटनाओं में न सिर्फ इजाफा हुआ है बल्कि भविष्य में इसके प्रभावितों की संख्या भी बढ़ जाएगी।

अध्ययन के मुताबिक अक्तूबर से दिसंबर तक 62 फीसदी से अधिक हीटवेव प्रभावित भारतीय जिले अनियमित और अत्यधिक वर्षा का सामना कर रहे हैं।

रिपोर्ट बताती है कि वायुमंडलीय तापमान और आर्द्रता में वृद्धि से वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, हीटवेव की संभावना बढ़ जाती है।

अध्ययन के क्षेत्रीय विश्लेषण के आधार पर निम्नलिखित राज्यों में अत्यधिक हीटवेव देखी जा रही हैं :

तटीय क्षेत्र : गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र

मैदानी क्षेत्र : उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगाना, बिहार, दिल्ली

पहाड़ी क्षेत्र : त्रिपुरा, मिजोरम, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, मेघालय, हिमाचल प्रदेश

अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में मानसून के मौसम में गैर-बरसात वाले दिनों को छोड़कर गर्मियों जैसी स्थिति देखने को मिल रही है।

आईपीई ग्लोबल के क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनिबिलिटी प्रैक्टिस के हेड व इस अध्ययन के लेखक अबिनाश मोहंती ने कहा कि विनाशकारी अत्यधिक गर्मी और वर्षा की घटनाओं का वर्तमान रुझान पिछली शताब्दी में 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का परिणाम है। भारत चरम घटनाओं की अशांति का सामना लहरों की तुलना से अधिक पैटर्न में ज्यादा कर रहा हैं। हाल ही में केरल में लगातार और अनियमित वर्षा की घटनाओं का कारण भूस्खलन हुआ और अचानक ही बारिश से शहरों का ठप हो जाना इस बात का प्रमाण है कि जलवायु बदल गई है। उन्होंने आगे कहा कि "हमारा विश्लेषण बताता है कि 2036 तक 10 में से 8 भारतीय चरम घटनाओं से प्रभावित होंगे और ये संख्याएं चरम पर होंगी।"

ईएसआरआई इंडिया के प्रबंध निदेशक, अगेंद्र कुमार ने कहा, "तीव्र वर्षा के साथ-साथ हीटवेव की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारण जीवन, आजीविका और बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है। जीआईएस तकनीक और मानचित्रण व डेटा से जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से बचाव और प्रबंधन की रणनीति को और मजबूत किया जा सकता है।"

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन जिलों ने जिला हॉटस्पॉट की पहचान की है, उनमें लैंड यूज और लैंड कवर में 55 प्रतिशत परिवर्तन हुआ है। ये बदलते पैटर्न भारतीय उपमहाद्वीप में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तनों के कारण हैं जो स्थानीय जलवायु परिवर्तन कारकों जैसे भूमि-उपयोग-सतह परिवर्तन, वनों की कटाई, मैंग्रोव और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण के कारण होते हैं।

अध्ययन में सिफारिश की गई है कि जोखिम मूल्यांकन सिद्धांतों को हीटवेव और अत्यधिक वर्षा के प्रति लचीलापन बनाने के लिए भारत की रणनीति का मूल होना चाहिए।

अध्ययन में यह हीट रिस्क ऑब्जर्वेटरी (एचआरओ) स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है। ऐसी वेधशाला जिसमें शहरी ताप द्वीपों, जल तनाव, वेक्टर जनित रोगों, फसल हानि, और जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के पतन जैसे ताप से संबंधित चरम सीमाओं के खिलाफ बेहतर तैयारी के लिए बहुत ही बारीकी से पुरानी और तीव्र ताप जोखिमों की पहचान, आकलन और अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है।

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