
एक नए अध्ययन ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रति संवेदनशील बर्फबारी से बारिश के अनुपात (स्नोफॉल-टू-प्रेसिपीटशन (एस/पी) रेशियो) की अहम सीमाओं का पता लगाया है। साथ ही भविष्य में एशिया के ऊंचे पर्वतों (एचएमए) में किस तरह का बदलाव हो सकता है इसका भी अनुमान लगाया है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने, ईआरए5-लैंड नामक जलवायु के ऐतिहासिक आंकड़ों तथा मॉडल अंतर-तुलना परियोजना चरण 6 (सीएमआईपी6) मॉडल अनुमानों का उपयोग किया।
शोधकर्ताओं ने बारिश व बर्फबारी के चरणों में बदलाव पर बढ़ते तापमान के प्रभावों का विश्लेषण किया। शोध में कहा गया है कि इससे उन्हें बर्फबारी से बारिश के अनुपात की सीमाओं की पहचान करने में मदद मिली।
शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने दो अहम बर्फबारी से बारिश के अनुपात की सीमाओं की पहचान की जो 0.13 से 0.87 फीसदी और उच्च पर्वतीय एशिया (एचएमए) को चार अलग-अलग क्षेत्रों में वर्गीकृत किया। अत्यधिक बर्फबारी वाले इलाकों में बर्फबारी से बारिश में 0.87 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। कम बर्फबारी वाले इलाकों में बर्फबारी से बारिश 0.5 से 0.87 फीसदी तक की कमी देखी गई।
शोधकर्ताओं ने पाया कि बर्फ से बारिश वाले इलाके (0.13 से 0.87 फीसदी ) ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रति बढ़ी संवेदनशीलता दिखाई, जिसमें बर्फबारी की दर बर्फ वाले इलाकों में बर्फबारी से बारिश की 0.87 फीसदी की बढ़ोतरी या बारिश वाले इलाकों में (बर्फबारी से बारिश 0.13 फीसदी की कमी) की तुलना में तीन से पांच गुना तेजी से घट रही थी।
शोध में कहा गया है कि इसके अलावा शोधकर्ताओं ने साझा सामाजिक-आर्थिक मार्ग (एसएसपी 5-8.5) परिदृश्य के तहत भविष्य में बारिश के पैटर्न का अनुमान लगाया, जिससे पता चला कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण सभी चार क्षेत्रों के अत्यधिक ऊंचाई पर चले जाने की संभावना है।
साल 2100 तक अधिक बर्फबारी होने वाले इलाकों में सर्दियों में 25.8 फीसदी और वसंत में 54.1 फीसदी की कमी आने की आशंका जताई गई है। जबकि जिन इलाकों में बारिश अधिक होती है इनके बढ़ने का अनुमान है, जो गर्मियों और शरद ऋतु के दौरान उच्च पर्वतीय एशिया (एचएमए) के 80 फीसदी से अधिक हिस्से को कवर करेगा।
ये बदलाव मुख्य रूप से बारिश के पैटर्न में बदलाव के बजाय बढ़ते तापमान के कारण होते हैं, जो क्षेत्र में जल भंडारण और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता पर भयंकर तरीके से प्रभाव डालते हैं।
एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हमने बर्फ से बारिश की सीमा की पहचान करने के लिए एक अहम उपकरण प्रदान किया है। यह एशिया की पर्वतीय प्रणालियों में जल संसाधन की उपलब्धता की भविष्यवाणी करने के लिए आवश्यक है, जहां बर्फ पिघलने से नदियां बनती हैं जो अरबों लोगों को पानी उपलब्ध कराती हैं।
यह अध्ययन जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के लिए आधार तैयार करता है, जो क्षेत्र में जल संसाधनों पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने और प्रबंधित करने के लिए महत्वपूर्ण सीमाओं को पार करने वाले क्षेत्रों की नजदीकी से निगरानी का भी आग्रह करता है।