
मॉनसूनी बारिश वसंत में शुरू होती है और शरद ऋतु में बंद हो जाती है। अब तक इस मौसमी पैटर्न को मुख्य रूप से सौर विकिरण में बदलाव के तत्काल प्रतिक्रिया के रूप में समझा जाता था।
अब पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए एक नए अध्ययन से पहली बार पता चलता है कि वायुमंडल लंबे समय तक नमी को जमा कर सकता है, जिससे बाहरी स्मृति प्रभाव पैदा होता है।
यह मॉनसून प्रणालियों को दो स्थिर अवस्थाओं के बीच मोड़ने में मदद करता है। इस नाजुक संतुलन के बिगड़ने से भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील और चीन के अरबों लोगों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
शोध पत्र में पीआईके के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि वायुमंडल जल वाष्प की जानकारी को एकत्रित करके अपनी पिछली स्थिति को याद रख सकता है। व्यावहारिक रूप से, इसका मतलब यह है कि भले ही मौसम के साथ सौर विकिरण बढ़ता या घटता हो, लेकिन वायुमंडल हमेशा तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करता है।
वसंत के दौरान, जल वाष्प कई दिनों और हफ्तों तक जमा होता रहता है। यह गर्मियों की शुरुआत में मॉनसून की बारिश की शुरुआत को तय करता है और शरद ऋतु में सौर प्रवाह में कमी आने पर भी इसे बनाए रखता है।
वायुमंडल में रास्ते की खोज, मॉनसून इसे कैसे याद रखता है?
भारत, चीन और अन्य मॉनसूनी क्षेत्रों से प्राप्त आंकड़ों को वायुमंडलीय सिमुलेशन के साथ मिलाकर, शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि वायुमंडल की स्थिति उसके मौसमी इतिहास पर निर्भर करती है, यदि पहले से ही बारिश हो रही है, तो बारिश जारी रहती है। लेकिन अगर मौसम शुष्क रहा है, तो बारिश का शुरू होना मुश्किल हो जाता है। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
वसंत में वातावरण आमतौर पर शुष्क होता है और मॉनसून शुरू होने से पहले इसे जल वाष्प में बदलने की जरूरत पड़ती है। इसके विपरीत, शरद ऋतु में मॉनसून के बाद का वातावरण नम रहता है और सौर विकिरण के कमजोर होने पर भी बारिश को बढ़ावा देता रहता है। इस व्यवहार को द्विस्थिरता कहा जाता है। सौर विकिरण के समान स्तर पर, वातावरण या तो सूखा या बरसाती हो सकता है, जो पिछली स्थिति पर निर्भर करता है।
लंबे समय से इस बात की जानकारी है कि महासागर या विशाल बर्फ की चादरों जैसी प्रणालियों में किसी प्रकार की स्मृति होती है। लेकिन वायुमंडल में यह असंभव माना जाता था।
यह स्मृति या याददाश्त प्रभाव मॉनसून की बारिश में एक बटन जैसा व्यवहार करता है, 'बंद' से 'चालू' और फिर से वापस मौसमी बदलाव। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह धीरे-धीरे नहीं होता है यह अचानक होता है।
शोध में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस तरह के अचानक बदलाव जलवायु प्रणाली में अन्य टिपिंग पॉइंट की विशेषता है, लेकिन मॉनसून इन सब में विशेष है। अहम बात यह है कि मॉनसून हर साल अपने टिपिंग पॉइंट को पार करता है और फिर वापस लौटता है। यह हमें भविष्य में आंकड़ों के साथ टिपिंग पॉइंट की वास्तव में पहचान करने और एक शुरुआती चेतावनी प्रणाली विकसित करने में सक्षम बना सकता है।
आंकड़ों का अवलोकन, सिद्धांत और सिमुलेशन को एक साथ जोड़ना
शोध में कहा गया है कि इस दोहरे व्यवहार के पीछे के तंत्र को जानने के लिए, शोधकर्ताओं ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण मॉडल के साथ वास्तविक दुनिया के आंकड़ों और सिमुलेशन दोनों का उपयोग किया।
एक आदर्श मॉनसून ग्रह की व्यवस्था में, शोधकर्ताओं ने वायुमंडल को महासागरों जैसे धीमी पृथ्वी प्रणाली वाली घटकों से अलग कर दिया। सिमुलेशन ने दिखाया कि मॉनसून की बारिश महासागर की तापीय आधार के बिना शुष्क और गीली अवस्था के बीच बदल सकती है। इस व्यवहार का मुख्य कारण वायुमंडलीय नमी का मजबूत होना है जो हफ्तों तक बारिश को स्थिर करता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से बताया गया है कि इस प्रणाली में केंद्रीय टिपिंग पॉइंट को स्पष्ट रूप से एक सीमा के रूप में पहचाना जा सकता है। जब वायुमंडलीय जल वाष्प लगभग 35 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर से अधिक हो जाता है, तो मॉनसून चालू हो जाता है। यदि यह उससे नीचे गिरता है, तो यह बंद हो जाता है। यह अचानक, सीमा-आधारित प्रतिक्रिया दोहरी स्थिति को परिभाषित करती है।
शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि अगर प्रदूषण या ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह गतिशीलता बाधित होती है, तो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसका भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील और चीन जैसे देशों में रहने वाले अरबों लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा, जो अपनी आजीविका के लिए मॉनसून की बारिश पर निर्भर हैं, यह न केवल हमारी जलवायु प्रणाली को ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों पर भी इसका असर पड़ सकता है।
भारत में समय से पहले मॉनसून की दस्तक
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के 13 मई, 2025 से दक्षिण अंडमान सागर, दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी और निकोबार द्वीप समूह में आगे बढ़ने की संभावना है। जबकि अगले चार से पांच दिनों के दौरान इसके दक्षिण अरब सागर, मालदीव और कोमोरिन क्षेत्र के कुछ हिस्सों, दक्षिण बंगाल की खाड़ी के कुछ और हिस्सों, पूरे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और अंडमान सागर तथा मध्य बंगाल की खाड़ी के कुछ हिस्सों में आगे बढ़ने की संभावना है।
मौसम विभाग की मानें तो दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून 27 मई को केरल में दस्तक दे सकता है, जो कि सामान्य तिथि एक जून से चार दिन पहले है। जबकि अपने आउटलुक में विभाग के द्वारा कहा गया था कि 2025 में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून के चलते सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है।
मॉनसून भारत की गर्म और शुष्क गर्मियों के अंत का प्रतीक है। जैसे-जैसे यह उत्तर की ओर बढ़ता है, यह ठंडा मौसम और बारिश लेकर आता है। केरल में जल्दी आना इस बात का संकेत है कि अन्य क्षेत्रों में भी समय पर बारिश हो सकती है। यह लोगों और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए एक अच्छा संकेत है।
वहीं सामान्य से बेहतर मॉनसून के पूर्वानुमान से उत्साहित होकर सरकार ने फसल वर्ष 2025-26 के लिए 35.464 करोड़ टन का रिकॉर्ड कृषि उत्पादन लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य 2024-25 में दर्ज 34.155 करोड़ टन कृषि उपज से 3.8 फीसदी या 1.3 करोड़ टन अधिक है।