समुद्री गर्मी से बड़ा असर: समुद्र में 10 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड कम अवशोषित हुई

वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले सालों में महासागर की कार्बन अवशोषण क्षमता और घट सकती है। यदि ऐसा हुआ तो वातावरण में अधिक सीओ2 बनी रहेगी और पृथ्वी का तापमान नियंत्रण से बाहर जा सकता है।
बढ़ती हीट वेव महासागरों की कार्बन अवशोषण क्षमता को और कमजोर कर सकती है।
बढ़ती हीट वेव महासागरों की कार्बन अवशोषण क्षमता को और कमजोर कर सकती है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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Summary
  • साल 2023 में महासागर की सतह का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा, खासकर उत्तर अटलांटिक और उष्णकटिबंधीय प्रशांत में।

  • महासागर ने अपेक्षा से 10 फीसदी कम सीओ2 अवशोषित किया, यानी लगभग एक अरब टन कम - जो ईयू के उत्सर्जन का आधा है।

  • गर्मी के कारण सीओ2 की घुलनशीलता घटी, जिससे सतही परतों से असामान्य गैस उत्सर्जन हुआ।

  • जैविक पंप, जल परतों का स्थिरीकरण और सीओ2 का निकलना - इन तीन प्रक्रियाओं ने महासागर की क्षमता को ढहने से बचाया।

  • भविष्य अनिश्चित: बढ़ती हीट वेव महासागरों की कार्बन अवशोषण क्षमता को और कमजोर कर सकती है।

महासागर केवल जल का भंडार नहीं हैं, बल्कि वे हमारी जलवायु को संतुलित रखने में भी सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक महासागर मानवजनित गतिविधियों से वातावरण में छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का लगभग एक चौथाई हिस्सा अपने भीतर समा चुके हैं।

इसके कारण ही वातावरण में सीओ2 का स्तर और अधिक नहीं बढ़ पाया और दुनिया के तापमान को नियंत्रित रखने में मदद मिली। साथ ही, महासागर वातावरण से आने वाली लगभग 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी भी अपने भीतर सोख लेते हैं।

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लेकिन साल 2023 में एक अभूतपूर्व समुद्री हीट वेव या लू ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी। उस साल महासागरों की सतह का तापमान कई क्षेत्रों में रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। खासकर उत्तर अटलांटिक महासागर और उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से अधिक गर्मी दर्ज की गई। इस अत्यधिक गर्मी का असर महासागर के कार्बन अवशोषण क्षमता पर साफ दिखाई दिया।

महासागर ने 10 फीसदी कम सीओ2 अवशोषित किया

स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने समुद्री सीओ2 मापों का गहन अध्ययन किया। उनका निष्कर्ष यह रहा कि 2023 में महासागर ने अपेक्षित मात्रा से लगभग एक अरब टन कम सीओ2 को अवशोषित किया।

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यह गिरावट करीब 10 फीसदी के बराबर है। तुलना करें तो यह मात्रा यूरोपीय संघ (ईयू) के कुल सालाना उत्सर्जन का लगभग आधा है और स्विट्जरलैंड के उत्सर्जन से बीस गुना अधिक है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह अच्छी खबर नहीं है, हालांकि गिरावट उतनी बड़ी भी नहीं जितनी आशंका थी। यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

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गर्म पानी में सीओ2 क्यों कम घुलता है?

इस कमी का मुख्य कारण समुद्र की सतह का असामान्य रूप से गर्म होना है। साधारण भाषा में समझें तो जैसे कार्बोनेटेड पानी (सोडा) को धूप में रखने पर उसमें घुली गैस बाहर निकल जाती है, वैसे ही जब समुद्री जल गर्म होता है तो उसमें घुली कार्बन डाइऑक्साइड भी वातावरण में वापस निकल जाती है।

उत्तर अटलांटिक जैसे क्षेत्रों में समुद्री सतह का तापमान इतना बढ़ गया कि वहां से सामान्य से अधिक सीओ2 बाहर निकलने लगी। इससे महासागर का “कार्बन सिंक” यानी सीओ2 को खींचकर रखने की क्षमता कमजोर हो गई।

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फिर भी पूरी तरह संकट क्यों नहीं आया?

यह सवाल अहम है कि जब गर्मी इतनी अधिक थी, तो महासागर ने अपनी क्षमता पूरी तरह क्यों नहीं खो दी? वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ भौतिक और जैविक प्रक्रियाएं महासागर के भीतर संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं।

सीओ2 का स्वयं निकलना - जब सतह गर्म हुई तो कुछ मात्रा में सीओ2 बाहर निकल गई, जिससे सतही पानी में उसकी मात्रा कम हो गई। जल परतों का स्थिरीकरण - गर्म पानी सतह पर ही ठहरा रहा और गहराई से सीओ2 समृद्ध ठंडा पानी ऊपर नहीं आ सका।

जैविक पंप - सतही परतों में मौजूद सूक्ष्मजीव (फाइटोप्लांकटन) प्रकाश संश्लेषण के दौरान सीओ2 ग्रहण करते हैं। उनके मरने के बाद यह कार्बन समुद्र की गहराई में चला जाता है। इन तीनों प्रक्रियाओं ने मिलकर महासागर के कार्बन सिंक को पूरी तरह ढहने से बचाया।

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एल नीनो का प्रभाव

साल 2023 में एक मजबूत एल नीनो भी सक्रिय था। सामान्यतः प्रशांत महासागर में एल नीनो की स्थिति बनने पर ठंडा और सीओ2 समृद्ध पानी सतह पर नहीं आ पाता। इस कारण प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से से सीओ2 का उत्सर्जन घट जाता है। यानी एल नीनो महासागर की कार्बन अवशोषण क्षमता को बढ़ावा देता है।

लेकिन 2023 में उत्तर अटलांटिक और अन्य गैर-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तापमान इतना अधिक बढ़ गया कि इस फायदा पहुंचाने वाले प्रभाव को लगभग नकार दिया। जिसके कारण महासागर ने कुल मिलाकर कम सीओ2 को अवशोषित किया।

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भविष्य के लिए चेतावनी

यह अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वास्तविक मापों और अवलोकनों पर आधारित है। इससे पता चलता है कि भविष्य में समुद्री हीट वेव और बढ़ सकती हैं और लंबे समय तक बनी रह सकती हैं। यदि ऐसा हुआ तो यह निश्चित नहीं है कि महासागर के भीतर मौजूद ये संतुलनकारी प्रक्रियाएं कितने समय तक प्रभावी रह पाएंगी।

वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले सालों में महासागर की कार्बन अवशोषण क्षमता और घट सकती है। यदि ऐसा हुआ तो वातावरण में अधिक सीओ2 बनी रहेगी और पृथ्वी का तापमान नियंत्रण से बाहर जा सकता है।

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महासागर पृथ्वी के “सबसे बड़े कार्बन सिंक” हैं। वे हमारी धरती को संतुलित रखने में अभूतपूर्व योगदान देते हैं। लेकिन 2023 की समुद्री हीट वेव ने यह स्पष्ट कर दिया कि बढ़ती गर्मी से यह संतुलन डगमगाने लगा है। अभी तो महासागर बहुत बड़ी मात्रा में सीओ2 को अपने भीतर सोख रहे हैं, लेकिन भविष्य में यदि गर्मी इसी तरह बढ़ती रही तो यह क्षमता कमजोर हो सकती है।

यह अध्ययन हमें चेतावनी देता है कि केवल महासागरों पर निर्भर रहकर हम जलवायु परिवर्तन की समस्या का हल नहीं निकाल सकते। जरूरी है कि दुनिया के स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जाए और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। तभी हम पृथ्वी की जलवायु को सुरक्षित रख सकेंगे।

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