उत्तरी सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील के टूटने यानी ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) से जुड़े कई सवाल हैं, वैज्ञानिक जिनके जवाब तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन स्पष्ट तौर पर एकमत हैं कि इस प्राकृतिक आपदा की एक बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है, और भविष्य में ग्लेशियल झीलों के बनने और टूटने का खतरा बड़ा हो रहा है।
ल्होनक झील समुद्र तल से करीब 5200 मीटर की ऊंचाई पर है। आमतौर पर 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर बारिश नहीं बल्कि बर्फबारी होती है। तो क्या ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने की घटना हुई, जिससे झील में अचानक पानी की मात्रा बढी?
सितंबर, 2023 का औसत वैश्विक तापमान 1991-2020 के औसत से 0.93 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसरो का सैटेलाइट डाटा दिखाता है कि सितंबर महीने में ल्होनक झील का आकार बढ़ा है। तो क्या ग्लेशियर के पिघलने से झील में पानी बढा?
पिछले एक साल में हिमालयी क्षेत्र में 3 बड़े भूकंप आ चुके हैं। 3 अक्टूबर की रात पश्चिमी नेपाल और पूर्वी उत्तराखंड में 6 तीव्रता के भूकंप का असर क्या करीब 700 किलोमीटर दूर सिक्किम हिमालयी क्षेत्र पर भी रहा?
क्या हिमालयी ग्लेशियर क्षेत्र में खतरे के लिहाज से संवेदनशील मानी जाने वाली प्रोग्लेशियल झीलों (जिनके तटबंध मोरेन यानी ढीली धूल-मिट्टी से बनते हैं) की मॉनिटरिंग और नुकसान से बचाव के लिए अर्ली वॉर्निंग अलर्ट सिस्टम विकसित है?
डाउन टू अर्थ ने देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ कलाचंद सैन से इन्हीं मुद्दों पर बातचीत की।
4 अक्टूबर 2023 को सिक्किम में ल्होनक झील टूटने की वजह फिलहाल क्या समझ आती है?
इसरो की सेटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि 17 सितंबर 2023 को ल्होनक झील का आकार 162.7 हेक्टेअर था, 28 सितंबर को झील बढकर 167.5 हेक्टेअर में फैल गई और 4 अक्टूबर को झील टूटने के बाद उसका आकार 60.4 हेक्टेअर ही दिखाई दे रहा है। यानी उस दौरान झील के 100 हेक्टेअर से अधिक क्षेत्र से पानी निकलकर सीधा नीचे की ओर आया।
ल्होनक झील भी मोरेन तटबंध से बनी है। झील का पानी करीब 50 किलोमीटर नीचे तीस्ता नदी पर बने चुंगथांग हाइड्रो बांध तक आया। ल्होनक झील का आकार इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की झील से 6 गुना से भी अधिक है।
उस समय वहां बादल फटने और अत्यधिक भारी बारिश की भी सूचना है। बांध की झील पानी के इस दबाव को झेल नहीं सकी जिससे डैम टूट गया और भारी मात्रा में पानी नीचे की ओर आगे बढा।
मौसम विभाग की सूचना बताती है कि सितंबर के आखिरी हफ्ते में गर्मी बहुत ज्यादा थी। एक अनुमान यह है कि ग्लेशियर पिघलने की वजह से ल्होनक झील में पानी बढा होगा। फिर बादल फटने और भारी बारिश की रिपोर्ट है। झील में क्षमता से अधिक पानी भरने की वजह से उसके मोरेन तटबंध टूट गए और झील टूट गई।
जलवायु परिवर्तन की वजह से बहुत सी मौसमी अनियमितताएं हो रही हैं। वाडिया संस्थान मौसमी घटनाओं का अध्ययन नहीं करता। लेकिन समुद्रतल से 4500 मीटर और उससे अधिक ऊंचाई पर बर्फबारी होती है बारिश नहीं। करीब 5200 मीटर ऊंचाई पर ल्होनक झील के ऊपर बादल फटने की घटना की भी जांच की जरूरत है।
इसके अलावा हम यह भी देखने-समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या 3 अक्टूबर की रात पश्चिमी नेपाल और पूर्वी उत्तराखंड में पिथौरागढ़ सीमा के पास दोपहर 2:51 मिनट पर 6 तीव्रता से अधिक के भूकंप का भी असर रहा होगा। इस भूकंप से करीब 25 मिनट पहले 4.3 तीव्रता का एक छोटा भूकंप आया था। दोपहर 2:51 बजे के भूकंप के बाद भी रात करीब 9 बजे तक भूकंप के (आफ्टर शॉक) झटके 6 बार महसूस किए गए। उन सबकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5 से अधिक थी।
इससे पहले 12 नवंबर 2022 को भूकंप ( 5.4 तीव्रता) और 24 जनवरी 2023 को (5.8 तीव्रता) भूकंप के झटके महसूस किए गए। हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इन भूकंपों ने पहले से संवेदनशील ल्होनक झील को उत्प्रेरित (trigger) किया और क्या भूगर्भीय वजहों के चलते भी झील टूट सकती है।
सिक्किम से पहले उत्तराखंड के चमोली में फरवरी 2021 में ग्लेशियर टूटने के चलते एक बडा हादसा हो चुका है। उस समय भी गर्मी बहुत ज्यादा रिकॉर्ड की गई थी। क्या मौजूदा समय में ग्लोबल वार्मिंग या चरम मौसमी घटनाएं ग्लेशियल झीलों के बनने और टूटने के खतरे को बढा रही है?
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में 10 हजार से अधिक ग्लेशियर और 20 हजार से अधिक ग्लेशियल झीलें हैं। अकेले उत्तराखंड में 1250 ग्लेशियर और करीब 350 मोरेन ग्लेशियल झीलें हैं। ग्लेशियल क्षेत्र में झीलें बनती और टूटती रहती हैं। सभी झीलें खतरनाक नहीं होतीं। खतरा मोरेन झीलों के साथ होता है।
उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड में भागीरथी बेसिन की सहायक भिलंगना बेसिन में भिलंगना ग्लेशियर पर झील बनी हुई है। हम पिछले कई सालों से इस झील को मॉनिटर कर रहे हैं और हमें पता चल रहा है कि ग्लेशियर पिघलने से ये झील लगातार बड़ी हो रही है।
वर्ष 1976 की सेटेलाइट तस्वीरों के आधार पर झील के आकार को शून्य मानें तो मौजूदा सेटेलाइट तस्वीरों में यह करीब 0.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (4 लाख वर्ग मीटर) में फैली हुई है। अभी हमें झील की गहराई का अंदाजा नहीं है इसलिए पानी की सही-सही मात्रा का आकलन मुश्किल है। 47 वर्षों में एक विशाल झील तैयार हो गई है। यह भविष्य के लिए खतरा हो सकती है। हमने राज्य सरकार को इस पर रिपोर्ट भी सौंपी है।
तापमान बढने के चलते ग्लेशियल पिघल रहे हैं और ग्लेशियल झीलें बढ रही हैं। ऐसे में कोई चरम मौसमी घटना होती है, जैसे कि बहुत भारी बारिश या भूकंप, तो आपदा की आशंका भी बढ़ जाती है।
क्या हम खतरे के लिहाज से संवेदनशील झीलों की मॉनिटरिंग करने में सक्षम हैं?
वाडिया संस्थान या कोई भी अन्य संस्थान सभी झीलों को मॉनिटर नहीं कर सकता। हमने अपनी क्षमता और संसाधनों के हिसाब से कुछ ग्लेशियल झीलों का चयन किया है। खतरे के लिहाज से जिसका असर नजदीकी आबादी पर पड़ सकता है। भिलंगना झील, चमोली आपदा के बाद धौलीगंगा ग्लेशियर क्षेत्र की झील समेत उत्तराखंड के 10 ग्लेशियल झीलों को मॉनिटर कर रहे हैं। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में दो झील और लद्दाख के काराकोरम रेंज में एक ग्लेशियर की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
चमोली 2021 और सिक्किम 2023, दोनों ही मामलों में कोई अर्ली वॉर्निंग सिस्टम काम करता हुआ नहीं दिखा। क्या ग्लेशियल झीलों को लेकर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम मौजूद है?
सिक्किम में राज्य सरकार के साथ ही बहुत सी संस्थाएं ल्होनक झील को मॉनिटर कर रही हैं। वाडिया संस्थान भी इस पर अध्ययन कर चुका है। हमें पता था कि झील से कभी भी खतरा हो सकता है। इसी तरह भिलंगना झील से आपदा की आशंका को लेकर हमने राज्य सरकार को रिपोर्ट दी है। आपदा की स्थिति में बचाव के इंतजाम और तैयारी सरकार को करनी है।
लेकिन अचानक भारी बारिश या भूकंप जैसी घटनाएं प्रोग्लेशियल झीलों के टूटने के खतरे के बढा सकती हैं। हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से अलर्ट सिस्टम बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं।