ग्लेशियर किस तरह दे रहे हैं ग्लोबल वार्मिंग का जवाब, क्या हैं ठंडी हवाओं का राज?

शोध के मुताबिक, बर्फ की सतह से बहने वाली ठंडी हवाएं ग्लेशियरों को ठंडा करने और आसपास के पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने में मदद कर सकती हैं।
फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स, रदेवनी
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एक नए शोध में कहा गया है कि हिमालय के ग्लेशियर खुद को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन यह संघर्ष कब तक रहेगा? दुनिया भर में बढ़ते तापमान ने हिमालय के ग्लेशियरों को बर्फ की सतह के संपर्क में आने वाली हवा को तेजी से ठंडा करने के लिए मजबूर किया है। आने वाली ठंडी हवाएं ग्लेशियरों को ठंडा करने और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में मदद कर सकती हैं।

यह शोध इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया (आईएसटीए) के प्रोफेसर फ्रांसेस्का पेलिसियोटी की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने किया है। इस शोध को नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित किया गया है

क्या ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियर गर्मी के दिनों में आइसक्रीम की तरह पिघल रहे हैं? पहले, वैज्ञानिकों ने ऊंचाई पर बढ़ते तापमान के  प्रभाव का दस्तावेजीकरण किया। उन्होंने दिखाया कि पहाड़ों की चोटियों ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव पहले से कही अधिक महसूस किया और ये तेजी से गर्म हो गए। फिर भी, नेपाल में माउंट एवरेस्ट पर एक अधिक ऊंचाई वाले जलवायु स्टेशन में एक अप्रत्याशित घटना देखी गई, जहां सतही हवा का तापमान औसतन बढ़ने के बजाय स्थिर रहा।  

पिरामिड इंटरनेशनल लेबोरेटरी या ऑब्जर्वेटरी क्लाइमेट स्टेशन, माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी ढलानों पर खुम्बू और लोबुचे ग्लेशियरों के 5,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जिसने लगभग तीन दशकों से लगातार प्रति घंटा मौसम संबंधी आंकड़े दर्ज किए हैं।

गर्म होती जलवायु ग्लेशियरों में शीतलन प्रतिक्रिया को बढ़ा रही है, यह ढलानों से नीचे बहने वाली ठंडी हवाओं जिन्हें कटाबेटिक हवाएं कहा जाता है, उन्हें जन्म दे रही हैं। लेकिन ग्लेशियर कब तक स्थानीय स्तर पर खुद को ठंडा करके ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को संतुलित कर सकते हैं? और कौन सी विशेषताएं ग्लेशियरों को ऐसा करने में मदद करते हैं?

देखी गई घटना को समझाने के लिए, टीम ने आंकड़ों की बारीकी से जांच की। शोधकर्ता कहते हैं, हमने पाया कि कुल तापमान का औसत एक साधारण कारण से स्थिर लग रहा था। जबकि न्यूनतम तापमान लगातार बढ़ रहा है, गर्मियों में सतह का अधिकतम तापमान लगातार गिर रहा था।

उन्होने कहा, ग्लेशियर सतह के साथ अपने तापमान के आदान-प्रदान को बढ़ाकर गर्म होती जलवायु पर प्रतिक्रिया कर रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर के ऊपर गर्म वातावरणीय हवा और ग्लेशियर की सतह के सीधे संपर्क में आने वाली हवा के बीच तापमान में अंतर बढ़ जाता है।

शोधकर्ता ने बताया कि, इससे ग्लेशियर की सतह पर तापमान में वृद्धि होती है और सतह के वायु द्रव्यमान में ठंडक बढ़ जाती है। जिसके कारण, ठंडी और शुष्क सतह की हवा सघन हो जाती है और ढलानों से नीचे घाटियों में बहती है, जिससे ग्लेशियरों के निचले हिस्से और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र ठंडे हो जाते हैं।

ग्लेशियरों को वापस मुकाबला करने के लिए क्या प्रेरित करता है?

पिरामिड में विशिष्ट रूप से उपलब्ध जमीनी अवलोकनों से आगे बढ़कर, टीम ने जलवायु मॉडल में नवीनतम वैज्ञानिक प्रगति को जोड़ा, वैश्विक जलवायु और मौसम पुनर्विश्लेषण जिसे ईआरए5-लैंड कहा जाता है। ईआरए5-लैंड पुनर्विश्लेषण भौतिकी के नियमों का उपयोग करके मॉडल आंकड़ों को दुनिया भर के अवलोकनों के साथ पूर्ण और सही डेटासेट में जोड़ता है। इन आंकड़ों की व्याख्या करने से टीम को यह प्रदर्शित करने में मदद मिली कि ग्लोबल वार्मिंग से प्रेरित काटाबेटिक हवाएं न केवल माउंट एवरेस्ट पर बल्कि पूरे हिमालयी इलाके में बन रही हैं।

शोधकर्ता ने कहा, यह घटना 30 वर्षों के लगातार बढ़ते वैश्विक तापमान का परिणाम है। अगला कदम यह पता लगाना है कि ग्लेशियर की कौन सी प्रमुख विशेषताएं ऐसी प्रतिक्रिया का पक्ष लेती हैं।

शोधकर्ता इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन से ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग पर इस तरह से प्रतिक्रिया कर सकते हैं और कितने समय तक यह जारी रहता है। जबकि अन्य ग्लेशियर भारी बदलावों का अनुभव कर रहे हैं, एशिया के ऊंचे पहाड़ों में थर्ड पोल में ग्लेशियर बहुत बड़े हैं, जिनमें विशाल मात्रा में बर्फ हैं, और इनका प्रतिक्रिया करने का समय लंबा है। सोधकर्ता कहते है कि इस तरह, हमारे पास अभी भी ग्लेशियर को बचाने का मौका है।

पामीर और काराकोरम ग्लेशियरों की ढलानें आम तौर पर हिमालय की तुलना में सपाट हैं। इस प्रकार, अनुमान लगाया जा सकता है कि ठंडी हवाएं आसपास के वातावरण में नीचे तक पहुंचने के बजाय ग्लेशियरों को स्वयं ठंडा करने का काम कर सकती हैं। 

ग्लेशियर टिपिंग पॉइन्ट?

शोधकर्ता ने कहा कि, काटाबेटिक हवाएं दुनिया भर में बढ़ते तापमान के लिए स्वस्थ ग्लेशियरों की प्रतिक्रिया है और यह घटना पर्माफ्रॉस्ट और आसपास की वनस्पति को संरक्षित करने में मदद कर सकती है। ग्लेशियर वास्तव में अपने पारिस्थितिकी तंत्र में जल सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। लेकिन स्वस्थ ग्लेशियर कब तक लड़ सकते हैं?

भारतीय उपमहाद्वीप के ग्रीष्मकालीन मॉनसून के दौरान बहुत ऊंचाई पर बर्फ जमा करते हैं और साथ ही, लगातार पिघलने से भारी मात्रा में बर्फ खो देते हैं। हालांकि, काटाबेटिक हवाएं अब इस संतुलन को बदल रही हैं, ग्लेशियरों से नीचे बहने वाली ठंडी हवाएं उस ऊंचाई को कम कर रही हैं जहां बारिश होती है।

इससे ग्लेशियरों के पिघलने के दौरान भारी मात्रा में बर्फ गायब हो जाती है। इस तरह, ग्लेशियरों से बहने वाला कथित ठंडा तापमान ग्लेशियर को लंबे समय तक स्थिर रहने बजाय यह ग्लोबल वार्मिंग के प्रति एक आपातकालीन प्रतिक्रिया है।

शोधकर्ता कहते हैं कि, इसका मतलब यह है कि क्या ग्लेशियर अपने संरक्षण के चरम बिंदु पर पहुंच रहे हैं? वे कुछ जगहों पर हैं, लेकिन हम नहीं जानते कि कहां और कैसे।

भले ही ग्लेशियर खुद को हमेशा के लिए संरक्षित नहीं कर सकते, फिर भी वे कुछ समय के लिए अपने आसपास के पर्यावरण को संरक्षित कर सकते हैं। इस प्रकार, हम प्रभावों को समझाने की दिशा में प्रयासों को एकजुट करने के लिए अधिक शोधों की जरूरत हैं। ये प्रयास मानवजनित जलवायु परिवर्तन की दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

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