हिमालय क्षेत्र में बढ़ रहीं हैं ग्लेशियल झीलें, पर्यावरण मंत्रालय ने रिपोर्ट में दी जानकारी

रिपोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों पर अध्ययन और बाढ़ प्रबंधन की जिम्मेवारी जल शक्ति मंत्रालय को दी गई है
मध्य हिमालय के पोइक बेसिन में जहां कभी दशकों पहले ग्लेशियर का हिस्सा था, अब वहां एक झील मौजूद है; फोटो जे बी प्रोंक
मध्य हिमालय के पोइक बेसिन में जहां कभी दशकों पहले ग्लेशियर का हिस्सा था, अब वहां एक झील मौजूद है; फोटो जे बी प्रोंक
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केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी) ने 22 अप्रैल, 2025 को अपनी एक रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि न तो मंत्रालय और न ही गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीपीएनआईएचई) को ग्लेशियरों की नियमित निगरानी या बाढ़ से जुड़ी आपदाओं के लिए शुरुआती चेतावनी प्रणाली स्थापित करने का अधिकार है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार में ग्लेशियरों पर अध्ययन और बाढ़ प्रबंधन की जिम्मेदारी जल शक्ति मंत्रालय (एमओजेएस) को दी गई है। इस मंत्रालय के तहत केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), रुड़की जैसे संगठन हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों और झीलों की निगरानी कर रहे हैं।

केंद्रीय जल आयोग हिमालयी क्षेत्र में कई ग्लेशियर झीलों और जल निकायों की निगरानी करता है और इनमें हो रहे बदलावों की रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (एसडीएमए) सहित अन्य संस्थानों एवं हितधारकों को देता है।

वहीं, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीपीएनआईएचई) एक शोध संस्थान है, जो हिमालयी क्षेत्र से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों पर गहराई से अध्ययन करता है। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि इसकी भूमिका केवल शोध तक सीमित है—इसे किसी भी पर्यावरणीय कानून के तहत निगरानी या अमल की जिम्मेदारी नहीं दी गई है।

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मध्य हिमालय के पोइक बेसिन में जहां कभी दशकों पहले ग्लेशियर का हिस्सा था, अब वहां एक झील मौजूद है; फोटो जे बी प्रोंक

संस्थान ने अब तक हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर झीलों के विस्तार या उनकी सूची बनाने पर कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है। हालांकि, हाल ही में किए गए एक अध्ययन में जीबीपीएनआईएचई ने पश्चिमी हिमालय (हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) की 25 ग्लेशियरों और उनके आसपास बनने वाली झीलों का 1990 से 2015 के बीच विश्लेषण किया था। अध्ययन से पता चला है कि इस अवधि के दौरान ग्लेशियल झीलों की संख्या और उनके क्षेत्रफल में भारी वृद्धि हुई है।

जलवायु परिवर्तन से हिमालय पर बढ़ रहा है खतरा

गौरतलब है कि जिस तरह से वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, उससे कई तरह के खतरे हो रहे हैं, इनमें से एक है तेजी से पिघलते ग्लेशियर। इन ग्लेशियरों के पिघलने से जहां हिमनद झीलों के क्षेत्र में इजाफा हो रहा है, वहीं नई झीलें भी अस्तित्व में आ रहीं हैं। लेकिन साथ ही यह झीलें पहले से कहीं अस्थिर हो रहीं हैं। नतीजन पहाड़ी इलाकों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है। 

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गौरतलब है कि अक्टूबर 2023 में ऐसी ही एक हिमनद झील के फटने से भारत में विनाशकारी बाढ़ आई थी। इस बाढ़ ने 55 जिंदगियों को लील लिया था। साथ ही तीस्ता III जलविद्युत परियोजना पर गहरा असर डाला था। इस दौरान दक्षिण ल्होनक हिमनद झील के किनारें टूट गए थे। इसी तरह जून 2013 में केदारनाथ में आए सैलाब ने हजारों जिंदगियों को छीन लिया था।

पॉट्सडैम यूनिवर्सिटी द्वारा किए एक अध्ययन में भी सामने आया है कि हिमालय क्षेत्र की हजारों प्राकृतिक झीलों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए बढ़ते तापमान को जिम्मेदार माना है।

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विश्लेषण से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में करीब 5,000 झीलों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि उनके किनारे कमजोर और अस्थिर हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि जिन झीलों में ज्यादा पानी है, उनसे बाढ़ का खतरा भी उतना ज्यादा है।

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भी अप्रैल 2024 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिनकी वजह से वहां मौजूद झीलों का आकार तेजी से बढ़ रहा हैं। इसकी वजह से आकस्मिक बाढ़ ((ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड) जैसे खतरे पैदा हो सकते हैं।

इसरो द्वारा किए एक अध्ययन के मुताबिक हिमालय में 2016 -17 के दौरान 10 हेक्टेयर से बड़ी करीब 2,431 ग्लेशियर झीले दर्ज की गई थी। इनमे से 676 झीलों के क्षेत्रफल में पिछले तीन दशकों (1984-2023) के दौरान दोगुने का इजाफा हुआ है।

इनमें सबसे अधिक (307) मोरेन डैम झीले ही है। साल 2023, अक्टूबर में सिक्किम के साउथ लोनक ग्लेशियर झील, जो एक मोरेन डेम्ड झील है, के फटने से तीस्ता नदी में प्रयलंकार बाढ़ आ गई थी। इसकी वजह से 200 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और चांगथांग जैसे बड़े बांध के साथ- साथ अनेको पुल और सड़कें तबाह हो गई थी।

वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि निकट भविष्य में पूर्वी हिमालय की हिमनद झीलों के कारण आने वाली बाढ़ का खतरा तीन गुना अधिक है। द इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के मुताबिक पर्वतीय ग्लेशियरों के पीछे हटने से ग्लेशियल झीलों का आकार और संख्या बढ़ गई है।

जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर पहले के मुकाबले 10 गुणा ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। इसके चलते भारत सहित एशिया के कई देशों में जल संकट और गहरा सकता है।

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