
साल 2014 से 2016 तक दुनिया भर के महासागरों, खासकर उत्तरी अमेरिका के प्रशांत तट पर अब तक की सबसे लंबी अवधि की समुद्री हीटवेव महसूस की गई। जहां तापमान लंबे समय तक ऐतिहासिक औसत से दो से छह डिग्री ऊपर पहुंच गया।
विक्टोरिया विश्वविद्यालय (यूवीआईसी) की बॉम लैब के शोधकर्ताओं ने 331 अध्ययनों और सरकारी रिपोर्टों के निष्कर्षों की समीक्षा करते हुए हीटवेव या लू के पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण किया है।
अध्ययन में कहा गया है कि समुद्री हीटवेव के कारण उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के हजारों किलोमीटर इलाके में भारी पारिस्थितिक गड़बड़ी हुई। हीटवेव के पारिस्थितिक प्रभावों के व्यापक विश्लेषण ने इसके पूरे असर को बेहतर ढंग से जानने और समझने में मदद की है। भविष्य में बढ़ता समुद्री तापमान समुद्री जीवन को एक नया रूप दे सकता है।
ओशनोग्राफी एंड मरीन बायोलॉजी: एन एनुअल रिव्यू में प्रकाशित शोध के अनुसार, हीटवेव के दौरान 240 विभिन्न प्रजातियां अपनी विशेष भौगोलिक सीमा से बाहर पाई गई, जिनमें से कई पहले से कहीं अधिक उत्तर में पाई गई। कई प्रजातियां जैसे उत्तरी राइट व्हेल डॉल्फिन और समुद्री स्लग प्लासिडा क्रेमोनियाना, अपने विशेष तरह के आवास से 1,000 किलोमीटर उत्तर में पाई गई।
हीटवेव के कारण केल्प और समुद्री घास में भारी कमी आई और कई केल्प वन नष्ट हो गए। समुद्री तारों से लेकर समुद्री पक्षियों तक, कई प्रजातियां भारी संख्या में नष्ट हो गई और समुद्री स्तनपायी जीवों की कई प्रजातियों में असामान्य मृत्यु दर देखी गई। एक प्रमुख चट्टानी तटीय शिकारी, पिक्नोपोडिया हेलियनथोइड्स, विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया।
हीटवेव के कई प्रभाव थे, कुछ प्रजातियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव के कारण जटिल गतिशीलता उत्पन्न हुई जिसने प्लवक से लेकर व्हेल तक, सभी पर बुरा असर डाला। तापमान से जुड़ी बीमारियां, जैसे कि समुद्री तारा क्षय रोग, ने पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर दिया।
भोजन के रूप में उपयोग होने वाली मछलियों की घटती संख्या और पोषण गुणवत्ता ने शिकारियों के लिए समस्याएं पैदा की। प्लवक समुदाय पुनर्गठित हुए और समुद्र तट से दूर समुद्र विज्ञान संबंधी उत्पादकता में बदलाव आया।
इस भीषण गर्मी की आर्थिक कीमत भी चुकानी पड़ी। प्रजातियों के आपसी संबंधों में बदलाव, बीमारियों के प्रसार और आवास के नुकसान के कारण कई मत्स्य पालन केंद्रों के बंद होने से करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ।
शोध के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण जैसे-जैसे भीषण लू लगातार और तीव्र होती जा रही हैं, 2014-16 की पूर्वोत्तर प्रशांत महासागरीय समुद्री भीषण गर्मी इस बात का एक अहम उदाहरण है कि जलवायु परिवर्तन समुद्री जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है।
भविष्य के महासागर कैसे दिख सकते हैं। यह अध्ययन सक्रिय, पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित समुद्री संरक्षण रणनीतियों और जलवायु परिवर्तन को कम करने के उपायों की तत्काल आवश्यकता को सामने लाता है।