जलवायु संकट: सदी के अंत तक अपनी 80 फीसदी बर्फ खो देंगें हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दशक की तुलना में 2011 से 2020 के बीच हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियरों में मौजूद बर्फ 65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है
हिंदू कुश हिमालय और वहां मौजूद ग्लेशियर; फोटो: आईस्टॉक
हिंदू कुश हिमालय और वहां मौजूद ग्लेशियर; फोटो: आईस्टॉक
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वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है यदि ऐसा ही चलता रहा तो सदी के अंत तक हिंदू कुश हिमालय पर मौजूद ग्लेशियर अपनी 80 फीसदी बर्फ को खो देंगें। इसके भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों पर जानलेवा प्रभाव पड़ेंगें।

वैज्ञानिकों की मानें तो इससे एक तरफ जहां इस क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा। जल संकट गहरा जाएगा। साथ ही इसका खामियाजा इस हिन्दुकुश के पूरे पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र को भुगतना पड़ेगा। जो पहले ही अत्यंत संवेदनशील है। यह जानकारी इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "वाटर, आइस, सोसाइटी एंड इकोसिस्टम्स इन हिंदू कुश हिमालय" में सामने आई है।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके अनुसार यहां जमा बर्फ बड़ी तेजी से पिघल रही है। इन ग्लेशियरों को हो रहे नुकसान की दर जो 2000 से 2009 के बीच 0.17 मीटर प्रति वर्ष से बढ़कर 2010 से 2019 के बीच 0.28 मीटर प्रति वर्ष पर पहुंच गई है। मतलब की पिछले दशक की तुलना में 2010 से 2019 के बीच हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियरों में मौजूद बर्फ 65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है।

रिपोर्ट के अनुसार वहीं यदि तापमान में होती वृद्धि 1.5 या दो डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाती है, तो इस पूरे क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर सदी के अंत तक अपना करीब 50 फीसदी तक हिस्सा खो देंगें। गौरतलब है कि हिंदू कुश हिमालय ने 1951 से 2020 के बीच तापमान में प्रति दशक 0.28 डिग्री सेल्सियस की औसत वृद्धि देखी है। वहीं तिब्बती पठार, अमु दरिया, ब्रह्मपुत्र बेसिन और मेकांग के साथ यांग्त्ज़ी बेसिन में तापमान 0.66 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की रफ्तार से बढ़ रहा है।

यही वजह है कि दक्षिणपूर्व तिब्बत और न्याइनकेंटंग्ल्हा क्षेत्रों में ग्लेशियर का भारी नुकसान हुआ है, जिनमें 2010 से 2019 के बीच प्रति वर्ष 0.78 मीटर की गिरावट आई है। अनुमान है कि चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ हिम आवरण 26 फीसदी तक घट जाएगा।

लेकिन इन ग्लेशियर में गिरावट उनकी स्थिति और तापमान में होती वृद्धि पर निर्भर करता है। जैसा की अनुमान है कि सदी के अंत तक तापमान में होती वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस को पार कर सकती है। ऐसे में हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर जिनमें नेपाल और भूटान के हिस्से शामिल हैं वो अपनी 75 फीसदी बर्फ खो सकते हैं। वहीं यदि तापमान में होती वृद्धि यदि चार डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाती है तो इनमें 80 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।

65 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है बर्फ

इस बारे में रिपोर्ट से जुड़े शोधकर्ता और पर्यावरण वैज्ञानिक फिलीपस वेस्टर का कहना है कि, "हम ग्लेशियर खो रहे हैं और इन्हें हम अलगे 100 वर्षों में खो देंगें।“हिंदू कुश हिमालय भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में करीब 3,500 किलोमीटर में फैला है।

आईसीआईएमओडी के मुताबिक हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर करीब 73,173 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। इनमें एवेरेस्ट और के2 जैसी दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत शामिल हैं। यदि रिपोर्ट की मानें तो यदि ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़ दें तो धरती पर सबसे ज्यादा बर्फ इन्हीं पहाड़ों पर जमा है। इसकी वजह से यहां तक कि पश्चिमी कुनलुन और काराकोरम जैसे क्षेत्रों में बड़े ग्लेशियरों में भी अपना आधा हिस्सा खो देंगें।

बता दें कि यह हिमालय के इन पहाड़ों में मौजूद बर्फ एशिया में करीब 200 करोड़ लोगों की ताजे पानी की जरूरतों को पूरा करती है। यह 200 करोड़ लोगों एशिया के 16 देशों में बसे हैं जिनमें भारत भी एक है। इनमें से 24 करोड़ लोग वो हैं जो हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में रह रहे हैं जबकि 165 करोड़ निचले इलाकों में बसे हैं।

लेकिन अपनी जल सम्बन्धी जरूरतों के लिए वो भी उन नदियों पर निर्भर करते हैं जो हिमालय के इस क्षेत्र में मौजूद बर्फ पर निर्भर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र में मौजूद बर्फ 12 नदियों को जीवन देती है, जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, येलो, मेकांग, यांग्त्से और इरावदी जैसी नदियां शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह से वहां जमा बर्फ पिघल रही है उसके चलते जहां 2050 तक पानी की उपलब्धता अपने पीक पर पहुंच जाएगी जो उसके बाद घटना शुरू हो जाएगी। इसकी वजह से इस पर निर्भर लोगों और जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। वैज्ञानिकों ने भी इस बारे में चेतावनी दी है कि जिस तरह से इस क्षेत्र में क्रायोस्फीयर में बदलाव आ रहे हैं उसके विनाशकारी परिणाम सामने आ सकते हैं।

अनुमान है कि तेजी से पिघलती इस बर्फ के चलते जहां बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा साथ ही वो अपने साथ भूस्खलन की घटनाओं की भी वजह बनेगा। रिपोर्ट के अनुसार इसके बढ़ते तापमान की वजह से जहां इस क्षेत्र में मौजूद हिम आवरण एक चौथाई तक घट जाएगा। वहीं पर्माफ्रॉस्ट भी कम हो रहा है।

पूरे इकोसिस्टम पर मंडरा रहा है खतरा

इस घटती बर्फ की वजह से न केवल लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा साथ ही उनकी जीविका भी खतरे में पड़ जाएगी। इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग पहले ही अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं और प्रकृति की मार झेलने को मजबूर है। ऐसे में इन बदलावों की वजह से उनके लिए संकट और बढ़ जाएगा।

इसकी वजह से ने केवल उनकी फसलों पर असर पड़ेगा साथ ही चारे की कमी, मवेशियों की मृत्यु से दबाव बढ़ जाएगा। वहीं इसकी वजह से जो आपदाएं आएंगी वो उनके जीवन और सम्पति को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं। साथ ही इसकी वजह से वहां बुनियादी ढांचे को नुकसान होगा। ऐसे में इन लोगों को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक क्षति भी उठानी पड़ेगी। पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन बढ़ जाएगा। इसकी वजह से समस्या बहुत जटिल हो जाएगी और इसके परिणाम काफी गंभीर होंगें।

रिपोर्ट की मानें तो इसका इस क्षेत्र की जैवविविधता पर भी गहरा असर पड़ेगा। यह क्षेत्र पहले ही बहुत ज्यादा संवेदनशील है ऊपर से यह बदलाव कहीं ज्यादा घातक प्रभाव डालेगा। रिपोर्ट के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव यहां पाई जाने वाली करीब-करीब सभी प्रजातियों पर पड़ेगा। गौरतलब है कि यह क्षेत्र पहले ही जैव-विविधता और प्रजातियों में गिरावट का सामना कर रहा है, जिनमें से कई बड़ी तेजी से विलुप्त होने की कगार पर जा रही हैं।

रिपोर्ट की मानें तो बर्फ में आते इस बदलाव का क्षेत्र की जैवविविधता पर भी गहरा असर पड़ेगा। यह क्षेत्र पहले ही बहुत ज्यादा संवेदनशील है ऊपर से यह बदलाव कहीं ज्यादा घातक प्रभाव डालेगा। रिपोर्ट के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव यहां पाई जाने वाली करीब-करीब सभी प्रजातियों पर पड़ेगा। गौरतलब है कि यह क्षेत्र पहले ही जैव-विविधता और प्रजातियों में गिरावट का सामना कर रहा है, जिनमें से कई बड़ी तेजी से विलुप्त होने की कगार पर जा रही हैं।

यह स्थिति इसलिए भी और गंभीर है क्योंकि हिमालयी के इस क्षेत्र के करीब 67 फीसदी पारिस्थितिक क्षेत्र और इसके वैश्विक जैव विविधता के चार हॉटस्पॉट का करीब 39 फीसदी हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों में शामिल नहीं है। ऐसे में जलवायु में आते बदलावों से उनके लिए खतरा और बढ़ जाएगा।

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