छोटे बदलाव, बड़ा असर: कैसे उत्तर पश्चिमी हवाएं बदलते हैं एशियाई मानसून

अध्ययन में कहा गया है कि एशियाई मानसून केवल स्थानीय घटनाओं पर निर्भर नहीं करता, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों, खासकर अटलांटिक महासागर की गतिविधियों से भी प्रभावित होता है।
एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।
एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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जलवायु परिवर्तन और मानसून की बदलती प्रवृत्तियों को समझना आज के समय में बेहद जरूरी है। हाल ही में अध्ययन ने यह दिखाया है कि पूर्वी एशियाई ग्रीष्म मानसून (ईएएसएम) का व्यवहार हर बार एक जैसा नहीं होता, बल्कि इसमें काफी विविधता पाई जाती है। यह विविधता मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी हवाओं या वेस्टर्लीज की स्थिति में छोटे-छोटे बदलावों से जुड़ी होती है।

यह शोध चीन के जियाओतोंग विश्वविद्यालय, ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे और कई अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया है। इस अध्ययन ने यह स्पष्ट किया कि जब भी बर्फीले युग के दौरान अचानक गर्मी आती थी, जिन्हें डैन्सगार्ड-ओशगर (डीओ) घटनाएं कहा जाता है, तब पूर्वी एशियाई मानसून हर जगह समान तरीके से नहीं बदलता था।

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एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।

🌀 डैन्सगार्ड-ओशगर (डीओ) घटनाएं क्या होती हैं?

नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि पिछले बर्फीले युग में, जब पृथ्वी की जलवायु ठंडी थी, तब अचानक से कुछ समय के लिए तापमान में वृद्धि होती थी। इन गर्म अवधियों को इंटरस्टेडियल और ठंडी अवधियों को स्टेडियल कहा जाता है।

लंबे इंटरस्टेडियल का मतलब है कि जब गर्मी लंबे समय तक बनी रहती थी। छोटे इंटरस्टेडियल जब गर्मी केवल थोड़े समय के लिए आती थी। इन्हीं घटनाओं के दौरान पूर्वी एशिया का मानसून अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया देता था।

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एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।

किस तरह किया गया शोध ?

वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए दो तरीके अपनाए पहला स्पेलिओथेम रिकॉर्ड्स: यानी गुफाओं में बनने वाली चूना-पत्थर की परतों का विश्लेषण करना। इन परतों में पानी की बूंदों से जुड़े आइसोटोप (जैसे डेल्टा ऑक्सीजन-18) संरक्षित रहते हैं, जो उस समय की बारिश और मानसून की ताकत के बारे में जानकारी देते हैं।

दूसरा आइसोटोप-समर्थित जलवायु मॉडल: यह एक उन्नत कंप्यूटर मॉडल है, जो मानसून और उत्तर पश्चिमी हवाओं की गतियों को सटीक रूप से समझने में मदद करता है।

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एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।

क्या कहता है अध्ययन?

छोटे इंटरस्टेडियल का प्रभाव : अध्ययन में पाया गया कि छोटे इंटरस्टेडियल के दौरान उत्तर पश्चिमी हवाओं और अधिक उत्तर की ओर खिसक जाती थीं। इस वजह से पश्चिमी प्रशांत महासागर से सीधे नमी पूर्वी एशिया में आती थी। इससे दक्षिण-पूर्व चीन में मानसून की बारिश अलग तरह की होती थी। यहां पर डेल्टा ऑक्सीजन-18 आइसोटोप में ज्यादा कमी देखने को नहीं मिलती थी।

पारंपरिक सोच को चुनौती : पहले यह माना जाता था कि उत्तरी पश्चिमी हवाओं का व्यवहार केवल दो स्थितियों में होता है, स्टेडियल (ठंडी अवधि) में दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं। इंटरस्टेडियल (गर्म अवधि) में उत्तर की ओर चली जाती हैं।

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एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।

लेकिन इस अध्ययन ने दिखाया कि उत्तर पश्चिमी हवाओं की स्थिति एक निरंतर प्रक्रिया है। यानी, गर्मी कितनी तीव्र है, उसके अनुसार उत्तरी पश्चिमी हवाएं अलग-अलग स्तर पर उत्तर की ओर खिसकती हैं।

क्षेत्रीय विविधता : दक्षिण-पूर्व चीन – यहां मानसून और उत्तर पश्चिमी हवाओं की परस्पर क्रिया सबसे स्पष्ट दिखती है। भारत और दक्षिण-पश्चिम चीन के इन क्षेत्रों में बदलाव सीधे तौर पर अटलांटिक महासागर की धाराओं से जुड़े हुए हैं।

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एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।

🌍 अटलांटिक महासागर की धाराओं और दुनिया से संबंध

अध्ययन में यह भी पाया गया कि अटलांटिक महासागर की धाराएं, यानी अटलांटिक महासागर की गहरी और सतही धाराएं, इन घटनाओं को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। जब अटलांटिक महासागर की धाराएं मजबूत होती है तो गर्मी उत्तरी गोलार्ध में तेजी से फैलती है। जब यह कमजोर होती है तो ठंडी अवधि लंबी हो जाती है।

इससे यह साफ होता है कि पूर्वी एशियाई मानसून केवल स्थानीय घटनाओं पर निर्भर नहीं करता, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों, खासकर अटलांटिक महासागर की गतिविधियों से भी प्रभावित होता है।

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एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं।

भविष्य की दिशा

अध्ययन में यह भी कहा गया कि दक्षिण-पूर्व चीन अब भी अध्ययन छोटे से हिस्से में किया गया है। यहां बहुत कम उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले रिकॉर्ड उपलब्ध हैं। यदि इस क्षेत्र से और अधिक आंकड़े जुटाया जाए तो मानसून का पूर्वानुमान और भी सटीक हो सकती है। यह आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन प्रबंधन की योजना बनाने में मदद करेगा।

यह नया शोध हमें यह समझने में मदद करता है कि पूर्वी एशियाई ग्रीष्म मानसून केवल सरल "उत्तर-दक्षिण" बदलावों पर आधारित नहीं है। बल्कि, यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उत्तर पश्चिमी हवाओं की सूक्ष्म गतियां और अटलांटिक महासागर की धाराएं मिलकर काम करती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अतीत के इन रिकॉर्डों को समझना भविष्य की जलवायु और मानसून की दिशा का अनुमान लगाने में बेहद जरूरी है।

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