
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में ओजोन प्रदूषण के बढ़ते खतरे को लेकर चेताया है। रिपोर्ट के मुताबिक इस साल गर्मियों के दौरान दिल्ली में करीब-करीब हर दिन ओजोन प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से ऊपर रहा।
साथ ही दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में भी उन दिनों की संख्या बढ़ी है जब हवा में ओजोन प्रदूषण हावी था। चिंता की बात यह है कि इसका दायरा पहले से ज्यादा इलाकों में फैल गया है।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक और क्लीन एयर प्रोग्राम की प्रमुख अनुमिता रॉयचौधरी ने इस बारे में जानकारी दी है कि, “इस बार गर्मियों में कई दिन ऐसे रहे जब एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) में प्रदूषण के महीन कणों की जगह ओजोन, मुख्य प्रदूषक के रूप में दर्ज किया गया। 25 मई से 11 जून के बीच 18 में से 12 दिन ओजोन मुख्य प्रदूषक रहा।”
उनका आगे कहना है कि मौजूदा 'ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप)' में ओजोन प्रदूषण से निपटने की कोई व्यवस्था नहीं है — न तो इमरजेंसी में लोगों को बचाने के लिए और न ही इसे लंबे समय में कम करने के लिए। जो नीतियां बनाई गई हैं उनका सारा ध्यान केवल प्रदूषण के महीन कणों पर है, जबकि वाहनों, उद्योगों और जलने से निकलने वाली जहरीली गैसों पर कोई ठोस नियंत्रण नहीं है जो ओजोन बनने की बड़ी वजह हैं”
उनके मुताबिक अगर इसे रोका न गया, तो यह स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर संकट बन सकता है, क्योंकि ओजोन एक अत्यंत प्रतिक्रियाशील और हानिकारक गैस है।
क्यों खतरनाक है ओजोन?
गौरतलब है कि ओजोन कोई सीधे तौर पर उत्सर्जित होने वाला प्रदूषक नहीं है, यह सूर्य की रोशनी में नाइट्रोजन ऑक्साइड, वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी), और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसों के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया से बनती है।
यह सांस नली में जलन और सूजन के अलावा, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों को बढ़ा सकती है। बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए यह कहीं अधिक खतरनाक है।
दिल्ली-एनसीआर में क्या रही स्थिति?
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में इस साल मार्च से मई के बीच 92 में से करीब-करीब हर दिन जमीनी ओजोन का स्तर वायु गुणवत्ता के लिए निर्धारित राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों से ऊपर रहा। आंकड़ों के मुताबिक मार्च से मई 2025 के बीच हर दिन ओजोन का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक रहा।
साफ है कि इस दौरान यह समस्या लगातार बड़े पैमाने पर बनी रही। 28 अप्रैल को सबसे खराब दिन रहा, जब क्षेत्र के 58 में से 32 निगरानी स्टेशनों में ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा से ऊपर दर्ज किया गया।
वहीं जब दिल्ली-एनसीआर के शहरों के अलग-अलग देखा गया तो स्थानीय स्तर पर अलग ही रुझान सामने आए। दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रदूषण 13 अप्रैल को दर्ज किया गया, जब ओजोन का औसत स्तर 135 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। इस दौरान 39 में से 25 स्टेशनों पर ओजोन का स्तर तय सीमा से अधिक रिकॉर्ड किया गया।
वहीं एनसीआर में 25 अप्रैल को ओजोन का स्तर 139 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। इस दौरान एनसीआर के अन्य शहरों में 83 दिनों तक ओजोन का स्तर तय सीमा से अधिक दर्ज किया गया। 18 और 28 अप्रैल को एनसीआर के 10 में से 9 स्टेशनों ने सीमा से अधिक स्तर दर्ज किया।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि गर्मियों के दौरान उत्तर-पश्चिम और दक्षिण दिल्ली बढ़ते ओजोन से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे। वहीं गाजियाबाद और नोएडा एनसीआर के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल थे।
पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों से पता चला है कि जमीनी ओजोन पूरे साल एक समस्या रहा है, लेकिन अप्रैल और मई के गर्म महीनों में इसका स्तर सबसे ज्यादा बढ़ जाता है। हर साल गर्मियों में दिल्ली-एनसीआर के किसी न किसी हिस्से में ओजोन का स्तर रोज ही सुरक्षित सीमा से ऊपर रहता है।
हालांकि इस साल ओजोन प्रदूषण का दायरा कहीं अधिक बढ़ गया।
औसतन करीब 19 मॉनिटरिंग स्टेशनों ने रोजाना मानकों से अधिक स्तर दर्ज किया, जोकि पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक है। 2021 में यह औसत करीब 13 था, जबकि पिछली गर्मियों में करीब 18 स्टेशनों में इस इसका स्तर लगातार तय मानकों से अधिक रहा। मतलब की इस साल इसमें 6.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
सीएसई ने रिपोर्ट में जानकारी दी है कि जमीनी ओजोन प्रदूषण का फैलाव बढ़ने के साथ-साथ उसकी अवधि भी बढ़ी है। इस गर्मी, जहां ओजोन का स्तर सीमा से ऊपर रहा, यह स्तर इस साल रोजाना औसतन 14.2 घंटे तक हवा में बना रहा, जोकि पिछले साल 12 घंटों से कहीं अधिक है।
इस गर्मी दिल्ली में ओजोन प्रदूषण का फैलाव बढ़कर औसतन 15.1 स्टेशनों तक पहुंच गया, जो पिछले साल के 13.2 स्टेशनों से अधिक है। ओजोन प्रदूषण का समय भी बढ़कर औसतन 12 घंटे हो गया। दूसरी तरफ एनसीआर के शहरों में ओजोन का स्थानीय प्रसार कम हुआ है, जो इस साल औसतन 3.6 स्टेशनों पर रहा, जबकि पिछले साल यह 4.4 स्टेशनों पर था। लेकिन यह ध्यान रखने चाहिए कि इस दौरान फरीदाबाद के कुछ स्टेशनों का डेटा पूरा नहीं मिला है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि दक्षिणी ल्ली का नेहरू नगर सबसे ज्यादा प्रभावित इलाका रहा। मार्च से मई तक सभी 92 दिनों में यहां ओजोन का स्तर तय सीमा से ऊपर रहा। इसके बाद नजफगढ़, ओखला फेज-2, अशोक विहार, आया नगर और वज़ीरपुर भी ज्यादा प्रभावित रहे।
एनसीआर के शहरों को देखें तो गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम और ग्रेटर नोएडा में भी ओजोन प्रदूषण की स्थिति गंभीर रही। गाजियाबाद का वसुंधरा इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित रहा, जहां 48 दिनों तक ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा से ऊपर रहा। नोएडा के सेक्टर 125 में 43 दिन ऐसी ही स्थिति रही। हालांकि फरीदाबाद के पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं है, इसलिए स्थिति स्पष्ट नहीं है।
इसी तरह गुरुग्राम का ग्वाल पहाड़ी इलाका रात में सबसे ज्यादा बार ओजोन प्रदूषण दर्ज करने वाला इलाका रहा। नोएडा का सेक्टर 62 एक बड़ा हॉटस्पॉट बनकर उभरा, जहां ओजोन का 8 घंटे का औसत स्तर 223 माइक्रोग्राम प्रति घन तक पहुंच गया, जो बेहद चिंताजनक है।
जमीनी ओजोन आमतौर पर वहां ज्यादा बनता है जहां नाइट्रोजन ऑक्साइड और पीएम2.5 कम होते हैं। लेकिन वजीरपुर एक अपवाद है, जहां नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन दोनों का स्तर ऊंचा मिला।
इसी तरह लोनी (गाजियाबाद) में नाइट्रोजन ऑक्साइड, पीएम2.5 और ओजोन तीनों का स्तर ऊंचा मिला। टेरी ग्राम (गुरुग्राम) में भी ऐसा ही देखा गया। ये मामले दिखाते हैं कि स्थानीय प्रदूषण, कम हवा का बहाव और मौसम जैसी स्थितियां ओजोन को बढ़ा सकती हैं।
लॉकडाउन की तुलना में 9 फीसदी ज्यादा रहा इस साल ओजोन का उच्चतम स्तर
मई 2025 में सभी मॉनिटरिंग स्टेशनों के आंकड़ों के औसत से पता चला है कि इस गर्मी ओजोन प्रदूषण का पैटर्न काफी बदला है। मई 2024 की तुलना में अब ओजोन सूर्यास्त के बाद ज्यादा देर तक हवा में नहीं रहता, लेकिन दिन के समय इसका औसत उच्चतम स्तर 9 फीसदी बढ़ गया है, जो इस समस्या के बढ़ते खतरे को दिखाता है।
हालांकि सुबह और शाम के ट्रैफिक से ओजोन में थोड़ी गिरावट देखी गई है। इस समय वाहनों से निकलने वाली एनओ₂ गैस ओजोन बनने से रोकती है, जिससे सूर्योदय और सूर्यास्त के आसपास इसका स्तर कम हो जाता है। इस साल सीपीसीबी ने ओजोन के आंकड़ों पर 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सीमा नहीं लगाई, जैसा पहले किया जाता था। इस वजह से अब 8 घंटे की औसत में 450 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा के रिकॉर्ड सामने आए, जो पहले छुपे रह जाते थे।
19 मई 2025 को, दिल्ली के मैथुरा रोड स्टेशन ने ओजोन का 8 घंटे का औसत 472 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। यह इस स्थान और पूरे एनसीआर में अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।
रातों में भी बनी रहता है ओजोन!
पिछले वर्षों में 190 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सीमा अलीपुर, रोहिणी, अशोक विहार और डॉ. केएस शूटिंग रेंज जैसे स्टेशनों पर पार हो चुकी है। वहीं इस बार अलीपुर ने 383 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और अशोक विहार ने 241 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का नया रिकॉर्ड बनाया। एनसीआर को देखें तो गुरुग्राम का ग्वाल पहाड़ी सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन कर उभरा जहां 8 घंटे का औसत 315 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया। वहीं 223 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के साथ नोएडा सेक्टर 62 दूसरे स्थान पर रहा।
ओजोन का स्तर आमतौर पर रातों में गिर जाना चाहिए, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में रात 10 से 2 बजे तक कई जगहों पर यह 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर बना रहा।
इस गर्मी नजफगढ़ में सबसे ज्यादा 55 रातों में ओजोन का स्तर दर्ज किया गया। वहीं दिल्ली से बाहर, ग्वाल पहाड़ी (गुरुग्राम) में 28 रातों तक ओजोन का स्तर बढ़ा मिला।
क्यों बन रही समस्या गंभीर?
सीएसई का कहना है कि वाहनों, उद्योगों और कचरे के जलने से निकलने वाली गैसें ओजोन के बनने में योगदान करती हैं, लेकिन नीतियों में इन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। सुबह-शाम ट्रैफिक के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड की अधिकता ओजोन को अस्थाई रूप से कम करती है, लेकिन दिन चढ़ने पर धूप में इसका स्तर तेजी से बढ़ता है।
क्या करना होगा अब?
सीएसई ने रिपोर्ट में इससे बचने के तीन प्रमुख सुझाव दिए हैं:
सीएसई ने सुझाव दिया है कि ओजोन को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप) में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि वाहन और उद्योग जैसे स्रोतों पर तुरंत कार्रवाई की जा सके, जो ओजोन बनाने वाले गैसें छोड़ते हैं, और तात्कालिक स्वास्थ्य जोखिमों को कम किया जा सके।
वाहनों और उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन को रोकने के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीक को बढ़ावा दिया जाए। ओजोन प्रदूषण को कम करने के कदम उठाए जाने चाहिए, जैसे कि ऐसे वाहनों को बढ़ावा देना जो उत्सर्जन नहीं करते। इसी तरह साफ और सुरक्षित उद्योग प्रक्रियाएं और ईंधन इस्तेमाल करना, कूड़ा को जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना। लम्बे समय से जमा कचरे को साफ करना, कूड़े एकत्र करने और छांटने पर ध्यान देना। साथ ही घरों में जीवाश्म ईंधन की जगह साफ सुथरे ईंधन का इस्तेमाल करना।
रिपोर्ट के मुताबिक जमीनी ओजोन प्रदूषित इलाकों में बनता है, लेकिन यह साफ शहरों, शहर के बाहर और आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी जाकर जमा हो जाता है। इससे कृषि और खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ता है।
जहां प्रदूषण ज्यादा होता है, वहां ओजोन दूसरे प्रदूषकों के साथ मिलकर जल्द खत्म हो जाता है, लेकिन साफ इलाकों में यह लंबे समय तक बना रहता है। ऐसे में इससे निपटने के लिए क्षेत्रीय योजनाएं बनाई जानी चाहिए, जिससे इसे स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सके।