जलवायु परिवर्तन से भारत में बदल रहा जहरीले सांपों का ठिकाना, इंसानों से बढ़ेगा टकराव

आशंका है कि हिमालयी राज्यों के अलावा उत्तर भारत, उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में इंसानों से सांपो के टकराव का जोखिम सबसे ज्यादा बढ़ेगा
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण जहरीले सांपों के प्राकृतिक आवास में बदलाव हो रहा है, जिससे इंसानों और सांपों के बीच टकराव का खतरा बढ़ सकता है।

  • अध्ययन में पाया गया है कि 2050 से 2070 के बीच सांपों के हॉटस्पॉट्स में बदलाव होगा, जिससे पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत में गिरावट और मध्य भारत में विस्तार हो सकता है।

  • इसका असर न केवल जैव विविधता पर पड़ेगा, बल्कि इंसान और सांपों के बीच टकराव का खतरा भी बढ़ सकता है।

भारत में जलवायु में आते बदलावों का प्रभाव सिर्फ मौसम, गर्मी, बाढ़, सूखा या फसलों तक ही सीमित नहीं है। यह जमीन पर रहने वाले जीवों को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है। एक नए वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि मौसम में हो रहे तेज बदलाव के साथ भारत में आने वाले कुछ दशकों में जहरीले सांपों के प्राकृतिक आवास पूरी तरह बदल सकते हैं।

इसका असर न केवल जैव विविधता पर पड़ेगा, बल्कि इंसान और सांपों के बीच टकराव का खतरा भी बढ़ सकता है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत में पाए जाने वाले ज़हरीले साँपों की 30 प्रजातियों और उनके प्राकृतिक आवासों का गहराई से विश्लेषण किया है। यह पहली बार है जब पूरे देश में फैली इन प्रजातियों का इतना व्यापक और वैज्ञानिक मॉडल तैयार किया गया है।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने नागरिक विज्ञान प्लेटफॉर्म, शोध पत्रों और सोशल मीडिया जैसे विविध स्रोतों से जुटाए गए 4,966 रिकॉर्ड की छानबीन की। इसके बाद वैज्ञानिक मानकों के आधार पर इन सूचनाओं को फिल्टर कर 2,931 महत्वपूर्ण स्थानों को अंतिम विश्लेषण में शामिल किया है।

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इन आंकड़ों के आधार पर उन्नत मॉडल तैयार किए गए, जिनसे पता चला कि किस तरह 2050 से 2070 के बीच जलवायु परिवर्तन सांपों के प्रमुख ‘हॉटस्पॉट’ को बदल सकता है, मतलब कि वे क्षेत्र जहां इन प्रजातियों की मौजूदगी सबसे अधिक है, भविष्य में वह कैसे खिसक या पूरी तरह बदल सकती है।

इस अध्ययन में दो जलवायु परिदृश्यों आरसीपी4.5 और आरसीपी 8.5 को आधार बनाया गया है और यह देखा गया है कि भविष्य में कौन से सांप कहां मिलेंगे।

पश्चिमी घाट-पूर्वोत्तर में गिरावट, मध्य भारत में विस्तार

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं। नतीजे दर्शाते हैं कि 2070 तक भारत के करीब तीन फीसदी भूभाग पर सांपों के हॉटस्पॉट पूरी तरह बदल सकते हैं। पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत जैसे जैव विविधता से संपन्न क्षेत्रों में इन हॉटस्पॉट्स में बड़ी गिरावट आने का अंदेशा है।

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अध्ययन के मुताबिक पश्चिमी घाट में कई जहरीले सांपो की प्रजातियां अपने ठिकाने खो देंगी। कर्नाटक, महाराष्ट्र के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में सबसे तेज गिरावट का अंदेशा है। इसके विपरीत मध्य भारत और उत्तरी पश्चिमी घाट के कुछ इलाकों में भविष्य में खासतौर पर गंभीर जलवायु परिदृश्यों में नए हॉटस्पॉट उभर सकते हैं।

उत्तरी-पूर्वी भारत, खासकर उत्तरी बंगाल क्षेत्र में, सभी जलवायु परिदृश्यों में इनके उपयुक्त आवास लगातार घट सकते हैं। वहीं सबसे खराब जलवायु परिदृश्य में यह गिरावट और भी तेज हो जाती है, जो बताती है कि यहां सांपों की प्रजातीय विविधता में बड़े पैमाने पर कमी हो सकती है।

वहीं दूसरी तरफ मध्य भारत में सांपों के हॉटस्पॉट्स बढ़ सकते हैं। इसका मतलब है कि आज जिन राज्यों में सांप अपेक्षाकृत कम पाए जाते हैं, वहां भविष्य में उनकी मौजूदगी बढ़ सकती है। भविष्य के सबसे गंभीर जलवायु परिदृश्य में मध्य भारत के कई हिस्सों खासकर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, विदर्भ में सांपो की विविधता बढ़ सकती है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।

‘बिग फोर’ के कारण बढ़ेगा इंसानों पर खतरा

यह अध्ययन विशेष रूप से सांप की उन चार प्रजातियों पर केंद्रित है, जिन्हें “बिग फोर” कहा जाता है। यह प्रजातियां भारत में सांपों के ज्यादातर काटने की सामने आने वाली घटनाओं के लिए जिम्मेवार हैं। इनमें कॉमन क्रेट, भारतीय कोबरा, रसेल वाइपर, और सॉ-स्केल्ड वाइपर शामिल हैं।

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अध्ययन में पाया गया कि जहां-जहां इन प्रजातियों का रहने योग्य प्राकृतिक आवास बढ़ता है, वहां सांपों के काटने की घटनाएं भी बढ़ती हैं। मॉडलिंग में इन चारों प्रजातियों की उपस्थिति और राज्य-स्तरीय घटनाओं के बीच मजबूत संबंध पाया गया है। ये चारों प्रजातियां इंसानी बसावट वाले इलाकों में भी आसानी से रह लेती हैं, इसलिए इनकी मौजूदगी सीधे तौर पर आम लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी है।

उत्तर भारत, हिमालय और दक्षिण भारत के उच्च क्षेत्रों में बढ़ेगा रिस्क

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि आने वाले वर्षों में जिन क्षेत्रों में इंसान और सांपो के बीच टकराव का खतरा बढ़ने का अंदेशा सबसे ज्यादा है, उनमें उत्तर भारत के कई हिस्से, हिमालयी क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत, पश्चिमी घाट जैसे दक्षिण भारत के ऊंचाई वाले इलाके शामिल हैं।

गौरतलब है कि ये वही क्षेत्र हैं जहां जलवायु परिवर्तन तेजी से अपना असर दिखा रहा है और जहां तापमान व बारिश के पैटर्न में आता बदलाव नए रहने योग्य आवास पैदा कर रहा है।

देखा जाए तो यह भारत में किया अपनी तरह का पहला व्यापक अध्ययन है, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ बाढ़, सूखा या गर्मी जैसी घटनाओं तक सीमित नहीं है। यह हमारे पारिस्थितिक तंत्र के जटिल संतुलन को भी बदल रहा है, और इससे मानव जीवन पर सीधा खतरा बढ़ सकता है।

सांप ठन्डे रक्त के प्राणी हैं, वे अपने शरीर का तापमान वातावरण से नियंत्रित करते हैं। ऐसे में जब गर्मी बढ़ेगी तो कई प्रजातियां ठंडे इलाकों की ओर रुख करेंगी। इसके साथ ही बारिश और सूखे के पैटर्न में भी बदलाव होगा तो ये प्रजातियां नई जगहों में भी घुसपैठ कर सकती हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि इस बदलते परिवेश में सांपों की कुछ प्रजातियां गायब हो जाएंगी। कुछ नए इलाकों में पहुंचेंगी। कई जगहों पर इनकी आबादी बढ़ सकती है। इसका सीधा असर इंसानों पर पड़ेगा।

अध्ययन इस पृष्ठभूमि में और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि दुनिया में सांपों के काटने से सबसे ज्यादा मौतें भारत में हो रही हैं। ग्रामीण-आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में यह संकट सबसे गहरा है।

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अनुमान दर्शाते हैं कि हर वर्ष करीब 50,000 लोगों की जान सांपों के काटने से जा रही है। हालांकि अध्ययन के मुताबिक वास्तविक आंकड़े इससे भी कहीं अधिक हो सकते हैं, क्योंकि अक्सर कई बार इनसे जुड़े मामले दर्ज ही नहीं होते।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने चेताया है कि आने वाले दशकों में हमें दो मोर्चों पर तैयारी करनी होगी पहला जैव विविधता की रक्षा के लिए दूरदर्शी और जलवायु-संवेदनशील योजनाएं बनाना और दूसरा सांपों के काटने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए स्वास्थ्य तंत्र को बेहतर तैयार करना। शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में, ये दोनों रणनीतियां अब एक-दूसरे से अलग नहीं रखी जा सकतीं।

इसके लिए बदलती जलवायु के हिसाब से जंगलों और प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा जरुरी है। इसके साथ ही नए जोखिम वाले इलाकों में पहले से जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। ज्यादा और बेहतर एंटीवेनम की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण है। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं सशक्त करना भी बेहद महत्वपूर्ण है।

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