अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।
अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।फोटो: पीआरओ डिफेंस कोच्चि @डिफेंसपीआरओकोच्चि / एक्स

ग्लोबल वार्मिंग से बारिश के पैटर्न पर पड़ रहा है भारी असर, नए शोध में किया गया खुलासा

शोध के अनुसार, पिछली सदी में मानवजनित कारणों से बढ़ती गर्मी ने धरती के 75 फीसदी हिस्से पर बारिश में भारी बदलाव किया है।
Published on

पिछली सदी में मानवजनित कारणों से बढ़ती गर्मी ने पृथ्वी के 75 फीसदी हिस्से पर बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव कर दिया है, यह बात एक नए शोध में कही गई है। शोध में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में बारिश के पैटर्न को और अधिक अस्थिर व असामन्य बना रहा है

बदलाव का असर भारत के केरल राज्य के वायनाड जिले में देखा जा सकता है, जहां भारी बारिश के चलते भूस्खलन की घटनाओं में 143 से अधिक लोगों की जान चली गई है और लगभग 186 से अधिक लोगों के घायल होने की जानकारी है। जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि अरब सागर के गर्म होने से बादलों के बनने में इजाफा हो रहा है, जिससे केरल में कम समय में भयंकर बारिश हो रही है और इसके कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है

जलवायु मॉडल ने इस बात का भी पूर्वानुमान लगाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह बदलाव और भी भयावह हो जाएगा। शोध के नए निष्कर्षों से पता चलता है कि पिछले 100 वर्षों में बारिश के पैटर्न पहले से बहुत ज्यादा बदल गया है।

शोध के परिणाम बताते है कि सूखा पड़ने का समय पहले की तुलना में बढ़ गया है और बरसात के मौसम के दौरान कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश हो रही है। चिंता इस बात की है अगर दुनिया भर में तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो समस्या और बढ़ जाएगी। साथ ही सूखे और बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाएगा।

क्या कहता है अध्ययन?

शोध से पता चलता है कि 1900 के दशक से बारिश में लगातार बदलाव में बढ़ोतरी हुई है। दुनिया भर में हर दशक में दिन-प्रतिदिन बारिश के पैटर्न में बदलाव में 1.2 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस तरह का चलन सदी के उत्तरार्ध में, यानी 1950 के बाद और अधिक देखी जा रही है।

बदलाव में वृद्धि का मतलब है कि समय के साथ बारिश का अधिक असमान रूप से होना है, कुछ हिस्सों में भारी बारिश और कहीं बिल्कुल न होना है। यह भी हो सकता है कि किसी जगह पर एक साल में होने वाली बारिश अब केवल कुछ ही दिनों तक होती है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि लंबे समय से चल रहे सूखे के बीच अचानक मूसलाधार बारिश होना या सूखे और बाढ़ के दौर का जल्दी-जल्दी आना है।

शोधकर्ताओं ने विश्लेषण किए गए आंकड़ों की जांच की और पाया कि 1900 के दशक से, अध्ययन किए गए जमीन वाले इलाकों के 75 फीसदी से अधिक हिस्सों में बारिश के बदलाव में वृद्धि हुई है।

दुनिया भर में सभी चार मौसमों में रोजमर्रा की बारिश में बदलाव में वृद्धि हुई, हालांकि मौसमी अंतर छोटे, क्षेत्रीय पैमाने पर सामने आए। शोधकर्ताओं का शोध के हवाले से कहना है कि यह वृद्धि काफी हद तक मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का परिणाम है, जिसने एक गर्म और अधिक नमी वाले वातावरण, अधिक तीव्र बारिश की घटनाओं और उनके बीच अधिक उतार-चढ़ाव पैदा किया है।

ग्लोबल वार्मिंग बारिश को कैसे प्रभावित करती है

साइंस जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों को समझने के लिए, यह समझना जरूरी है कि वे कौन से कारण है जो यह निर्धारित करते हैं कि एक तूफान कितनी भारी बारिश पैदा करता है और इन पर ग्लोबल वार्मिंग का असर किस तरह पड़ रहा है।

पहला कारण यह है कि हवा में कितना जल वाष्प मौजूद है। गर्म हवा में ज्यादा नमी हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग की हर डिग्री सतह के एक निश्चित हिस्से पर जल वाष्प की औसत मात्रा में सात फीसदी की वृद्धि करती है।

औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी 1.5 डिग्री सेल्सियस गर्म हो गई है, जो निचले वायुमंडल में जल वाष्प में 10 फीसदी की वृद्धि के बराबर है। इसलिए यह तूफानों को और अधिक बारिश वाला बना रहा है।

दूसरा यह है कि तूफानी हवाएं कितनी तेजी तक चल सकती हैं और तीसरा यह है कि छोटे बादल कणों से बारिश की बड़ी बूंदें कितनी आसानी से बनती हैं। शोधकर्ता ने कहा यह समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि ये कारण जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होते हैं। वर्तमान साक्ष्य इस ओर इशारा करते है कि साथ मिलकर वे कम समय में और बहुत चरम तूफानों के लिए बारिश में वृद्धि को और बढ़ाते हैं, जबकि कमजोर तूफानों के लिए वृद्धि को कम करते हैं।

चेतावनी को न किया जाए नजरअंदाज

शोध में कहा गया है कि नीति निर्माता अक्सर इस बात पर अधिक गौर कर सकते हैं कि दुनिया का कौन सा हिस्सा सबसे अधिक गीला या सूखा हो रहा है।

इस तरह की अस्थिरता भयानक सूखे का रूप ले सकती है या अत्यधिक बारिश और बाढ़ में बहुत अधिक वृद्धि हो सकती है।

शोध में शोधकर्ता ने कहा, यह बदलाव सरकारों और समुदायों के लिए कई तरह से चुनौती पेश करेगी, दुर्लभ जल संसाधनों के प्रबंधन से लेकर प्राकृतिक आपदाओं से निपटने तक। हमें भविष्य की इन चुनौतियों के लिए अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

और जैसे-जैसे यह गंभीर वैश्विक समस्या बदतर होती जा रही है, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ती जा रही है।

Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in