
दुनिया भर में कार्बन चक्र की प्रक्रियाओं के कारण इस सहस्राब्दी में पिछले अनुमानों के मुकाबले, गर्मी में कहीं अधिक इजाफा हो सकता है। ऐसा पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया है।
अध्ययन के विश्लेषण से पता चलता है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम पर सीमित रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करना केवल बहुत कम उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत ही संभव है।
शोध में अगले 1,000 सालों की लंबी अवधि का अनुमान लगाया गया है, जबकि वर्तमान में स्थापित कार्बन चक्र, जिसमें मीथेन भी शामिल है, को भी ध्यान में रखा गया है।
अध्ययन में कहा गया है कि आमतौर पर 'सुरक्षित' माने जाने वाले उत्सर्जन परिदृश्यों में भी, जहां वैश्विक तापमान को आमतौर पर दो डिग्री सेल्सियस से नीचे माना जाता है, जलवायु और कार्बन चक्र प्रतिक्रियाएं, जैसे पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना, इस सीमा से काफी ऊपर तापमान वृद्धि कर सकता हैं।
अध्ययन में पाया गया कि कम से मध्यम उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत तापमान पहले की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ सकता है। अध्ययन मानवजनित जलवायु परिवर्तन के लंबे समय के प्रभावों को सामने लाता है।
इस बात को स्पष्ट करता है कि उत्सर्जन में छोटे-छोटे बदलाव भी पहले की अपेक्षा कहीं अधिक गर्मी पैदा कर सकते हैं, जिससे पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयास और मुश्किल हो सकते हैं। यह और भी तेजी से कार्बन कटौती और इसके निकलने के प्रयासों की तत्काल जरूरत को सामने लाता है।
शोध में कहा गया है कि लंबे सिमुलेशन चलाकर और मीथेन चक्र सहित सभी प्रमुख कार्बन चक्र प्रतिक्रियाओं को शामिल करके, शोधकर्ता इन प्रतिक्रियाओं से संभावित अतिरिक्त गर्मी का आकलन करने और भयंकर गर्मी का अनुमान लगाने में सफल रहे।
शोधकर्ताओं ने पीआईके के नए विकसित पृथ्वी प्रणाली मॉडल 'क्लैम्बर-एक्स' का उपयोग तीन निम्न-से-मध्यम उत्सर्जन प्रक्षेपवक्रों के तहत अगली सहस्राब्दी में भविष्य के जलवायु परिदृश्यों का अनुकरण करने के लिए किया, ऐसे मार्ग जो हाल के डीकार्बोनाइजेशन रुझानों के साथ जुड़ते हैं।
क्लैम्बर-एक्स वायुमंडलीय और महासागरीय स्थितियों सहित प्रमुख भौतिक, जैविक और भू-रासायनिक प्रक्रियाओं को एक साथ जोड़ता है। यह मीथेन सहित एक इंटरैक्टिव कार्बन चक्र को भी शामिल करता है, जो यह अनुकरण करता है कि पृथ्वी प्रणाली विभिन्न जलवायु शक्तियों, जैसे मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर कैसे प्रतिक्रिया करती है।
जलवायु संवेदनशीलता भविष्य के जलवायु परिणामों को आकार दे रही है
एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन के सिमुलेशन दो डिग्री सेल्सियस और पांच डिग्री सेल्सियस के बीच संतुलन जलवायु संवेदनशीलता (ईसीएस) की एक सीमा पर विचार करते हैं, जिसे जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल द्वारा "संभावित" के रूप में परिभाषित किया गया है। ईसीएस जलवायु विज्ञान में एक अहम उपाय है, जो सीओ2 की मात्रा के दोगुने होने से जुड़े वैश्विक तापमान वृद्धि का अनुमान लगाता है।
अध्ययन में अध्ययनकर्ता के हवाले से कहा गया है कि परिणाम बताते हैं कि पेरिस समझौते का लक्ष्य केवल बहुत कम उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत हासिल किया जा सकता है और यदि ईसीएस तीन डिग्री सेल्सियस के वर्तमान सर्वोत्तम अनुमानों से कम है। यदि ईसीएस तीन डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो पेरिस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कार्बन कटौती को पहले से कहीं अधिक तेजी से बढ़ाना होगा।
यह शोधपत्र भविष्य के जलवायु परिणामों को आकार देने में ईसीएस की अहम भूमिका पर प्रकाश डालता है, साथ ही ईसीएस का सटीक अनुमान लगाने में विफल होने के खतरों को भी सामने लाता है। यह इस मीट्रिक को अधिक सटीक रूप से निर्धारित करने और इसे बेहतर तरीके से नियंत्रित करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर देता है।
शोध यह स्पष्ट करता है कि आज की गतिविधियां आने वाली शताब्दियों के लिए इस धरती पर जीवन के भविष्य को तय करेंगी।
शोध में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने का दायरा तेजी से सिकुड़ रहा है। शोध में पहले से ही संकेत देखे जा रहे हैं कि पृथ्वी प्रणाली लचीलापन खो रही है, जो जलवायु संवेदनशीलता को बढ़ाने, तापमान को तेज करने और पूर्वानुमानित रुझानों में गड़बड़ी पैदा करने वाली चीजों को बढ़ा सकती है।
एक रहने योग्य भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को तत्काल बढ़ाना चाहिए। पेरिस समझौते का लक्ष्य केवल एक राजनीतिक लक्ष्य नहीं है, यह एक मौलिक भौतिक सीमा है।