जलवायु संकट: जंगल, मिट्टी व महासागर के कार्बन अवशोषण की क्षमता घट रही:रिपोर्ट

जलवायु संकट के सामने कमजोर पड़ रहे हैं प्राकृतिक तौर पर कार्बन जमा करना और सीमित कार्बन हटाने के उपाय, तत्काल नीतिगत कार्रवाई जरूरी
प्राकृतिक तौर पर कार्बन जमा करने वाले अब उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को उतनी मात्रा में अवशोषित नहीं कर पा रहे हैं जितना पहले किया करते थे।
प्राकृतिक तौर पर कार्बन जमा करने वाले अब उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को उतनी मात्रा में अवशोषित नहीं कर पा रहे हैं जितना पहले किया करते थे। फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • प्राकृतिक कार्बन सिंक कमजोर हो रहे हैं, जंगल, मिट्टी और महासागर अब कम सीओ2 अवशोषित कर रहे हैं।

  • बड़े पैमाने पर प्रकृति आधारित कार्बन हटाने परियोजनाएं खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता पर दबाव डाल सकती हैं।

  • वॉलंटरी कार्बन मार्केट्स में पारदर्शिता और विश्वसनीयता की कमी, मजबूत मानक की आवश्यकता।

  • बढ़ती गर्मी और समुद्री लू से स्वास्थ्य, कृषि और श्रम उत्पादकता पर गंभीर असर।

  • जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि एक-दूसरे को बढ़ाते हैं, नीति और तकनीकी समाधान दोनों जरूरी।

हाल ही में वैज्ञानिकों ने '10 न्यू इनसाइट्स इन क्लाइमेट साइंस 2025-26' नामक एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि पृथ्वी के प्राकृतिक कार्बन सिंक अब अपने चरम सीमा पर पहुंच रहे हैं। अब वे उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को उतनी मात्रा में अवशोषित नहीं कर पा रहे हैं जितना पहले किया करते थे। लंबे समय से चल रहे जलवायु परिवर्तन ने उनकी क्षमता को कमजोर कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, न केवल प्राकृतिक प्रणाली कमजोर हो रही है, बल्कि प्रकृति आधारित कार्बन हटाने के प्रयास भी जोखिम में हैं।

रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि बड़े पैमाने पर प्रकृति आधारित कार्बन हटाने की परियोजनाएं खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता के लिए चुनौती बन सकती हैं। इस कारण, केवल प्राकृतिक सिंकों और परियोजनाओं पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ तकनीकी या “नवीन” कार्बन हटाने की जरूरत भी है।

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प्राकृतिक कार्बन सिंक कमजोर पड़ रहे हैं

विशेष रूप से उत्तरी गोलार्ध के जंगल और मिट्टी अब कार्बन अवशोषित करने में पिछड़ रहे हैं। महासागर, जो कार्बन और गर्मी को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, भी अब कम कार्बन अवशोषित कर रहे हैं। समुद्री लू या हीटवेव की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ने से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और तटीय समुदाय प्रभावित हो रहे हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हमने लंबे समय तक अपने जंगलों और मिट्टी पर भरोसा किया कि वे हमारे कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करेंगे, लेकिन उनकी क्षमता कमजोर हो रही है। इसका मतलब है कि हम वर्तमान उत्सर्जन अंतर को कम आंक रहे हैं और भविष्य में वैश्विक गर्मी की गति अधिक तेजी से बढ़ सकती है।

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प्रकृति आधारित समाधान सीमित

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बड़े पैमाने पर प्रकृति आधारित कार्बन हटाने की परियोजनाएं सीमित मात्रा में कार्बन अवशोषित कर सकती हैं। इन परियोजनाओं का विस्तार खाद्य उत्पादन और जैव विविधता पर दबाव डाल सकता है। इसलिए, केवल पेड़ लगाना या भूमि संरक्षण पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं होगा।

कार्बन मार्केट्स में समस्याएं

वॉलंटरी कार्बन क्रेडिट मार्केट्स को एक समाधान के रूप में देखा जाता है। हालांकि इन बाजारों की विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। इनकी पारदर्शिता बढ़ाने और मानक मजबूत करने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कार्बन हटाने की परियोजनाओं का वास्तविक जलवायु लाभ हो।

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जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव

रिपोर्ट के अनुसार 2023 और 2024 में वैश्विक तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। समुद्र की गर्मी बढ़ रही है और लू की तीव्रता अधिक हो रही है। यह मानव स्वास्थ्य, कृषि और जीवनयापन पर गंभीर असर डाल रहा है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से भूमि और पानी के संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, बढ़ते तापमान से भूजल के स्तर में गिरावट आ रही है, जो कृषि और शहरी जीवन दोनों के लिए खतरा है।

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साथ ही, बढ़ती गर्मी के कारण मच्छरों के प्रसार का दायरा भी बढ़ रहा है। इसका प्रभाव डेंगू जैसी बीमारियों पर दिखाई दे रहा है। हाल ही में डेंगू के सबसे बड़े वैश्विक प्रकोप ने स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी दबाव डाला।

गर्मी और श्रम उत्पादन पर प्रभाव

बहुत ज्यादा तापमान श्रमिकों की उत्पादकता पर भी प्रभाव डाल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, केवल एक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग आठ करोड़ लोग अत्यधिक गर्मी के चपेट में आ सकते हैं, जिससे उनके काम के घंटे 50 फीसदी तक कम हो सकते हैं। इसका व्यापक आर्थिक प्रभाव होगा।

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जलवायु और जैव विविधता का खतरा

जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का नुकसान एक-दूसरे को बढ़ावा देती हैं। यह संकट को और गंभीर बनाता है। इसलिए, केवल किसी एक समाधान पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं है।

नीति और समाधान

रिपोर्ट के अनुसार, अब समय आ गया है कि सरकारें और नीति निर्माता निर्णय लें। इसके लिए तीन मुख्य उपाय आवश्यक हैं:

  • उत्सर्जन में तेजी से कटौती: हर देश को अपने कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे।

  • प्रकृति की सुरक्षा और पुनर्स्थापना: जंगलों, मिट्टी और महासागरों की क्षमता को बचाना और बढ़ाना अनिवार्य है।

  • संतुलित नीतियां और तकनीकी समाधान: केवल प्राकृतिक तरीकों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, तकनीकी कार्बन हटाने और प्रभावी नीति मिश्रण भी जरूरी है।

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रिपोर्ट के 10 अहम निष्कर्ष

  • रिकॉर्ड स्तर की गर्मी (2023-24) – वैश्विक तापमान तेजी से बढ़ रहा है।

  • महासागर की तेज गर्मी: समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित

  • भूमि कार्बन सिंक पर दबाव: जंगल और मिट्टी कम कार्बन अवशोषित कर रही हैं।

  • जलवायु–जैव विविधता प्रतिक्रिया: संकट बढ़ाने वाला लूप।

  • भूजल का कम होना: कृषि और शहरी जीवन पर प्रभाव।

  • जलवायु–डेंगू संबंध: बढ़ती गर्मी से डेंगू फैल रहा है।

  • श्रम उत्पादकता पर असर: गर्मी से कार्य घंटे घट रहे हैं।

  • कार्बन हटाने का विस्तार: सतर्क और जिम्मेदार तरीके से लागू करना।

  • कार्बन मार्केट की विश्वसनीयता: मानक और पारदर्शिता आवश्यक।

  • प्रभावी नीति मिश्रण: एकल उपाय से बेहतर परिणाम।

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रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि प्रकृति और बाजार अकेले जलवायु संकट को हल नहीं कर सकते। हर देश को तत्काल और निर्णायक कदम उठाने होंगे। कॉप30 जैसे सम्मेलन अब केवल वादों के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हमारे दरवाजे पर हैं और समय अब इंतजार का नहीं।

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