इंसानी गतिविधियों से प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार में 24 फीसदी तक की आई गिरावट

प्राकृतिक कार्बन भंडारों को बचाना और बहाल करना ही जलवायु संकट से निपटने की सबसे अहम कुंजी है।
अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित प्रभाव ने प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार को 24 प्रतिशत तक घटा दिया है। यह कमी लगभग 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन के बराबर है।
अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित प्रभाव ने प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार को 24 प्रतिशत तक घटा दिया है। यह कमी लगभग 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन के बराबर है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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धरती पर जीवन को संतुलित बनाए रखने में पेड़-पौधों और मिट्टी का बहुत बड़ा योगदान है। यही प्राकृतिक साधन कार्बन को अपने अंदर जमा करके वातावरण को संतुलित रखते हैं। लेकिन लगातार बढ़ती इंसानी गतिविधियों ने इस प्राकृतिक व्यवस्था को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।

हाल ही में जर्मनी की लुडविग मैक्सिमिलियन यूनिवर्सिटी (एलएमयू) के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित प्रभाव ने प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार को 24 प्रतिशत तक घटा दिया है। यह कमी लगभग 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन के बराबर है। यह एक ऐसा आंकड़ा है, जो पिछले पचास सालों में दुनिया भर में कोयला, तेल और गैस से हुए कुल कार्बन उत्सर्जन के बराबर है।

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अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित प्रभाव ने प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार को 24 प्रतिशत तक घटा दिया है। यह कमी लगभग 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन के बराबर है।

शोधकर्ताओं ने इस आकलन के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया। उन्होंने उपग्रह के आंकड़ों, ऐतिहासिक भूमि उपयोग के रिकॉर्ड और मशीन लर्निंग को मिलाकर वैश्विक स्तर पर कार्बन भंडार का अनुमान तैयार किया। इससे स्पष्ट हुआ कि इंसानी गतिविधियों के कारण सबसे अधिक कार्बन का नुकसान खेती के विस्तार और चरागाहों की बढ़ोतरी से हुआ है।

शोध का नेतृत्व करने वाले शोधकर्ता बताते हैं कि अध्ययन दिखाता है कि मानवजनित प्रभाव ने वैश्विक कार्बन चक्र को कितनी गहराई से बदला है। 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन का घाटा पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी बोझ डालता है।

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अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित प्रभाव ने प्राकृतिक भूमि कार्बन भंडार को 24 प्रतिशत तक घटा दिया है। यह कमी लगभग 344 अरब मीट्रिक टन कार्बन के बराबर है।

🌱 कार्बन का महत्व क्यों है?

कार्बन पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का अहम हिस्सा है। पौधे प्रकाश संश्लेषण के जरिए वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड खींचते हैं और उसे अपनी जड़ों, तनों और पत्तियों में जमा करते हैं। यही प्रक्रिया मिट्टी में भी कार्बन जमा करती है। इसे ही प्राकृतिक कार्बन भंडार या कार्बन सिंक कहा जाता है

जब पेड़ों को काटा जाता है या खेती के लिए नए इलाके खोले जाते हैं, तो इस भंडार में जमा कार्बन वापस वायुमंडल में चला जाता है। जिसके कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, जो जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि को तेज करती है।

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🌱 जलवायु नीति के लिए संदेश

शोध पत्र में एलएमयू के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह अध्ययन जलवायु नीति बनाने में बेहद सहायक होगा। इसके जरिए हम यह आकलन कर पाएंगे कि कौन-सी कार्बन हटाने की नीतियां असरदार हैं और किस दिशा में सुधार की जरूरत है।

उनका कहना है कि इस शोध से यह भी समझ आता है कि अगर हम कार्बन भंडार को फिर से बहाल करें, तो जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में बड़ी प्रगति हो सकती है। उदाहरण के लिए, जंगलों को काटने से रोकना, क्षतिग्रस्त भूमि को दोबारा उपजाऊ बनाना और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण जैसे कदम कारगर साबित हो सकते हैं

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🌱 भविष्य की राह

अध्ययन के निष्कर्ष नीति-निर्माताओं और वैज्ञानिकों, दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह न सिर्फ कार्बन सिंक यानी कार्बन अवशोषक क्षेत्रों के संरक्षण और पुनर्स्थापन की प्राथमिकताएं तय करने में मदद करेगा, बल्कि मौजूदा जलवायु मॉडल को भी बेहतर बनाएगा।

अगर वैज्ञानिकों और सरकारों ने इस दिशा में ठोस कदम उठाए, तो जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कुछ हद तक धीमा किया जा सकता है। वहीं, अगर अनियंत्रित तरीके से जंगलों को काटा गया और भूमि का अंधाधुंध उपयोग जारी रहा, तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।

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इस शोध से यह साफ हो गया है कि इंसानी गतिविधियों ने पृथ्वी के प्राकृतिक संतुलन को गहराई से प्रभावित किया है। अब जरूरी है कि हम अपने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधें। प्राकृतिक कार्बन भंडारों को बचाना और बहाल करना ही जलवायु संकट से निपटने की सबसे अहम कुंजी है।

यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘वन अर्थ’ में प्रकाशित हुआ है और पूरी दुनिया के लिए चेतावनी और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।

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