हिमालय पर जलवायु परिवर्तन का असर, नेपाल में ग्लेशियल झील फटने पर आईसीआईएमओडी ने जताई चिंता

हिमालय पर रह रहे पहाड़ी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिए बिल्कुल भी जिम्मेवार नहीं हैं, लेकिन उत्सर्जन की वजह से हो रहे जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार यही पहाड़ी समुदाय के लोग हैं
आईसीआईएमओडी द्वारा जारी एक तस्वीर
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हिंदू कुश हिमालय पर विस्तार लेती ग्लेशियल झीलें एक बड़ा खतरा बनती जा रही हैं। चार दिन पहले यानी 16 अगस्त 2024 को नेपाल के खुम्बू क्षेत्र के एक गांव थामे में थायन्बो ग्लेशियल झील के फटने से आई बाढ़ (जीएलओएफ) ने एक बार फिर से चिंताएं बढ़ा दी हैं।

स्थानीय मीडिया के अनुसार नेपाल में आई इस बाढ़ से 14 संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है, इसमें एक स्कूल, एक स्वास्थ्य केंद्र, पांच होटल और सात घर शामिल हैं। हालांकि यह प्रारंभिक आकलन बताया गया है। यह गांव प्रसिद्ध एवरेस्ट पर्वतारोही और वर्तमान रिकॉर्ड धारक कामी रीता शेरपा का घर है और काफी प्रसिद्ध हैं।

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थामे के ऊपर की ओर कई ग्लेशियल झीलें बताई जाती हैं। हिंदू कुश हिमालय पर काम कर रही संस्था दी इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के कोपरनिकस पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम की 2017 की उपग्रह छवियों को देखने के बाद पाया कि इन झीलों का आकार लगातार बदल रहा है।

आईसीआईएमओडी के शोधकर्ताओं ने पुष्टि की है कि उन झीलों में से कुछ अक्सर फैलती और सिकुड़ती हैं, जिससे उनमें दरार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।

आईसीआईएमओडी की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक सेंटिनल उपग्रह इमेजरी में थामे नदी के ऊपर की ओर स्थित झील के आकार में लगातार बदलाव देखा गया।

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आईसीआईएमओडी के मुताबिक ये झीलें ताशी लापचा दर्रे के लोकप्रिय ट्रेकिंग गंतव्य के पास स्थित हैं। पड़ोसी घाटी में इस क्षेत्र की सबसे संभावित खतरनाक ग्लेशियल झीलों में से एक, त्सो रोल्पा है।

आईसीआईएमओडी के वैज्ञानिक जीएलओएफ के कारणों और इसके डाउनस्ट्रीम प्रभाव की आगे की जांच कर रहे हैं, जिसमें नेपाल के जल विज्ञान और मौसम विज्ञान विभाग सहित राष्ट्रीय और स्थानीय एजेंसियों के प्रयासों को पूरक बनाने के लिए उपग्रह से पहले और बाद की तस्वीरें लेना शामिल है।

हिंदू कुश हिमालय में जल, बर्फ, समाज और पारिस्थितिकी तंत्र पर आईसीआईएमओडी के 2023 के आकलन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर, बर्फ और पर्माफ्रॉस्ट बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। इतना ही नहीं, ये परिवर्तन सबसे अधिक संवेदनशील हैं।

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रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 26 करोड़ लोग हिंदू कुश हिमालय के पहाड़ों में रहते हैं और ये पहाड़ी समुदाय "पहले से ही ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने, बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव, पानी की उपलब्धता में बढ़ती परिवर्तनशीलता और क्रायोस्फीयर से संबंधित खतरों की बढ़ती घटनाओं के प्रभावों के साथ रह रहे हैं, जो उनके जीवन और आजीविका पर सीधा प्रभाव डाल रहे हैं।"

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि बाढ़ और भूस्खलन में वृद्धि होने का अनुमान है। खासकर जलवायु परिवर्तन की वजह से जल और क्रायोस्फीयर संबंधी आपदाएं पिछले कुछ सालों में रिकॉर्ड की गई हैं। बर्फ का तेजी से पिघलते पानी, बड़ी और खतरनाक झीलें, पिघलते हुए पर्माफ्रॉस्ट से अस्थिर ढलान और नदियों में बढ़ते तलछट के भार के माध्यम से ये आपदाएं आई हैं।

पर्वतीय ग्लेशियरों के पीछे हटने से ग्लेशियल झीलों का आकार और संख्या बढ़ गई है, और 21वीं सदी के अंत तक पूरे हिंदू कुश हिमालय में ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ के जोखिम में तीन गुना वृद्धि का अनुमान है, और यह अनुमान लगाया गया है कि हम 2050 तक ‘जीएलओएफ जोखिम के चरम’ पर पहुंच जाएंगे।

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हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में 25,000 से अधिक ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें से 47 संभावित खतरनाक ग्लेशियल झीलें (पीडीजीएल) नेपाल के कोशी, गंडकी और करनाली नदी घाटियों, चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र और भारत में स्थित हैं।

उच्च पर्वतीय एशिया जीएलओएफ के जोखिम के लिए एक वैश्विक हॉटस्पॉट है। एक नई ग्लेशियल लेक इंवेंटरी रिपोर्ट के अनुसार लगभग दस लाख लोग ग्लेशियल झील के 10 किमी के भीतर रहते हैं। साथ ही, ग्लेशियल झीलों की संख्या और आकार में वृद्धि जारी रहने वाली है।

आईसीआईएमओडी के मुताबिक 16 अगस्त, 2024 को झील के टूटने से पहले नेपाल मानक समय के अनुसार सुबह 10:46 बजे झील का आकार लगभग 0.05 वर्ग किमी था। हमारा अनुमान है कि यह टूट उसी दिन दोपहर 1:25 बजे के आसपास हुई।

आईसीआईएमओडी क्रायोस्फीयर विश्लेषक और सेव अवर स्नो अभियान के संस्थापक तेनजिंग चोग्याल शेरपा, सोलुखुम्बु क्षेत्र के ही रहने वाले हैं, जहां बाढ़ आई थी। प्रेस को जारी एक बयान में उन्होंने कहा, "इस बाढ़ ने एक गांव के कुछ हिस्सों को बहा दिया, जिसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, जहां दोस्त, पड़ोसी और रिश्तेदार रहते हैं, जहाँ पीढ़ियों से उनके पैतृक संबंध हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "पहाड़ों में रहने वाले लाखों लोगों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सचमुच कुछ भी योगदान नहीं दिया है, लेकिन इन उत्सर्जनों के विनाशकारी प्रभावों का सामना वे लोग ज्यादा कर रहे हैं।"

इस बयान में उनकी तरफ से कहा गया है, "विज्ञान स्पष्ट है: जी20 अर्थव्यवस्थाओं को जीवाश्म ईंधन से अपने संबंधों को खत्म करना चाहिए और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में तेजी लानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुकूलन, नुकसान और क्षति निधि प्रभावित समुदायों तक पहुंचे। पर्वतीय समुदायों के लिए - इस पर तत्काल कार्रवाई के लिए अपनी आवाज उठाएं। इस मुद्दे पर विश्व स्तर के नेताओं की निरंतर निष्क्रियता एक जोखिम पैदा कर रही है।"

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प्रेस विज्ञप्ति में सेव अवर स्नो के समर्थक डॉ. नीमा शेरपा के हवाले से कहा गया: "थामे एक खूबसूरत गांव था, शेरपा लोगों और उनके परिवार की कई पीढ़ियों का घर। ये घर अब मलबे के नीचे दबे हुए हैं। यह देखना दुखद है कि पर्वतीय समुदाय वैश्विक जलवायु संकट की कीमत कैसे चुका रहे हैं। कुछ लोग बहुत अधिक या बहुत कम बर्फ का सौंदर्य व मनोरंजन पर पड़ रहे असर की शिकायत करते हैं, लेकिन इस तरह का बदलाव पहाड़ी समुदाय का पूरा जीवन प्रभावित कर रहा है।

प्रेस विज्ञप्ति में आईसीआईएमओडी के क्रायोस्फीयर लीड मिरियम जैक्सन ने कहा, “जलवायु परिवर्तन एक अपराध स्थल है। ग्लेशियर इसे दृश्यमान बना रहे हैं। हम दूसरी तरफ नहीं देख सकते।"

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