उत्सर्जन पर लगाम न लगी तो 2100 तक दुनिया भर में समुद्र स्तर में 1.9 मीटर तक की वृद्धि के आसार

नई प्रक्षेपण विधि से समुद्र-स्तर में वृद्धि होने से तटीय इलाकों में बाढ़ के खतरे का आकलन, बुनियादी ढांचे की कमजोरी का विश्लेषण व आर्थिक तौर पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है
शोध सबसे चरम परिणामों का अनुमान लगाकर तटीय समुदायों, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र पर समुद्र-स्तर की वृद्धि के गंभीर प्रभावों को सामने लाता है।
शोध सबसे चरम परिणामों का अनुमान लगाकर तटीय समुदायों, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र पर समुद्र-स्तर की वृद्धि के गंभीर प्रभावों को सामने लाता है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक शोध के मुताबिक यदि वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन की दर बढ़ती रही और उच्च उत्सर्जन परिदृश्य तक पहुंच गई, तो साल 2100 तक समुद्र का स्तर 0.5 से 1.9 मीटर के बीच बढ़ने की आशंका जताई गई है। इस अनुमान की सीमा संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम वैश्विक अनुमान 0.6 से 1.0 मीटर से 90 सेंटीमीटर अधिक है।

इस बात का अनुमान सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (एनटीयू) और नीदरलैंड की डेल्फ़्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (टीयू डेल्फ़्ट) के शोधकर्ताओं ने शोध में लगाया है।

शोध में इस बात की 90 फीसदी आशंका जाहिर की गई है, जो संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा बताए गए समुद्र-स्तर में वृद्धि के अनुमानों से अधिक है, जिसने केवल 66 फीसदी तक के अनुमान जताया गया था।

वर्तमान समुद्र-स्तर का अनुमान जलवायु प्रक्रियाओं को मॉडल करने के लिए कई तरीकों पर निर्भर करते हैं। कुछ में ग्लेशियर पिघलने जैसी सही से समझी जाने वाली घटनाएं शामिल हैं, जबकि अन्य में अचानक बर्फ की शेल्फ ढहने जैसी अधिक अनिश्चित घटनाएं शामिल हैं।

नतीजतन, ये मॉडल अलग-अलग अनुमान देते हैं, जिससे समुद्र-स्तर में अत्यधिक वृद्धि का विश्वसनीय अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है। विभिन्न तरीकों से अनुमानों में इस अस्पष्टता ने आईपीसीसी को समुद्र-स्तर के अनुमानों के लिए बहुत संभावित सीमाएं प्रदान करने से रोक दिया है, जो खतरे के प्रबंधन में एक अहम मानक है।

अर्थ फ्यूचर नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि इस चुनौती से पार पाने और वर्तमान समुद्र-स्तर में वृद्धि अनुमानों में अनिश्चितताओं से निपटने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक नई, बेहतर प्रक्षेपण विधि विकसित की जिसे "फ्यूजन" या जोड़ने के नजरिए के रूप में जाना जाता है। यह दृष्टिकोण मौजूदा मॉडलों की ताकत को विशेषज्ञों की राय के साथ जोड़ता है, जो भविष्य के समुद्र-स्तर में वृद्धि की एक स्पष्ट, अधिक विश्वसनीय तस्वीर पेश करता है।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि नया नजरिया समुद्र-स्तर के विज्ञान में एक अहम मुद्दे से निपटता है, समुद्र-स्तर वृद्धि का अनुमान लगाने के विभिन्न तरीके अक्सर व्यापक रूप से अलग-अलग परिणाम देते हैं। इन विभिन्न तरीकों को एक एकल फ्यूजन या संलयन प्रक्षेपण में जोड़ कर, इससे भविष्य के समुद्र-स्तर वृद्धि से जुड़ी अनिश्चितता का अनुमान लगा सकते हैं और समुद्र-स्तर वृद्धि की बहुत संभावित सीमा को माप सकते हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि उनकी नई विधि विश्वसनीय जानकारी के लिए एक बहुत बड़ी कमी को पूरा करती है, जो आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट का पूरक है।

शोधकर्ताओं ने आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में जारी किए गए अनुमानों के आंकड़ों का उपयोग किया, जो विभिन्न उत्सर्जन मार्गों के तहत संभावित भविष्य के परिदृश्यों का अनुकरण करता है। वहीं शोधकर्ताओं ने आईपीसीसी की रिपोर्ट में बताए गए अनुमानों के विभिन्न वर्गों को शामिल किया।

शोध के मुताबिक, बर्फ की चादर के व्यवहार में अचानक बदलाव जैसी सही से न समझी गई चरम प्रक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए, विशेषज्ञ आकलन द्वारा "मध्यम विश्वास" और "कम विश्वास" दोनों अनुमानों को शामिल किया। अनिश्चितताओं से निपटने के लिए कम-विश्वास वाले अनुमानों को शामिल करते हुए अधिक विश्वसनीय मध्यम-विश्वास वाले आंकड़ों को प्राथमिकता देते हुए एक भार प्रणाली लागू की गई।

इस फ्यूजन दृष्टिकोण पर आधारित अनुमानों से पता चलता है कि कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, वैश्विक औसत समुद्र का स्तर 2100 तक 0.3 और 1.0 मीटर के बीच बढ़ने का पूर्वानुमान है। आईपीसीसी की संभावित सीमा ने वैश्विक औसत समुद्र के स्तर में 0.3 से 0.6 मीटर की वृद्धि का अनुमान लगाया।

उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, एनटीयू फ्यूजन मॉडल अनुमान लगाता है कि वैश्विक औसत समुद्र स्तर 2100 तक 0.5 और 1.9 मीटर के बीच बढ़ जाएगा। आईपीसीसी की संभावित सीमा में 0.6 से 1.0 मीटर के बीच वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।

एनटीयू मॉडल द्वारा शामिल व्यापक सीमाओं से पता चलता है कि पिछले अनुमानों ने चरम परिणामों की संभावना को कम करके आंका हो सकता है, उच्च उत्सर्जन मार्ग के तहत आईपीसीसी की संभावित सीमा के ऊपरी छोर से स्तर 90 सेमी अधिक हो सकता है।

शोध में कहा गया है कि नए संभावित अनुमान इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि समुद्र के स्तर में वृद्धि के मामले में अनिश्चितताएं कितनी बड़ी हैं। 1.9 मीटर का उच्च-स्तरीय अनुमान निर्णयकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के लिए उसके अनुसार योजना बनाने की आवश्यकता को सामने लाता है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि सबसे अहम बात यह है कि ये परिणाम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु शमन के महत्व पर जोर देते हैं। सबसे चरम परिणामों की संभावना का अनुमान लगाकर, यह तटीय समुदायों, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र पर समुद्र-स्तर की वृद्धि के गंभीर प्रभावों को सामने लाता है, जो जलवायु संकट से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।

नई प्रक्षेपण विधि क्यों जरूरी है?

जलवायु परिवर्तन की तैयारी के लिए समुद्र के स्तर में वृद्धि का सटीक अनुमान जरूरी हैं। शोधकर्ताओं की टीम का मानना है कि उनकी नई विधि शहरी योजनाकारों और सरकारों के लिए अहम, कार्रवाई योग्य जानकारी प्रदान करती है, जिससे उन्हें कमजोर समुदायों की सुरक्षा के लिए योजना बनाने और उपायों को लागू करने में मदद मिलती है, खासकर समुद्र-स्तर में अत्यधिक वृद्धि के परिदृश्यों में।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि विभिन्न विश्वास स्तरों पर समुद्र-स्तर की जानकारी के सबसे सटीक उपलब्ध जानकारी को एक साथ जोड़कर भविष्य में समुद्र के स्तर में वृद्धि की पूरी अनिश्चितता सीमा को दिखाने का एक नया तरीका विकसित किया है।

शोध में कहा गया है कि भविष्य में समुद्र-स्तर में वृद्धि की पूर्ण अनिश्चितता सीमा का अनुमान लगाने के लिए नई विधि को अन्य जलवायु अनुमानों और उससे आगे भी लागू किया जा सकता है, जिसमें तटीय इलाकों में बाढ़ के खतरे का आकलन, बुनियादी ढांचे की कमजोरी का विश्लेषण और आर्थिक तौर पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान भी शामिल है।

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