समुद्री लू से महासागर की ‘कार्बन बेल्ट’ पर असर, जलवायु परिवर्तन के खतरे बढ़े

महासागर हर साल उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग एक-चौथाई हिस्सा सोखता है, लेकिन यदि गर्मी बढ़ती रही, तो यह क्षमता घट सकती है।
अलास्का की खाड़ी में दो प्रमुख लू का अध्ययन (2013 से 15 ‘द ब्लॉब’ और 2019 से 20), दोनों ने अलग-अलग तरीकों से समुद्री खाद्य श्रृंखला और कार्बन प्रवाह को प्रभावित किया।
अलास्का की खाड़ी में दो प्रमुख लू का अध्ययन (2013 से 15 ‘द ब्लॉब’ और 2019 से 20), दोनों ने अलग-अलग तरीकों से समुद्री खाद्य श्रृंखला और कार्बन प्रवाह को प्रभावित किया।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • समुद्री लू महासागर की ‘कार्बन बेल्ट’ को बाधित कर रही हैं, इससे सतह का कार्बन गहरे समुद्र में नहीं जा पाता और वातावरण में वापस लौटने का खतरा बढ़ता है।

  • अलास्का की खाड़ी में दो प्रमुख लू का अध्ययन (2013 से 15 ‘द ब्लॉब’ और 2019 से 20), दोनों ने अलग-अलग तरीकों से समुद्री खाद्य श्रृंखला और कार्बन प्रवाह को प्रभावित किया।

  • फाइटोप्लैंकटन और सूक्ष्मजीवों की संरचना में बदलाव, छोटे जीवों की बढ़त से भारी कार्बन कणों का निर्माण घटा, जिससे कार्बन सतह और ऊपरी जलस्तर में ही रुक गया।

  • महासागर की कार्बन संग्रहण क्षमता में गिरावट, यह प्रक्रिया धीमी पड़ने से जलवायु परिवर्तन की गति बढ़ सकती है और समुद्री जीवन पर असर पड़ सकता है।

  • वैज्ञानिकों ने लंबी अवधि तक निगरानी की सलाह, भविष्य के लू और उनके प्रभावों को समझने के लिए रोबोटिक फ्लोट्स, डीएनए सिक्वेंसिंग और अन्य तकनीकों से लगातार आंकड़े एकत्र करना आवश्यक है।

एक नए शोध में खुलासा हुआ है कि बढ़ती समुद्री गर्मी न केवल समुद्री जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि यह महासागर की कार्बन जमा करने वाली प्रणाली को भी कमजोर कर रही है। इससे धरती की जलवायु पर गंभीर असर पड़ सकता है।

यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसे अमेरिका के एमबीएआरआई, यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी, हाकाई इंस्टीट्यूट, जियामेन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया, यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न डेनमार्क और फिशरीज एंड ओशन्स कनाडा के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है।

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क्या है अध्ययन का उद्देश्य?

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने अलास्का की खाड़ी में पिछले एक दशक से अधिक समय तक समुद्री जीवों और कार्बन प्रवाह पर निगरानी रखी। इस दौरान क्षेत्र में दो बड़ी समुद्री लू आई “द ब्लॉब” (2013 से 2015) तथा 2019 से 2020 में समुद्री लू या हीटवेव। शोधकर्ताओं ने देखा कि लू ने समुद्री खाद्य श्रृंखला और कार्बन के गहरे समुद्र में जाने की प्रक्रिया दोनों पर असर डाला।

महासागर की जैविक कार्बन बेल्ट क्या है?

आमतौर पर महासागर में सूक्ष्मजीव जैसे फाइटोप्लैंकटन कार्बन डाइऑक्साइड को जैविक पदार्थ में बदलते हैं। ये छोटे जीव समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार हैं।

जब इन्हें बड़े जीव खाते हैं, तो इनके कचरे के रूप में कार्बन कण नीचे की ओर डूबते हैं। यही प्रक्रिया कार्बन को हजारों सालों तक महासागर में बंद रखती है।लेकिन लू के दौरान यह प्रक्रिया धीमी या बाधित हो गई।

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दोनों हीटवेव्स में क्या फर्क दिखा

साल 2013 से 2015 दूसरे साल में कार्बन उत्पादन तो बढ़ा, पर वह गहरे समुद्र तक नहीं पहुंच सका। लगभग 200 मीटर की गहराई पर छोटे कार्बन कण जमा हो गए।

वहीं 2019 से 2020 के दौरान पहले साल में सतह पर रिकॉर्ड स्तर तक कार्बन जमा हुआ, जो केवल फाइटोप्लैंकटन की वजह से नहीं था। यह समुद्री जीवों द्वारा कचरे और डेट्रिटस के रूप में कार्बन पुनर्चक्रण के कारण था। बाद में यह कार्बन 200 से 400 मीटर की गहराई तक तो गया, पर गहरे समुद्र तक नहीं पहुंच पाया।

वैज्ञानिकों के अनुसार, लू ने फाइटोप्लैंकटनों की संरचना बदल दी। छोटे ग्रेजर जीव बढ़ गए, जो भारी कार्बन कण नहीं बनाते। इससे कार्बन सतह या ऊपरी जलस्तरों में ही घूमता रहा, गहराई तक नहीं डूबा।

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क्या हैं खतरे?

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि जब महासागर की “कार्बन बेल्ट” धीमी पड़ती है, तो अधिक कार्बन वापस वातावरण में लौटने के आसार बढ़ जाते हैं। इससे न केवल जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ सकती है, बल्कि मछलियों, समुद्री पारिस्थितिकी और मत्स्य उद्योग पर भी असर पड़ सकता है।

निगरानी की जरूरत

वैज्ञानिकों ने जोर दिया कि सभी तरह की लू एक जैसी नहीं होतीं। इसलिए महासागर की लंबी अवधि की निगरानी और आंकड़ों का संग्रह जरूरी है।

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शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि समुद्री लू को समझने के लिए हमें घटना से पहले, दौरान और बाद के आंकड़ों की जरूरत है। रोबोटिक फ्लोट, रासायनिक विश्लेषण और डीएनए सिक्वेंसिंग जैसे तरीके मिलकर पूरी कहानी बता सकते हैं।

पिछले कुछ दशकों में समुद्री लू का आकार और तीव्रता दोनों बढ़े हैं। महासागर हर साल उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग एक-चौथाई हिस्सा सोखता है, लेकिन यदि गर्मी बढ़ती रही, तो यह क्षमता घट सकती है। इससे जलवायु परिवर्तन की रफ्तार के और तेज होने के आसार बढ़ जाते हैं।

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