
राजस्थान और गुजरात में बढ़ी असामान्य बारिश – उत्तर-पूर्व भारत की तुलना में पश्चिमी शुष्क इलाकों में अब अधिक चरम बारिश दर्ज हो रही है।
678 चरम घटनाएं दर्ज (1991–2022) – इनमें 210 व्यापक और 468 स्थानीय घटनाएं शामिल हैं।
वायुमंडलीय कारण – कम दबाव प्रणाली, अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से नमी और हिमकण चरम बारिश को बढ़ा रहे हैं।
कृषि और समाज पर असर – अचानक भारी बारिश से फसलें नष्ट हो रही हैं और बुनियादी ढांचे पर खतरा बढ़ रहा है।
जलवायु अनुकूलन की जरूरत – शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि बिना रणनीति अपनाए भविष्य में गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
भारत का मानसून सदियों से खेती-बाड़ी और जीवन का आधार रहा है। हमारे यहां बारिश का महत्व केवल पानी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भोजन उत्पादन, नदी-तालाबों का जल स्तर और समाज की समृद्धि से जुड़ा है। लेकिन हाल के वर्षों में मानसून का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। अब मानसून केवल नियमित बारिश तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें चरम बारिश की घटनाओं की संख्या बढ़ गई है। इसका सीधा असर भारत के कई राज्यों पर पड़ रहा है, खासकर पश्चिम भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क इलाकों पर।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भुवनेश्वर के शोधकर्ताओं ने इस विषय पर विस्तृत अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में, जहां पहले सीमित और कम बारिश होती थी, अब अचानक से अत्यधिक बारिश की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। यह बदलाव इतना तेज है कि अब ये क्षेत्र मानसून की गतिविधियों का नया केंद्र बनते जा रहे हैं।
चरम वर्षा क्या है?
चरम बारिश का मतलब है किसी क्षेत्र में बहुत कम समय में असामान्य रूप से अधिक बारिश का होना। इस दौरान कुछ ही घंटों में उतनी बारिश हो सकती है, जितनी सामान्य दिनों में कई दिनों तक होती है। इससे अचानक बाढ़, जलभराव और मिट्टी कटाव जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
शोधकर्ताओं ने चरम बारिश की घटनाओं को तीन श्रेणियों में बांटा है:
व्यापक घटना: जब 10 से अधिक इलाके एक साथ प्रभावित हों।
स्थानीय घटना: जब दो से नौ क्षेत्र प्रभावित हों।
सामान्य घटना: दोनों का मिश्रण।
साल 1991 से 2022 तक के अध्ययन में पाया गया कि राजस्थान और गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में 210 व्यापक और 468 स्थानीय घटनाएं दर्ज की गई। इसका मतलब है कि इन इलाकों में बारिश का स्वरूप असामान्य रूप से बदल रहा है।
क्यों बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं?
प्योर एंड एप्लाइड जियोंफिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित शोध से यह स्पष्ट हुआ कि इन घटनाओं के पीछे कई वायुमंडलीय कारण हैं, जिनमें कम दबाव प्रणाली (लो प्रेशर सिस्टम): पश्चिम भारत में बनने वाली ये प्रणालियां अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी खींचकर लाती हैं। मध्य-स्तरीय गड़बड़ियां: जमीन से तीन से छह किमी ऊपर बनने वाली अस्थिर परिस्थितियां भारी बारिश को जन्म देती हैं।
संवहन: गरम हवा और नमी ऊपर उठकर बादलों का घना समूह बनाती है, जिससे तेज बारिश होती है।
संघनन की गर्मी: जब नमी बादलों में संघनित होती है तो वातावरण में अतिरिक्त ऊर्जा छोड़ती है, जिससे बारिश की तीव्रता और बढ़ जाती है।
हिमकणों की भूमिका: अध्ययन से यह भी सामने आया कि बादलों में मौजूद बर्फ और हिमकण बारिश को और अधिक तीव्र बनाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।इन कारणों से पश्चिम भारत के शुष्क इलाके अब बार-बार चरम बारिश की चपेट में आने लगे हैं।
पश्चिम भारत में खास असर
गुजरात और राजस्थान जैसे राज्य पहले अपेक्षाकृत सूखे और कम बारिश वाले माने जाते थे। लेकिन अब यहां कम दिनों में अधिक बारिश की प्रवृत्ति बढ़ रही है। विशेष रूप से व्यापक घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है, जिससे एक साथ कई जिलों में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है।
यह बदलाव स्थानीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए: खेतों में खड़ी फसलें अचानक आई बारिश से नष्ट हो सकती हैं। गांवों और शहरों में जलभराव और बाढ़ का खतरा बढ़ता है। पुल, सड़क और मकान जैसे बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है। साथ ही पशुधन और ग्रामीण आजीविका पर गहरा असर पड़ सकता है।
खेती पर असर
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की बड़ी भूमिका है। अचानक हुई भारी बारिश फसलों को नष्ट कर सकती है। किसान समय पर बुआई और कटाई नहीं कर पाते। साथ ही, मिट्टी कटाव और जलभराव से खेत की उर्वरता कम हो सकती है। पश्चिम भारत के किसान, जो पहले कम पानी पर निर्भर खेती करते थे, अब अचानक आई बाढ़ जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं।
बदलती जलवायु की चेतावनी
विशेषज्ञ मानते हैं कि चरम बारिश की घटनाओं की यह वृद्धि जलवायु परिवर्तन का संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से वायुमंडल में नमी की मात्रा और ऊर्जा बढ़ रही है। इसका सीधा असर मानसून के पैटर्न पर पड़ रहा है। पहले जहां लंबी अवधि तक हल्की बारिश होती थी, अब वहां कम समय में बहुत तेज बारिश हो रही है।
समाधान और अनुकूलन
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से चेतावनी दी है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। इसके लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं, शहरों और गांवों में नालों और जल निकासी व्यवस्था को मजबूत बनाना। ऐसी फसलें उगाना जो अचानक बारिश और सूखे दोनों का सामना कर सकें।
बाढ़ प्रबंधन: बांध, जलाशय और चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना। समुदाय की लोगों को आपदा से निपटने के लिए प्रशिक्षण देना और बचाव संसाधन उपलब्ध कराना। वर्षा जल प्रबंधन और शहरी नालों की नियमित सफाई पर ध्यान देना।
आईआईटी भुवनेश्वर का यह अध्ययन साफ संकेत देता है कि भारत के पश्चिमी शुष्क क्षेत्रों में मानसून का रूप बदल रहा है। अब बारिश की मात्रा नहीं, बल्कि उसकी तीव्रता और असमान वितरण चिंता का विषय है। यदि समय रहते जलवायु अनुकूलन की रणनीतियां नहीं अपनाई गई तो कृषि, शहर और ग्रामीण समाज सभी पर गहरा संकट आ सकता है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। हमें वैज्ञानिक शोधों को गंभीरता से लेकर जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के प्रयास करने होंगे। तभी आने वाले समय में हम मानसून की इस नई चुनौती का सामना कर सकेंगे।